चलो बूंदें इकट्ठी करें अपनी अपनी हथेलियों में
बूंदों की सरगम से कोई गीत बनायें
एक गीत तुम गुनगुनाओ
एक गीत मैं गुनगुनाऊं
भीगे भीगे मौसम में
 
थोड़ा रूमानी हो जाएँ .......


रश्मि प्रभा
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यूँ ही कभी कभी ...

यूँ ही कभी कभी
ठन्डे पड़ जाते हैं
मेरे हाथ
तितलियाँ सी
यूँ ही मडराने लगती हैं
पेट में
ऊंगलियाँ
करने लगती हैं अठखेलियाँ
यूँ ही एक दूसरे से
पलकें स्वत: ही हो जाती हैं बंद
और वहाँ
बिना किसी जुगत के ही
कुछ बूंदे
निकल आती हैं धीरे से
काश कि तेरे पोर उठा लें
और कह दें उन्हें मोती
या बिना हवा के ही
उड़ जाये ये लट
तेरी सांसो से
तो ये धूप भी
पलकों पर बैठ जाये
और चमक जाये
फूलझड़ी सी
माना ये सब
बातें हैं फ़िज़ूल की
पर फिर भी
कभी कभी यूँ ही
थोडा सा रूमानी होने में
बुरा क्या है
[P7030130+shikha.JPG]




शिखा वार्ष्णेय 

14 comments:

  1. bhtrin khubsurat rchna ke liyen bdhaai .akhtar khan akela kota rajsthan

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  2. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (6-6-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  3. चलो बूंदें इकट्ठी करें अपनी अपनी हथेलियों में
    बूंदों की सरगम से कोई गीत बनायें...kya sunder baat kahi hai aapne,kavita bhi achchi lagi.

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  4. thoda sa roomani ho hi jaiye ab to :)

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  5. भुत बहुत शुक्रिया आप सब का.
    रश्मि जी वटवृक्ष पर इसे स्थान देने के लिए आभारी हूँ .

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  6. भुत = बहुत.
    क्षमा कीजिये मेरे कीपेड की अ की जरा परेशां करती है :०

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  7. बहुत खूबसूरत कल्पना ... न जाने कैसा कैसा महसूस कर लेती हो :):)

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  8. वाह ... बहुत ही अच्‍छा लिखा है आपने ... ।

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  9. thoda rumaani ho jaayen bahut sunder abhi byakti.kabhi kabhi kyon aap roj hi rumaani hoen yahi duaa hai.badhaai itani achchi rachanaa ke liye.


    please visit my blog.thanks.

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  10. aayo thoda sa khud ke liye jee le...

    khubsurat ehsash rumaani bhi

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