चमकती उजली ऋतू का ,रूप धुंधलाने लगा है
                               कोहरा     छाने  लगा     है

बीच अवनी और अम्बर ,आ गया है  आवरण सा
गयी सूरज की प्रखरता,छा  गया कुछ चांदपन सा

मौन भीगे,तरु खड़े है,व्याप्त  मन में दुःख बहुत है
बहाते है,पात आंसू, रश्मियां उनसे विमुख है

कभी बहते थे उछालें मार कर, जब संग थे सब
हुए कण कण,नीर के कण,हवाओं में भटकते अब

 कभी सहलाती बदन,वो हवाएं चुभने लगी  है
स्निग्ध थी तन की लुनाई,खुरदुरी होने लगी है

पंछियों की चहचाहट ,हो गयी अब गुमशुदा है
बड़ी बदली सी फिजा है,रंग मौसम का जुदा है

लुप्त तारे,हुए सारे,चाँद  शरमाने   लगा है
                          कोहरा  छाने लगा है

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मदन मोहन बाहेती'घोटू'  


http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/ghotoo-ki-kavitayen/








12 comments:

  1. बहुत खूब सर!

    सादर

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  2. वाह कितने सुन्दर भावो को संजोया है।

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  3. बहुत सुन्दर .. काव्य

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  4. बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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  5. आपके पोस्ट पर आना बहुत ही अच्छा लगा । मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद ।

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  6. बहुत अच्छे भाव !

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  7. बहुत खूबसूरत रचना |

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  8. सही हालत बयाँ किये है शरद के आगमन के. बहुत खूबसूरत रचना. बधाई.

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  9. मौन भीगे,तरु खड़े है,व्याप्त मन में दुःख बहुत है
    बहाते है,पात आंसू, रश्मियां उनसे विमुख है.
    बहुत सुन्दर.

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