दुनिया की भीड़ में
शब्दों की रस्साकस्सी में
तुमने हमेशा मुझे झीने झीने एहसास दिए हैं
जब जब सिमटी हूँ
तुमने मुझे मेरी पहचान दी है
तो यह सब तुम्हारे लिए ..............
रश्मि प्रभा
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रश्मि प्रभा
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आज की कविता सिर्फ तुम्हें समर्पित है...
मौसमों की मार किस पर नहीं पड़ती है
सर्दी में सर्दी और गर्मी में लू किसे नहीं लगती है
लेखन की दुनिया में लोग बेशुमार देखे।
अपनी-अपनी आदतों से बेज़ार देखे।
कुछ की गर्मी उनकी बातों में छलकती है,
कुछ की नरमी उनके शब्दों में ढलती है।
कुछ के दंश विषैले होकर डस लेते हैं
कुछ ठन्डे नश्तर रक्त भी जमा देते हैं।
कुछ नफरत का अम्बार लगा जाते हैं
कुछ अपने प्यार की बौछार करा जाते हैं।
लेकिन तुम सबसे अलग क्यूँ हो ?
भीड़ जिस तरफ चलती है ,
तुम उससे जुदा मेरे ही साथ चलते हो
अपनी एक पंक्ति में मुझे
तूफानों से लड़ने का साहस दे जाते हो
गर मौसमों की मार में इतनी ताकत है , तो
दुआओं का असर भी कुछ कम नहीं होता।
तुमको शक्ति मिले इतनी की तुम साथ चल सको
इन बिदकती लहरों पर , पतवार बन सको
कोई तो है ऐसा जिसने थामा हुआ है मुझे ,
उसे मालूम है मुझे हवाओं के विपरीत चलने की आदत जो है।
डा. दिव्या श्रीवास्तव
कोई तो है ऐसा जिसने थामा हुआ है मुझे ,
ReplyDeleteउसे मालूम है मुझे हवाओं के विपरीत चलने की आदत जो है।
वाह ... बहुत ही अच्छा लिखा है ...इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिये आभार ।
अपेक्षा का साथ निभाती आशा!!
ReplyDeleteदिव्या जी की बेहद सहज अभिव्यक्ति!!
कोई तो है ऐसा जिसने थामा हुआ है मुझे ,
उसे मालूम है मुझे हवाओं के विपरीत चलने की आदत जो है।
रश्मिजी इस प्रस्तुति के लिए आभार!!
गर मौसमों की मार में इतनी ताकत है , तो
ReplyDeleteदुआओं का असर भी कुछ कम नहीं होता।
keemti khayal h...saarthak prastuti...abhinanadan...
सिर्फ तुम ...सिर्फ तुम ...सिर्फ तुम .....बहुत सुंदर भाव
ReplyDeleteकठिन राहों पर एक हमसफ़र का होना हमेशा ताकत देता है , सकारात्मक उर्जा बनी रहे..
ReplyDeleteशुभकामनायें !
बहुत सुन्दर प्रेमाभिव्यक्ति।
ReplyDeleteसुन्दर रचना। दिव्या जी को बधाई।
ReplyDeleteडॉ साहिबा इस तरह की कविता लिखती है अच्छा लगा जान कर .. बहुत सुन्दर...रश्मि जी आपका शुक्रिया इस कविता को वटवृक्ष के माध्यम से हम तक पहुचने के लिए... उम्दा
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति और भावनाएं !
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर भावाभिव्यक्ति।
ReplyDelete---------
बाबूजी, न लो इतने मज़े...
भ्रष्टाचार के इस सवाल की उपेक्षा क्यों?
कृतज्ञता के भावों से सजी सुंदर कविता !
ReplyDeleteतुमको शक्ति मिले इतनी की तुम साथ चल सको
ReplyDeleteइन बिदकती लहरों पर , पतवार बन सको
कोई तो है ऐसा जिसने थामा हुआ है मुझे ,
उसे मालूम है मुझे हवाओं के विपरीत चलने की आदत जो है।
.....दिव्या जी की कविता पहली बार पढ़ी..बहुत सुन्दर भावपूर्ण और सशक्त प्रस्तुति..
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ReplyDeleteरश्मि जी ,
आपने मेरी कविता को अपने ब्लौग पर स्थान दिया , ये आपका बडप्पन है।
सभी टिप्पणीकारों का जिन्होंने रचना को सराहा , उनका भी ह्रदय से आभार।
कृतज्ञ हूँ।
सादर ,
दिव्या।
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बहुत सुंदर भाव....
ReplyDeleteइन बिदकती लहरों पर , पतवार बन सको
ReplyDeleteकोई तो है ऐसा जिसने थामा हुआ है मुझे ,
उसे मालूम है मुझे हवाओं के विपरीत चलने की आदत जो है।
waah!!!
sashakt rachna.....
अपनी एक पंक्ति में मुझे
ReplyDeleteतूफानों से लड़ने का साहस दे जाते हो
गर मौसमों की मार में इतनी ताकत है , तो
दुआओं का असर भी कुछ कम नहीं होता।
Bahut hi acchhi rachana...
अपनी एक पंक्ति में मुझे
ReplyDeleteतूफानों से लड़ने का साहस दे जाते हो
गर मौसमों की मार में इतनी ताकत है , तो
दुआओं का असर भी कुछ कम नहीं होता।
बधाई हो आपको - विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
"'आदि व्याप्त कविता' भाव के स्तर पर उत्कृष्ट कोटि की है" — उपरिलिखित वाक्य में से.. आप्त.. घटाकर पढ़ें.
ReplyDeletebahut sundar abhivyakti. Divya ji ko badhai.
ReplyDeleteकोई तो है ऐसा जिसने थामा हुआ है मुझे ,
ReplyDeleteउसे मालूम है मुझे हवाओं के विपरीत चलने की आदत जो है।
ऐसा एक शख्स ज़िन्दगी के मायने बदल देता है
बहुत सुन्दर प्रस्तुति