चलो बूंदें इकट्ठी करें अपनी अपनी हथेलियों में
थोड़ा रूमानी हो जाएँ .......
रश्मि प्रभा
शिखा वार्ष्णेय
बूंदों की सरगम से कोई गीत बनायें
एक गीत तुम गुनगुनाओ
एक गीत मैं गुनगुनाऊं
भीगे भीगे मौसम में
रश्मि प्रभा
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यूँ ही कभी कभी ...
यूँ ही कभी कभी
ठन्डे पड़ जाते हैं
मेरे हाथ
तितलियाँ सी
यूँ ही मडराने लगती हैं
पेट में
ऊंगलियाँ
करने लगती हैं अठखेलियाँ
यूँ ही एक दूसरे से
पलकें स्वत: ही हो जाती हैं बंद
और वहाँ
बिना किसी जुगत के ही
कुछ बूंदे
निकल आती हैं धीरे से
काश कि तेरे पोर उठा लें
और कह दें उन्हें मोती
या बिना हवा के ही
उड़ जाये ये लट
तेरी सांसो से
तो ये धूप भी
पलकों पर बैठ जाये
और चमक जाये
फूलझड़ी सी
माना ये सब
बातें हैं फ़िज़ूल की
पर फिर भी
कभी कभी यूँ ही
थोडा सा रूमानी होने में
बुरा क्या है
शिखा वार्ष्णेय
bhtrin khubsurat rchna ke liyen bdhaai .akhtar khan akela kota rajsthan
ReplyDeletekhoobsoorat roomani ehsaas .
ReplyDeleteआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (6-6-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
चलो बूंदें इकट्ठी करें अपनी अपनी हथेलियों में
ReplyDeleteबूंदों की सरगम से कोई गीत बनायें...kya sunder baat kahi hai aapne,kavita bhi achchi lagi.
thoda sa roomani ho hi jaiye ab to :)
ReplyDeleteभुत बहुत शुक्रिया आप सब का.
ReplyDeleteरश्मि जी वटवृक्ष पर इसे स्थान देने के लिए आभारी हूँ .
भुत = बहुत.
ReplyDeleteक्षमा कीजिये मेरे कीपेड की अ की जरा परेशां करती है :०
बहुत खूबसूरत कल्पना ... न जाने कैसा कैसा महसूस कर लेती हो :):)
ReplyDeletebhut hi behtareen rachna...
ReplyDeletesunder rachna........
ReplyDeleteBeautiful creation !
ReplyDeleteवाह ... बहुत ही अच्छा लिखा है आपने ... ।
ReplyDeletethoda rumaani ho jaayen bahut sunder abhi byakti.kabhi kabhi kyon aap roj hi rumaani hoen yahi duaa hai.badhaai itani achchi rachanaa ke liye.
ReplyDeleteplease visit my blog.thanks.
aayo thoda sa khud ke liye jee le...
ReplyDeletekhubsurat ehsash rumaani bhi