मिटटी से जुडी है
हमारी असीम भावनाएं
और रेत हमें जिंदगी जीने का सबब बताती है
दोनों जुडी है भीतर तक
हमारे अंतस्थल में
रश्मि प्रभा
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चिकनी मिट्टी और रेत
चिकनी मिट्टी के नन्हें नन्हें कणों में
आपसी प्रेम और लगाव होता है
हर कण दूसरों को अपनी ओर
आकर्षित करता है
और इसी आकर्षण बल से
दूसरों से बँधा रहता है
रेत के कण आकार के अनुसार
चिकनी मिट्टी के कणों से बहुत बड़े होते हैं
उनमें बड़प्पन और अहंकार होता है
आपसी आकर्षण नहीं होता
उनमें केवल आपसी घर्षण होता है
चिकनी मिट्टी के कणों के बीच
आकर्षण के दम पर
बना हुआ बाँध
बड़ी बड़ी नदियों का प्रवाह रोक देता है,
चिकनी मिट्टी बारिश के पानी को रोककर
जमीन को नम और ऊपजाऊ बनाए रखती है;
रेत के कणों से बाँध नहीं बनाए जाते
ना ही रेतीली जमीन में कुछ उगता है
उसके कण अपने अपने घमंड में चूर
अलग थलग पड़े रह जाते हैं बस।
धर्मेन्द्र कुमार सिंह ‘सज्जन’
http://www.dkspoet.in/
चिकनी मिट्टी के कणों के बीच
ReplyDeleteआकर्षण के दम पर
बना हुआ बाँध
बड़ी बड़ी नदियों का प्रवाह रोक देता है,
बहुत खूब ... गहन भावो के साथ बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
बिलकुल सच कहा है..............जुड़ाव और बिखराव ही में तो सब निहित है.......प्यार है ,लगाव है तो सब अच्छा ................दर्प है,अलगाव है तो सब सूना .बढ़िया रचना !!!
ReplyDeleteचिकनी मिट्टी के कणों के बीच
ReplyDeleteआकर्षण के दम पर
बना हुआ बाँध
बड़ी बड़ी नदियों का प्रवाह रोक देता है,
चिकनी मिट्टी बारिश के पानी को रोककर
जमीन को नम और ऊपजाऊ बनाए रखती है;
बहुत गहन अभिव्यक्ति -
कल्पना और मन जुड़ने पर अद्भुत काव्य बनता है .
बधाई आपको इतनी सुंदर कविता के लिए .
अहंकार और अपनत्व के मूल्यों का दर्शन!!
ReplyDeleteसज्जन जी सार्थक गहन दर्शन,
रश्मि जी इस प्रस्तुति के लिये आभार……!!
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सुज्ञ: जीवन का लक्ष्य
बहुत सार्थक भावों को अभिव्यक्ति दी है .....'चिकनी मिट्टी और रेत'के माध्यम से अपनी सुन्दर कविता में |
ReplyDeleteसुन्दर भाव ... नए बिम्ब !
ReplyDeleteभाव नए ....सोच नयी ...बहुत खूब
ReplyDeleteपर मन की जड़े आज भी अपने अतीत को
तलाशी हुई सी क्यों है ?
अपनेपन कि ये तड़प आज भी क्यूँ है ?
bhut sunder bhaavo se saji panktiya hai...
ReplyDeleteगहन भावो के साथ बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteगहन भाव .... मन में जब तक नमी न हो सब रेतीला ही रह जाता है
ReplyDeleteभावनाओं की शुष्कता कहाँ किसी को जोड़े रख सकती है !
ReplyDeleteसदा जी, निधि जी, अनुपमा जी, सुज्ञ जी, सुरेन्द्र जी, इंद्रनील जी, अंजू जी, शुषमा जी, अरुण जी, संगीता जी, वाणी जी एवं वंदना जी रचना पसंद करने एवं उत्साहवर्धन हेतु कोटिशः धन्यवाद
ReplyDeleteबहुत बढ़िया तुलनात्मक सत्य
ReplyDeleteगहन भावो के साथ बेहतरीन अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteबधाई सुंदर कविता के लिए.
धर्मेन्द्र भाई की बेहतरीन कविताओं में शुमार करूँगा मैं इस कविता को| वाकई बहुत ही संवेदनशील और सीधे संवाद करती उत्तम काव्य प्रस्तुति|
ReplyDeletesunder bimbo se jingi ka falsafa sikhati sarthak rachna.
ReplyDeleteएक अलग प्रतिबिम्ब मिटटी का मानवीय रिश्तों के साथ ...............वाह खूबसूरत कविता .
ReplyDeleteइस्मत जी, रचना जी, नवीन भाई, अनामिका जी एवं नीलम जी रचना पसंद करने के लिए आप सबका बहुत बहुत आभार।
ReplyDeleteधर्मेन्द्र भाई
ReplyDelete"चिकनी मिट्टी के कणों के बीच
आकर्षण के दम पर
बना हुआ बाँध
बड़ी बड़ी नदियों का प्रवाह रोक देता है"
एक नई बिम्ब योजना से उभरता हुआ सार्थक सन्देश.
शुक्रिया राजीव जी
ReplyDeletebahoot khoob bina ahankar ke hi ek doosare se judav ho sakta hai...
ReplyDeleteशुक्रिया कविता जी
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