प्यार एक इबादत है
ज़रूरी नहीं कि इबादत करने पर
खुदा आँखें खोल ही दे !
..........रश्मि प्रभा
जब तुमसे प्रेम हुआ है .......
तुमको अपना हाल सुनाने
लिख रही हूँ पाती
प्रिय प्राण मेरे
यकीन मानो
अपना ऐसा हाल हुआ है
जबसे मुझको प्रेम हुआ है !
जग का अपना दस्तूर पुराना
चरित्रहिन् कहकर देता ताना
बिठाया चाहत पर
पहरे पर पहरा
नवल है प्रीत प्रणय की
कैसे छुपाऊं
ह्रदय खोलकर अपना
कहो किसको बताऊँ
अपना भी जैसे
लगता पराया है
जबसे मुझको प्रेम हुआ है !
कौन समझाये इन नयनों को
बात तुम्हारी करते है
पलकों पर निशि दिन
स्वप्न तुम्हारे सजाते है
जानती हूँ स्वप्नातीत
है रूप तुम्हारा
मन,प्राण मेरा
उस रूप पर मरता है
जब से मुझको प्रेम हुआ है !
तुम्हारी याद में,
तुम तक पहुँचाने को
नित नया गीत लिखती हूँ
भावों की पाटी पर प्रियतम
चित्र तुम्हारा रंगती हूँ
किन्तु छंद न सधता
अक्षर- अक्षर बिखरा
थकी तुलिका बनी
आड़ी तिरछी रेखाएँ
अक्स तुम्हारा नहीं ढला है
जब से मुझको प्रेम हुआ है !
प्यार एक इबादत है
ReplyDeleteज़रूरी नहीं कि इबादत करने पर
खुदा आँखें खोल ही दे !
..............
किन्तु छंद न सधता
अक्षर- अक्षर बिखरा
थकी तुलिका बनी
आड़ी तिरछी रेखाएँ
अक्स तुम्हारा नहीं ढला है
जब से मुझको प्रेम हुआ है !
इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिये आभार ...सुमन जी को बधाई ।
भावों की पाटी पर प्रियतम
ReplyDeleteचित्र तुम्हारा रंगती हूँ
किन्तु छंद न सधता
अक्षर- अक्षर बिखरा
थकी तुलिका बनी
आड़ी तिरछी रेखाएँ
अक्स तुम्हारा नहीं ढला है
जब से मुझको प्रेम हुआ है !
निराश प्रेम की भावमय अभिव्यक्ति। सुमन जी को शुभकामनायें।
गर इबादत सच्ची हो तो नामुमकिन है कि आँख न खुले और हक़ीक़त न दिखाई दे ।
ReplyDeleteसुंदर रचना ।
किन्तु छंद न सधता
ReplyDeleteअक्षर अक्षर बिखरा ..
अवसाद और घनी उदासियों में भी प्रेम छिपता नहीं है !
प्रेम एक अभिव्यक्ति है इस दिल कि
ReplyDeleteजो छिपाने से छिप नहीं सकती
कहते है आँखे आएना है इस दिल का
जो सब बयां कर देती है .................
जब नाम तेरा प्यार से लिखती हैं उंगलियाँ ,
मेरी तरफ ज़माने की उठती हैं उंगलिया
प्रिय के विछोह में आकुल विरहिणी की व्याकुल मनोदशा का भावपूर्ण चित्रण ....
ReplyDeleteप्यार एक इबादत है
ReplyDeleteज़रूरी नहीं कि इबादत करने पर
खुदा आँखें खोल ही दे......aur aaj ki kavita dono hi behad prasanshneey.
किन्तु छंद न सधता
ReplyDeleteअक्षर- अक्षर बिखरा
थकी तुलिका बनी
आड़ी तिरछी रेखाएँ
अक्स तुम्हारा नहीं ढला है
जब से मुझको प्रेम हुआ है !
बहुत ही सुन्दर प्रेम कविता ! सुमन जी को बधाई !
सुमन जी,मीरा को भी निश्छल प्रेम की ही सजा मिली थी.प्रेम
ReplyDeleteअपराध होता नहीं है,बना दिया जाता है.जब किसी से प्रेम होता है तो दुनियां पीछे रह जाती है,सामने बस प्यार रह जाता है.
भावों का सुन्दर समन्वय्।
ReplyDeleteआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (12-5-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
रश्मि जी,
ReplyDeleteइस रचना को वटवृक्ष में
शामिल करने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद !
यह रचना भले ही एक प्रेमपत्र जैसे लगती है ,
पर सिर्फ प्रेमपत्र ही नहीं है यह उस अलौकिक, निराकार
को शब्दों में व्यक्त करने का प्रयास जो की शब्दोंमे,भावोंमे,
चित्रकारी में अभिवक्त नहीं होता अभिवेक्त करने के प्रयास में
अक्षर -अक्षर बिखर जाते है तुलिका थक जाती है !
तब भी निराकार रूप हमारे पकड़ में नहीं आता सिर्फ
उसे हम प्रेम के द्वारा महसूस मात्र कर सकते है !
मानवीय प्रेम पर खरी उतरती यह रचना अलौकिक प्रेम
पर भी खरी उतरती है ऐसा मेरा अपना मानना है !
और मेरी सभी रचनाओंमे मुझे यह रचना बहुत प्यारी लगती है !
वटवृक्ष की छाँव में इसका और भी मान बढ़ा है !
बहुत बहुत धन्यवाद !
kya kahe sab to kah diya apne bhut khubsurat...
ReplyDeleteभावों की पाटी पर प्रियतम
ReplyDeleteचित्र तुम्हारा रंगती हूँ
किन्तु छंद न सधता
अक्षर- अक्षर बिखरा
थकी तुलिका बनी
आड़ी तिरछी रेखाएँ
अक्स तुम्हारा नहीं ढला है
प्रेम की सुन्दर अभिव्यक्ति
किन्तु छंद न सधता
ReplyDeleteअक्षर- अक्षर बिखरा
थकी तुलिका बनी
आड़ी तिरछी रेखाएँ ---- दिल में उतर गईं..