एक विम्ब ... तीन विचार !
प्रश्न, दृढ़ता, स्नेहिल आश्वासन ....
पर विचारों का प्रवाह यहीं नहीं रुकता
प्रश्नों का सिलसिला यहीं नहीं टूटता
द्रौपदी आज भी खुले केश में खड़ी है अविचल
इच्छामृत्यु के वरदान को वह पूरा नहीं होने देगी
भीष्म की ख़ामोशी को जान के रहेगी
द्रोणाचार्य के गुरुत्व की महिमा क्या है
पूछके रहेगी .......... कौरव भूमिशायी हुए हैं
पांडवों की लिप्सा अभिलाषा खुद से परे
समझके रहेगी ......... यह तो आरम्भ का ही एक सूत्र है
अभी तो बहुत कुछ बाकी है
- रश्मि प्रभा
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याज्ञसेनी !
याज्ञसेनी !
कई बार मन करता है कि
तुमसे कुछ अन्तरंग बात करूँ
कुछ प्रश्न पूछूं
और आश्वस्त हो जाऊं
अपनी सोच पर
द्रुपद द्वारा किये गए यज्ञ से
हुआ था जन्म तुम्हारा
और रंग था तुम्हारा काला
फिर भी कहलायीं अनुपम सुंदरी
सच ही होगा
क्यों कि
मैंने भी सुना है ब्लैक ब्यूटी की
बात ही कुछ और है .
अच्छा बताओ
जब जीत कर लाये थे
धनञ्जय तुम्हें स्वयंवर से
तो कुंती के आदेश पर
तुम बंट गयीं थीं
पाँचों पांडवों में ,
जब कि तुम
कर सकतीं थीं विरोध
तुम्हारे तो सखा भी थे कृष्ण
जो उबार लेते थे
हर संकट से तुम्हें ,
या फिर माँ कुंती भी तो
अपने आदेश को
ले सकतीं थीं वापस ,
या फिर उन्होंने पढ़ ली थी
पुत्रों की आँखों में
तुम्हारे प्रति मोह की भाषा
और भाईयों को
एक जुट रखने के लिए
लगा गयीं थीं चुप ,
या फिर
तुमने भी हर पांडव में
देख लिए थे
अलग अलग गुण
जिनको तुमने चाहा था कि
सारे गुण तुम्हारे पति में हों ,
कैसे कर पायीं तुम
हर पति के साथ न्याय ?
क्या कभी
एक के साथ रहते हुए
ख्याल नहीं आया दूसरे का ?
यदि आया तो फिर कैसे
मन वचन से तुम रहीं पतिव्रता ?
युधिष्ठिर जानते थे
तुम्हारे मन की बात
शायद इसी लिए
वानप्रस्थ जाते हुए जब
सबसे पहले त्यागा
तुमने इहलोक
तो बोले थे धर्मराज -
सब भाइयों से परे
अर्जुन के प्रति आसक्ति ही
कारण है सबसे पहले
तुम्हारे अंत का .
हांलाकि मिला था तुमको
चिर कुमारी रहने का वरदान
फिर भी पल पल
बंटती रहीं तुम टुकड़ों में
कैसे सहा ये बंटने का दर्द ?
हे कृष्णा !
भले ही तुमने
बिता दिया सारा जीवन
पांडवों के साथ
कष्टों को भोगते हुए
पर आज भी लोंग
जब तुम्हारा नाम लेते हैं
तो बस यही याद आता है
कि - तुम ही हो वह
जो बनी कारण
महाभारत का .
सुना है आज भी
कुरुक्षेत्र की मिट्टी
लहू के रंग से लाल है |
संगीता स्वरुप
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द्रौपदी उवाच -
द्रौपदी उवाच -
महाभारत की भूमि का प्रारब्ध मुझे बनाया था कृष्ण ने
उसने सखा हो चयन किया
मैंने सखा होने का साथ निभाया .
यूँ भी नारी बंटती आई है
तो प्रयोजन निमित्त बंटना
सत्य को उजागर करना है
5 पांडव नहीं थे पांडू पुत्र ...थे वे क्रमशः इन्द्र धर्मराज पवन और अश्विनी पुत्र
और मुझे कृष्ण ने यह उत्तरदायित्व दिया
कि मैं काल का आधार बनूँ !
... यूँ भी यातनाओं से गुजरती स्त्री
आग में स्वाहा होती स्त्री
गर्भ में ही दम तोड़ती कन्या
काल का निर्णायक आगाज़ होती हैं
हम खामोश विरोध आंसू के साथ इसकी इति समझ लेते
अगर गौर से पन्नों को पलटा जाए
तो सूर्योदय वहीँ होता है ...
