मैं कुछ भी रहूँ ...
क्या फर्क पड़ता है
तुम तो सलीब पे चढ़ाना जानते हो
तो उठो-
कुछ कहने से पहले सन्नाटा बिखेर दो ...
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घोषणा से पहले _
इससे पहले कि -
मैं ;
ये घोषित कर दूँ -
डाल दो मेरे
पैरों में बेड़ियाँ !
चढ़ा दो मुझे
सूली पर ;
या फ़िर -
पिला दो
प्याला ज़हर का !
टांग के
सलीब पर ;
ठोंक दो कीलें -
मेरे ,
हाथ- पैरों पर !
इससे पहले
कि मैं;
ये घोषित कर दूँ
कि -
मैं ही धरती हूँ -
मैं ही वायु ;
आकाश, जल
और अग्नि !
मैं ही हूँ पेड़ ;
मैं ही पहाड़ ;
नदियाँ -
नौतपा;
और इन्द्रधनुष!
महौट की बारिश
भी मैं ;
जेठ का सूखा
भी मैं -
आंधी;
बवंडर -
सुनामी भी मैं हूँ !
मैं ही कनेर हूँ ,
गाजरघास हूँ ;
बेशरम का फूल -
गौतम के सिर
खड़ा हुआ बरगद भी मैं !
मैं ही दलदल हूँ;
मैं ही गड्ढे ;
कूड़ा -करकट;
कीचड़ - कचड़ा -
मैं ही हूँ !
मैं ही भूख हूँ ;
मैं ही भोजन -
मैं ही प्यास हूँ ;
मैं ही अमृत -
मैं दिखती भी हूँ ;
छिपती भी हूँ -
उड़ती भी हूँ ;
खिलती भी हूँ !
मैं देह के ,
भीतर भी हूँ -
और-
देह के बाहर भी !
मैं अनंत हूँ ;
असीम हूँ ;
अविभाज्य हूँ -
अमर हूँ मैं !
इससे पहले
कि-
मैं ये -
घोषित कर दूँ ;
मार दो गोली -
मुझे चौराहे पर !
मेरी रूह खानाबदोश है और मेरे ख्वाब आवारा ! मैं कोई हस्ती नहीं हूँ जिसे ' अबाउट मी ' कालम में बाँधा जा सके ! जो मैं आज हूँ , कल मैं वो नहीं ! मेरा एक ही नियम है कि मेरा कोई नियम नहीं! मैं हर जगह हूँ और कहीं भी नहीं ! मैं नहीं हूँ सचमुच 'मैं', नहीं मैं कुछ भी नहीं।
आह!! शानदार आत्मकथन!!
ReplyDeleteवाह ... बहुत खूब कहा है ।
ReplyDeleteआत्मविश्वास पे पहरे और जुल्म हमेशा लाहोट रहे हैं ... सुन्दर कविता !
ReplyDeleteभारत में तो ऐसा कहने वालों को सर मत्थे चढाया जाता है न कि सूली दी जाती है,चलो इस बात की खुशियाँ मनाएं कि हम भारतीय हैं !
ReplyDeletegazab ki soch....wah.
ReplyDelete@ अनिता जी, फिर मीरा को क्यूँ ज़हर का प्याला दे दिया गया ? फ़रीद,लल्ला ,दादू ,पल्टू, राबिया-अल-अदबिया ...हर किसी का तो वही हश्र हुआ है ..जिसने भी घोषणा की ! परमात्मा से मिलन और निज का बोध या कह लें मेरे 'मैं' का गुम जाना .... एक चरम आनंद है जिसकी कीमत है सूली..... और मैं तैयार हूँ ! :-)
ReplyDeleteवाह ! क्या बात है! बहुत खूब!शानदार प्रस्तुती!
ReplyDeletevaah anaektaa me aektaa kaa achcha vrnan hai mubark ho .akhtra khan akela kota rajsthan
ReplyDeleteआपने अपना तो बता दिया अब हमें भी जान लो कि हम कौन हैं ?
ReplyDeleteइस मै को ही तो जानना है….………उम्दा भावाव्यक्ति।
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ReplyDeleteओह लड़की! जरूरत नही उन्हें कि वो चढा दे हमे सूली पर .अपने सलीब खुद अपने कंधों पर लादते हैं सभी.....केवल औरत ???? एक पक्षीय न सोचो सलीब पर तो ईसा को भी चढाया गया था.जहर सुकरात को....ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति को बिना जाती,धर्म,लिंग -भेद के सूली पर चढाया गया जब भी उसने....... सब जानती हो.अच्छा लिखती हो.
ReplyDeleteसलीब उठाने की सजा जरूर स्वीकार कर ली हमने किन्तु सूली पर चढाने का साहस अब तुम्हारे इस समाज को नही होगा.गलत को गलत कहना और अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाना आता है औरत को.
अकेले जी लेती है अब वो सम्मान के साथ.
इस मीरा को जहर देने का साहस अब नही तुम्हारे भोजराज के भाई में.हा हा हा
खरी कहती हूँ.क्या करूं ? ऐसिच हूँ मैं तो.
किसी को इतनी छूट नही देती कि सूली पर चढा देने का सोच भी सके.इंदु ???नही आज की आवाज हूँ.आप सबकी.ठीक है न? प्यार.लिखती रहो.एक आग है तुममे.
वाह! अलग, हटके है यह अभिव्यक्ति तो.. धन्यवाद रश्मिजी, हमारे साथ बांटने के लिए...
ReplyDelete@ Indu ji, Thanks for ur love ma'am ! :-)
ReplyDeleteWIth due respect, I would like to clarify that I didn't talk about gender discrimination here ! Its all about freedom of a soul! A soul..that is neither male nor female ! Just a soul ! :-)
ReplyDeleteOnce again,Thank u so much for all your love n consideration.
मैं अनंत हूँ ;
ReplyDeleteअसीम हूँ ;
अविभाज्य हूँ -
अमर हूँ मैं !
बेहतरीन शब्दों का चयन बधाई , आक्रोश कुछ ज्यादा है, गोली से कम में भी प्रतिकार हो शायद.
नयी सोच के साथ अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeletebhut hi acchi sunder abhivakti...
ReplyDeleteबिलकुल नए तेवर हैं कविता के। बनाए रखें।
ReplyDelete*
वैसे कविता से ज्यादा परिचय पसंद आया।
मैं अनंत हूँ ;
ReplyDeleteअसीम हूँ ;
अविभाज्य हूँ -
अमर हूँ मैं !
बेहतरीन प्रस्तुति
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
बेहतरीन !
ReplyDeletemaate...ye sab aata kahan se hai aapko goli marne se pahle mujhe use goli maarni hai.....
ReplyDeletekabhi kabhi to kuchh dhang ka likh diya karo maate !24 ghante jahar ugalna......uffff kitna bhandaar hai aapke paas.
गोली भला क्या बिगाड़ेगी ऐसे शख्स का...
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