इस निर्वाण यज्ञ में
यशोधरा तू मेरी ताकत है
दुनिया कुछ भी कहे
सच तो यही है,
यदि यशोधरा नहीं होती
तो मैं सिद्धार्थ ही होता


रश्मि प्रभा
===============================================================
बुद्ध का दूसरा पत्र


तू मेरे प्रथम -ज्ञान की प्रतिमा
तेरे स्फुलिंग मेरी ज्योति जली.
देखा जगत को अग्नि में जलते
क्या 'यश' मेरी भी जल जाएगी?

क्या जायेगी सूख ये बगिया मेरी
ये वाटिका आज जो है हरी-भरी.
सच मनो तेरे चिंतन ने ही मेरे
अंतर्मन में अति उत्साह भरी.

तुझे अजर अमर-अजीर्ण बनाने
छोड़ के प्रासाद निकल पड़ा हूँ.
दवा तेरी जग - दंश हरेगा ,
धरा की यश का सुयश होगा .

नहीं चाहता था तुझे खोना
अब भी नहीं चाहता हूँ खोना.
लेकिन खोना और पाना क्या
बिना 'निर्वाण' सब खुछ सूना.

एक प्रतनिधि छोड़ मैं आया हूँ
तेरे मन को वह बहलायेगा.
लेकिन वह भी मोह ही ...है..
'निर्वाण' में बाधा लाएगा....

जब तू सचेत हो जायेगी
मुझे दोष न तब दे पाएगी.
मेरा क्या, मै तो करूंगा
प्रतीक्षा तेरी! चिर प्रतीक्षा.

तुझे सिद्धार्थ बनकर जीना है
दायित्व मातु-पिता का ढोना है.
तुझको फिर बुद्ध बना करके
धरा के यश को फैलाऊंगा .

तुम नहीं केवल यशोधरा
तुम तो इस धरा की यश हो.
ढूंढो तुम निर्वाण जगत में
मैं पथ -निर्वाण जगत को दूंगा .

हम और तुम नहीं हैं दो
यह अंतर केवल जगत बीच .
'निर्वाण जगत' में भेद नहीं
अनंत ये सारा शून्य बीच .

अनंत और शून्य दो अति वाद हैं
इन अतिवादों से हमें बचना है.
अपनाना है हमको मध्य मार्ग
माध्यम का आदर्श बताना है.

एक बार हूँ चाहता फिर बतलाना
अविश्वास नहीं तुम मुझपर लाना.
जब तक जगत में दुःख होगा
यह बुद्ध नहीं फिर मुक्त होगा.
[Image(362)+copy.jpg]

प्रकाश  तिवारी 

12 comments:

  1. अनंत और शून्य दो अति वाद हैं
    इन अतिवादों से हमें बचना है.
    अपनाना है हमको मध्य मार्ग
    माध्यम का आदर्श बताना है.

    सन्मार्ग पर चलने की सुंदर सीख.

    ReplyDelete
  2. सुन्दर सीख देती अति उत्तम रचना।

    ReplyDelete
  3. बहुत सुन्दर ज्ञान और सीख देने वाली सुन्दर सार्थक रचना .. उम्दा

    ReplyDelete
  4. बहुत गहन और सार्थक चिंतन..

    ReplyDelete
  5. चिंतनपरक बोद्धिक रचना ! हार्दिक शुभकामनाएँ ! रश्मि जी को भी मेरा प्रणाम !

    ReplyDelete
  6. आपका स्वागत है जिज्ञासा जी ...

    ReplyDelete
  7. मध्य मार्ग बहुत ही सहज तरीके से समझा दिया...बुद्ध का प्रयोजन ही दुःख के नाश से था...जब तक दुःख रहेगा...बुद्ध नहीं मिलेगा...

    ReplyDelete
  8. क्या बात है, यह है स्तरीय काव्य,
    बधाई- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

    ReplyDelete
  9. स्तरीय रचना और गहन चिंतन

    ReplyDelete
  10. वाह ... बहुत ही अच्‍छी रचना ..प्रस्‍तुति के लिये आभार ।

    ReplyDelete

 
Top