........
कृष्ण ने मुझे
कुरुक्षेत्र की भूमि को रक्तरंजित करने का आधार बनाया
सच है ...
सच और भी हैं -
कृष्ण के जीवन का आधार कन्या
कृष्ण के बचपन का आधार माँ यशोदा
कृष्ण के प्रेम का आधार राधा
धर्म का नाश ही स्त्री की पीड़ा से है
ये और बात है कि कभी कुरुक्षेत्र
कभी कृष्ण की हथेली
कभी कृष्ण का हुंकार
भूलो मत .....
जब जब धर्म का नाश होता है
कृष्ण अवतार लेते हैं ...
........
रश्मि प्रभा
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द्रौपदी
द्रौपदी....
तुम व्यर्थ का अपराधबोध
ना पालो अपने मन में...
कि कुरुक्षेत्र की धरा तुम्हारे कारण लाल हुई....
कुरुक्षेत्र की नीव थी
धृतराष्ट्र की, नयनहीन पंख लिए,
निराधार प्रतिशोध के आकाश में
उड़ने वाली उसकी महत्वाकांक्षा,
जो बरसना और सींचना जानती थी बादल बनकर
केवल दुर्योधन की कलुषित विचारधारा को....
कुरुक्षेत्र की नींव थे
काल को जीत लेने वाले
भीष्म, कृपाचार्य, द्रोणाचार्य के आँखों की पट्टियां,
पट्टियां... जो उन्होंने स्वयं बाँध रखे थे
अपने त्रिकाल दर्शी नेत्रों पर... गांधारी की तरह...
....सिंहासन के सुरक्षा की,
....सिंहासन से वफादारी की,
....शाही नमक के क़र्ज़ की,
मानो सिंहासन बड़ा हो
निरपराध अपने प्राण गंवाने वाले
लक्ष लक्ष सैनिकों के जीवन से.....
कुरुक्षेत्र की नीव था
विनाशकाले विपरीत बुद्धि की उक्ति को चरितार्थ करता
धर्मराज युधिष्ठर का द्युतव्यसन,
जिसने धन दौलत, राज्य, सम्मान
सब कुछ लुटा कर
तुम्हें दाँव पर लगाया...
मानों तुम
जीती-जागती, संवेदनशील स्वतंत्र अस्तित्व न होकर,
आत्मसम्मान विहीन निर्जीव वस्तु थीं....
कुरुक्षेत्र की नीवं थी
वीरता और महानता का छद्म बाना ओढ़े
सदा से स्थापित वह कापुरुष मानसिकता,
जो सदियों सदियों बाद भी
प्रस्फुटित होती है,
कभी ढोल, गंवार, शुद्र, पशु और नारी को
ताडना का अधिकारी बताते बेशर्म तुकबंदी की तरह,
कभी जेसिका, कभी आरूषी का रूप धरकर,
तो कभी तथाकथित सभ्य समाज के क्रूर पंजों द्वारा
महकने से पहले ही मसल दिए जाने वाले
गर्भस्थ फूलों की शक्ल लेकर....
इसलिए... द्रौपदी !!!
तुम स्वयम को मुक्त करो इस अपराधबोध से...
क्योंकि जब तक
इस कापुरुष मानसिकता का विनाश नहीं होता
कुरुक्षेत्र बनते रहे है, और बनते भी रहेंगे....
एस. एम. हबीब
द्रोपदी ...का आंकलन ...आप तीनो के नज़र से पढ़ा
ReplyDeleteबहुत अच्छा वर्णन ....एक औरत होने का दर्द और बात जाने का दर्द
हर औरत बहुत अच्छे से जानती है
तीनो प्रस्तुतियाँ मानवीय पक्ष और औरत की ज़िन्दगी को रेखांकित करती हैं।
ReplyDeleteदृष्टिकोण का अभिनव प्रयोग है यह त्रि-प्रस्तुति!!
ReplyDeleteसापेक्ष चिंतन के श्रेय की बधाई स्वीकार करें रश्मि प्रभा जी!!
badhiyaa ,ek nazariyaa ye bhi hai
ReplyDeletehttp://sonal-rastogi.blogspot.com/2010/08/blog-post_19.html
रश्मि जी ,
ReplyDeleteइस प्रस्तुति के लिए आभार ... तीनों रचनाएँ एक साथ पढ़ कर बहुत कुछ नया अनुभव मिलता है ...
