सजीव सारथी ... इनकी पुस्तक की समीक्षा से पहले मैं इनकी खासियत बताना चाहूँगी . सजीव सारथी यानि एक जिंदा सारथी उनका
स्वत्व है, उनकी दृढ़ता है, उनका मनोबल है,उनकी अपराजित जिजीविषा है .... हार मान लेना इनकी नियति नहीं , इनसे मिलना , इन्हें
बार देखा प्रगति मैदान में हिन्दयुग्म के समारोह में .... कुछ भावनाओं को शब्द दे पाना मुमकिन नहीं होता , फिर भी प्रयास करते हैं हम
और .... लोग कहते हैं जताना नहीं चाहिए , पर जताए बिना हम आगे कैसे बढ़ सकते ये कहकर कि इस अनकही पहेली को सुलझाओ ....
मैं भी नहीं बढ़ सकती, यूँ कहें बढ़ना नहीं चाहती . अपने 'आज' से संभवतः सजीव जी को कहीं शिकायत होगी, पर मेरे लिए वह कई निराशा के
प्रेरणास्रोत हैं और उनकी इसी प्रेरणा के ये स्वर हैं
sachchai liye hue bahut hi sunder shabdon main likhi aaj ke mahole per achchi prartuti.badhaai aapko.
ReplyDeleteplease visit my blog.thanks.
'जाने कब वो लौट जाए ...
ReplyDeleteसमेट लेता हूँ
अश्कों के मोती
और सहेज के रख लेता हूँ ...
एक पल की उम्र लेकर ... संजीव सारथी जी की इस पुस्तक के बारे आपकी यह समीक्षा इसे पढ़ने के लिये प्रेरित करती है, इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिये आपको बहुत-बहुत बधाई एवं आभार ।
...बहुत अच्छी लगी यह पोस्ट। सजीव सारथी से क्षणिक मुलाकात जीवंत हो गई। उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रहा जा सकता।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और लाजवाब रचना!
ReplyDelete'स्कूल से लौटते बच्चे
ReplyDeleteकाँधों पर लादे
ईसा का सलीब '.... से दिखाई देते हैं ! वाह !
सजीव सारथी जी का परिचय, सुंदर गीत व उनकी पुस्तक की समीक्षा पढ़कर बहुत अच्छा लगा, आभार!
सभ्यता के विकास में अक्सर
ReplyDeleteविलुप्त हो जाती हैं
हाशिये पर पड़ी प्रजातियाँ
संजीव जी की रचनाएँ पढता रहा हूँ. अच्छा लगता है सूक्ष्मता के उस बिन्दु तक का सफर ...
सजीव सारथी जी का परिचय, सुंदर गीत व उनकी पुस्तक की समीक्षा पढ़कर बहुत अच्छा लगा, आभार|
ReplyDeleteसभ्यता के विकास में अक्सर
ReplyDeleteविलुप्त हो जाती हैं
हाशिये पर पड़ी प्रजातियाँ
बहुत सुन्दर
'याद होगी तुम्हें भी
ReplyDeleteमेरे घर की वो बैठक
जहाँ भूल जाते थे तुम
कलम अपनी ...'
अपने ही घर की सी बातें इतने खूबसूरत अंदाज में रची हैं कवि ने कि और पढाने को मन करता है |
'कामयाबी एक ऐसा चन्दन है
ReplyDeleteजिससे लिपट कर हँसता है
नाग - अहंकार का '
'कामयाबी एक ऐसा चन्दन है
ReplyDeleteजिससे लिपट कर हँसता है
नाग - अहंकार का '...
लाजवाब ...
संजीवजी , उनकी पुस्तक और कविताओं की समीक्षा के माध्यम से उन्हें जानना अच्छा लगा ...
आभार !
wah!! bahut khub!!
ReplyDeletebahut hee prabhavshaali rachnaon se aapne apni samiksha ke madhyam se prichay karvaya hai jiske liye aabhar vyakt kartaa hoon.
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