दुनिया की भीड़ में
शब्दों की रस्साकस्सी में
तुमने हमेशा मुझे झीने झीने एहसास दिए हैं
जब जब सिमटी हूँ
तुमने मुझे मेरी पहचान दी है
तो यह सब तुम्हारे लिए ..............



रश्मि प्रभा






=============================================================
आज की कविता सिर्फ तुम्हें समर्पित है...

मौसमों की मार किस पर नहीं पड़ती है
सर्दी में सर्दी और गर्मी में लू किसे नहीं लगती है
लेखन की दुनिया में लोग बेशुमार देखे।
अपनी-अपनी आदतों से बेज़ार देखे।
कुछ की गर्मी उनकी बातों में छलकती है,
कुछ की नरमी उनके शब्दों में ढलती है।
कुछ के दंश विषैले होकर डस लेते हैं
कुछ ठन्डे नश्तर रक्त भी जमा देते हैं।
कुछ नफरत का अम्बार लगा जाते हैं
कुछ अपने प्यार की बौछार करा जाते हैं।
लेकिन तुम सबसे अलग क्यूँ हो ?
भीड़ जिस तरफ चलती है ,
तुम उससे जुदा मेरे ही साथ चलते हो
अपनी एक पंक्ति में मुझे
तूफानों से लड़ने का साहस दे जाते हो
गर मौसमों की मार में इतनी ताकत है , तो
दुआओं का असर भी कुछ कम नहीं होता।
तुमको शक्ति मिले इतनी की तुम साथ चल सको
इन बिदकती लहरों पर , पतवार बन सको
कोई तो है ऐसा जिसने थामा हुआ है मुझे ,
उसे मालूम है मुझे हवाओं के विपरीत चलने की आदत जो है।
[zeal-2.jpg]



डा. दिव्या श्रीवास्तव 

20 comments:

  1. कोई तो है ऐसा जिसने थामा हुआ है मुझे ,
    उसे मालूम है मुझे हवाओं के विपरीत चलने की आदत जो है।

    वाह ... बहुत ही अच्‍छा लिखा है ...इस बेहतरीन प्रस्‍तुति के लिये आभार ।

    ReplyDelete
  2. अपेक्षा का साथ निभाती आशा!!
    दिव्या जी की बेहद सहज अभिव्यक्ति!!

    कोई तो है ऐसा जिसने थामा हुआ है मुझे ,
    उसे मालूम है मुझे हवाओं के विपरीत चलने की आदत जो है।

    रश्मिजी इस प्रस्तुति के लिए आभार!!

    ReplyDelete
  3. गर मौसमों की मार में इतनी ताकत है , तो
    दुआओं का असर भी कुछ कम नहीं होता।

    keemti khayal h...saarthak prastuti...abhinanadan...

    ReplyDelete
  4. सिर्फ तुम ...सिर्फ तुम ...सिर्फ तुम .....बहुत सुंदर भाव

    ReplyDelete
  5. कठिन राहों पर एक हमसफ़र का होना हमेशा ताकत देता है , सकारात्मक उर्जा बनी रहे..
    शुभकामनायें !

    ReplyDelete
  6. बहुत सुन्दर प्रेमाभिव्यक्ति।

    ReplyDelete
  7. सुन्दर रचना। दिव्या जी को बधाई।

    ReplyDelete
  8. डॉ साहिबा इस तरह की कविता लिखती है अच्छा लगा जान कर .. बहुत सुन्दर...रश्मि जी आपका शुक्रिया इस कविता को वटवृक्ष के माध्यम से हम तक पहुचने के लिए... उम्दा

    ReplyDelete
  9. सुन्दर अभिव्यक्ति और भावनाएं !

    ReplyDelete
  10. कृतज्ञता के भावों से सजी सुंदर कविता !

    ReplyDelete
  11. तुमको शक्ति मिले इतनी की तुम साथ चल सको
    इन बिदकती लहरों पर , पतवार बन सको
    कोई तो है ऐसा जिसने थामा हुआ है मुझे ,
    उसे मालूम है मुझे हवाओं के विपरीत चलने की आदत जो है।

    .....दिव्या जी की कविता पहली बार पढ़ी..बहुत सुन्दर भावपूर्ण और सशक्त प्रस्तुति..

    ReplyDelete
  12. .

    रश्मि जी ,

    आपने मेरी कविता को अपने ब्लौग पर स्थान दिया , ये आपका बडप्पन है।
    सभी टिप्पणीकारों का जिन्होंने रचना को सराहा , उनका भी ह्रदय से आभार।

    कृतज्ञ हूँ।

    सादर ,
    दिव्या।

    .

    ReplyDelete
  13. इन बिदकती लहरों पर , पतवार बन सको
    कोई तो है ऐसा जिसने थामा हुआ है मुझे ,
    उसे मालूम है मुझे हवाओं के विपरीत चलने की आदत जो है।

    waah!!!

    sashakt rachna.....

    ReplyDelete
  14. अपनी एक पंक्ति में मुझे
    तूफानों से लड़ने का साहस दे जाते हो
    गर मौसमों की मार में इतनी ताकत है , तो
    दुआओं का असर भी कुछ कम नहीं होता।
    Bahut hi acchhi rachana...

    ReplyDelete
  15. अपनी एक पंक्ति में मुझे
    तूफानों से लड़ने का साहस दे जाते हो
    गर मौसमों की मार में इतनी ताकत है , तो
    दुआओं का असर भी कुछ कम नहीं होता।

    बधाई हो आपको - विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

    ReplyDelete
  16. "'आदि व्याप्त कविता' भाव के स्तर पर उत्कृष्ट कोटि की है" — उपरिलिखित वाक्य में से.. आप्त.. घटाकर पढ़ें.

    ReplyDelete
  17. कोई तो है ऐसा जिसने थामा हुआ है मुझे ,
    उसे मालूम है मुझे हवाओं के विपरीत चलने की आदत जो है।


    ऐसा एक शख्स ज़िन्दगी के मायने बदल देता है

    बहुत सुन्दर प्रस्तुति

    ReplyDelete

 
Top