सोनल जी ,
आपकी यह रचना फिर से पढ़ी ... बहुत सशक्त है ..लेकिन क्रमशः के आगे का लिंक भी दीजिए ... पूरा एक साथ पढ़ना चाहूंगी :)
तीनो रचना लाजवाब हैं और अपने अपने तरीके से द्रौपदी के बारे में कही गई है ...
ReplyDeleteबंटती रहीं तुम टुकड़ों में
ReplyDeleteकैसे सहा ये बंटने का दर्द ?
................
भूलो मत .....
जब जब धर्म का नाश होता है
कृष्ण अवतार लेते हैं ...
................
कुरुक्षेत्र बनते रहे है, और बनते भी रहेंगे....
इन तीनों रचनाओं को एकसाथ वटवृक्ष की छांव में लाने के लिए रश्मि जी आपका बहुत-बहुत आभार सशक्त एवं सार्थक लेखन के साथ्ा बेहतरीन प्रस्तुति ।
प्रथम बार जब किन्ही तीन कविताओं का एक विषय एक बेहद सुखद अनुभूति एक से एक शशक्त रचनाये , साहित्य की अमूल्य धरोहर साबित होंगी ये बधाई
ReplyDeleteसाथ ही संगीता जी को विशेष बधाई हमारी भावनाओं को मूर्त रूप देने के लिए भी
आद. रश्मि दी,
ReplyDeleteइन रचनाओं को एक साथ पुनः पढ़ना सुखद है... आभार...
सादर...
तीनो ही रचनाएँ नारी संवेदना की सिसकती हुई वो कहानी है जो सदियों से लिखी जा रही है कुछ बेबस शब्दों को जोड़ घटा कर !
ReplyDeleteऔर आपकी भूमिका ........जैसे कविता को उकेरने के लिए विस्तृत कनवास !
तीनों रचनाएं अलग-अलग भी पढ़ी थीं ......एक साथ पढ़कर बहुत अच्छा लगा |
ReplyDeleteतीनों में उच्चकोटि का चिंतन ....सुन्दर भाव
alag alag najariye se droupadi ko dekhane ka avsar mila....samvedansheel rachnaye...
ReplyDeleteद्रोपदी के विचारों का अच्छा...compliation...
ReplyDeletedropdi ka chritra bahut hi vyapak raha hai teeno hi rachnayein bahut nsunder
ReplyDelete"......समझके रहेगी ......... यह तो आरम्भ का ही एक सूत्र है
ReplyDeleteअभी तो बहुत कुछ बाकी है"
वाह! और तलाश जारी है, सत्य या अर्घसत्य की क्यों कि पूर्णता भी तो अर्धसत्य ही है,वो चाहे नारी या पुरुष की हो,और अर्धनारीश्वर अवतार नही सिर्फ़ एक रूप है, शायद सब से बडा अर्धसत्य दो हिस्सों में बँटा हो कर भी एक!
तीनों रचनाये अपने आप में एक अलग विचार बिन्दु से शुरू हो कर जैसे एक सिरे पर मिल जातीं हैं!
वाह!
rashmi di
ReplyDeletemain to aapki in teeno rachnaaon ke gahan bhav me kho si gai hun.do -teen bar padha. par teeno hi hastiyo ki is sashakti avam gahn abhivykti me sabhi
ki rachnaye bahut hi shexth lagin .ek vishay par teeno kavion ke vichar prayah alag alag se lagte hain .har kisi ne droupdi ke dard ko uske naari chritra ko bahut hi gambhirata ke saath v gahn-abhivykti ke saath insaaf kiya hai.
droupadi to charon hi yugo se aaj tak vahi ruuo liye chali aa rhi
hai.
baikul sateek avam yathaeth purn vishay par addhbhut tareeke se vishhleshhan ke liye aap sabhi ko
hadik abhinanda
badhai ke saath------------poonam
तीनो रचनाएं शशक्त सटीक प्रश्नों को उठती हैं, वहुत सुंदर संकलन. आभार.
ReplyDeletejabardast sankalan ...
ReplyDeleteतीनों रचनाएँ लाजवाब है!
ReplyDeleteteenon rachnaayen saarthak, shubhkaamnaayen aap teenon ko.
ReplyDeleteDropadi ke Madhyam se ishtri charitra ka sundar chitran ... teeno rachanon ke liye Badhai
ReplyDeleteTeeno rachnaon mein Dropadi ke madhyam se itritwa ka sundar chitran ...achhi abhivyakti ke liye Badhai ... Adrinya Rashmi Prabha jee Sangeeta swaroop jee .. mere blog par mujhe bhi margdarshit karna ...
ReplyDeleteMera blog ...http://balbirrana.blogspot.com/
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