तुमसे जुड़ा मैं
तुमसे सीखता रहा मायने
तुमने अलग कर खुद से
क्या सिखाना चाहा है .......
रश्मि प्रभा
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शाख ने कहा ............
एक टूटी हुई शाख ने ,
इक रोज़ कहा वृक्ष से ...
करना ही था अलग ,
क्यों जोड़ा मुझे
वृक्ष की पहचान से ?
हटाने से पहले ,
दे दी होती मुझ में भी
जड़ की सहायक सी श्वांस !
अलग होने का नहीं गम ,
बदले मैंने भी कई रंग
कभी पूजित हुआ ,
कभी तिरस्कृत
और कभी बन गया,
अंधे की लाठी समान !
कभी निर्बल का सहारा,
कभी अत्याचारी का बल
देखे मैंने भी कई रंग !
अगर देते रहते मुझे ,
यों ही जीवन - बल
मै भी छू लेता ,
आसमां की बुलंदी
लहराता - इठलाता
भोग पाता , जी लेता
अपना ये प्यारा सा जीवन !!!
और कभी बन गया,
ReplyDeleteअंधे की लाठी समान !
कभी निर्बल का सहारा,
कभी अत्याचारी का बल
इतने काम आने के बाद तो जीना सार्थक हो गया ...अच्छी प्रस्तुति ..
बहुत गहन निहितार्थ लिए सुन्दर रचना !
ReplyDeletewah nivedita jee.........bahut khub!!
ReplyDeleteबहुत खूब! शानदार रचना!
ReplyDeleteऔर कभी बन गया,
ReplyDeleteअंधे की लाठी समान !
कभी निर्बल का सहारा,
कभी अत्याचारी का बल
बहुत ही अच्छा लिखा है आपने ।
शाख के माध्यम से टूटने के दर्द को बहुत सही रूप में यहाँ आपने प्रस्तुत किया है ...बहुत खूब
ReplyDeleteshakh ke dard ke sahare gambher chintan
ReplyDeleteवृक्ष से टूटी शाखों का दर्द ...
ReplyDeleteबहुत खूब !
bahut sundar abhivyakti
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