अपने दिल की तूने पूरी दिखाई
देश की आन क्या होती है
जान देकर बताई ....
रश्मि प्रभा
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एक साल - एक सपना - जन्मदिन स्पेशल !
देखते देखते एक और साल गुज़र गया ... व्यस्तताओं से घिरा हुआ, दुखों में डोलता, खुशियों में झूमता, कुछ उदास, कुछ मुस्कुराता, जीवन का एक और टुकड़ा ... और मैंने कहा था पिछले साल के पोस्ट में की शिवम जी के पोस्ट से मुझे यह पता चला था की आज के दिन अमर शहीद सुखदेव का भी जन्मदिन है ... तो आज आप सभी दोस्तों से एक अनुरोध है ... छोटा सा है ... please please please मना मत करियेगा ....
आइये आज हम सब, जब भी हमें समय मिले, केवल एक मिनिट के लिए अपनी आँखें बंद करके भारत माता के उस महान सपूत को याद करलें ... यह हमारी तरफ से भारत माता के लिए स्वाधीनता संग्राम में जान देने वाले उन हजारों वीरों को सम्मान प्रदान करना होगा ...
कल रात एक सपना देखा ... आज आप सबके लिए उसी सपने को मैं अपनी शब्दों में ढालने की कोशिश किया है ...
कल रात देखा
एक सपना अजीब सा !
दूर किसी गांव में,
हम और तुम,
दोनों मिलके बना रहे थे
अपने लिए एक छोटा सा झोपड़ा ।
आसपास के जंगल से
चुनके लाते
सुखी लकड़ी,
और पत्ते,
फिर उनसे बनाते हैं
दीवार और छत ...
फिर मिट्टी खोदके,
उसमें पानी मिलाकर,
गीली मिट्टी लगाते हैं
दीवार पर और
झोपड़े के अंदर
फर्श लेपते हैं ।
फिर मिट्टी के दीवारों को
रंगते हैं अपने हाथों से,
सफ़ेद, पीली मिट्टी से
अपने मन से बनाते हैं
कुछ आड़ा तिरछा चित्र ।
कितना सुन्दर है वो छोटा सा,
मगर प्यारा सा,
अपना वो "घर" ।
मगर तभी मुझे दिखता है
दूर से आता भयानक तूफ़ान ।
तेज हवा का बवंडर ।
धुल का आसमान छूता अन्धकार ।
सबकुछ उड़ा ले जाने वाला
प्रचण्ड झंजावात ।
हम डर जाते हैं ।
ऐसा लगता है कि
इतने प्यार से संजोया हुआ
ये घर बिखर जायेगा ।
ये जो सबकुछ है
जाना पहचाना सा,
ये जो हम तिल तिल करके
प्यार और मेहनत से बनाये हैं,
सब कुछ उड़ा के ले जायेगी
ये समय की हवा ।
कितना डर, कितना डर !
लेकिन फिर हम दोनों
एक दुसरे को
पकड़ते हैं अपनी बाहों में ।
कहते हैं एक दुसरे के कान में,
कि अगर बहा ले गई सबकुछ हवा,
फिर भी न हारेंगे हम,
फिर से बनायेंगे
एक नया घर ।
और जानते हो
फिर मैंने क्या देखा ?
मैंने देखा कि वो भयानक तूफ़ान
थम गया अपने आप !
जैसे हारके हमारे प्यार के सामने
चला गया वापस ।
बस ऐसा ही कुछ सपना था
शायद,
ठीक से याद नहीं है ...
क्या तुमने भी कोई देखा था
सपना ?
- इन्द्रनील भट्टाचार्जी
इन्द्रनील जी,आशाओं से भरी एक सुंदर रचना. बहुत समय बाद आपकी रचना देखने का अवसर मिला है.
ReplyDeleteखूबसूरत अभिव्यक्ति
ReplyDeleteधन्यवाद दीदी !
ReplyDeleteलेकिन फिर हम दोनों
ReplyDeleteएक दुसरे को
पकड़ते हैं अपनी बाहों में ।
कहते हैं एक दुसरे के कान में,
कि अगर बहा ले गई सबकुछ हवा,
फिर भी न हारेंगे हम,
फिर से बनायेंगे
एक नया घर ।
wahhh bahut achche...
न हारेंगे हम,
ReplyDeleteफिर से बनायेंगे
एक नया घर ।
bahut pyari si rachna........:)
ReplyDeleteफिर भी न हारेंगे हम,
ReplyDeleteफिर से बनायेंगे
एक नया घर ।
एक सकारात्मक सोच लिये बेहतरीन अभिव्यक्ति ..बधाई के साथ शुभकामनाएं ।
मन के सपनो और डर की ........बहुत अच्छी अभिव्यक्ति
ReplyDeleteइन्द्रनील जी बहुत ही सुन्दर सार्थक रचना जोश बढाती दम भरती हुयी -और अंत में तूफ़ान थम गया -कभी कभी ऐसा भी होता है हम जीत जाते हैं
ReplyDeleteकहते हैं एक दुसरे के कान में,
कि अगर बहा ले गई सबकुछ हवा,
फिर भी न हारेंगे हम,
फिर से बनायेंगे
एक नया घर ।
शुक्ल भ्रमर ५