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चलो आज फिर उनके कुचे में जाएँ | उन्हें हम बुलाएँ उन्हें हम हंसाये | किस कदर दुनियां से दूर रहते हैं ये सब | फिर भी कहते हैं यहाँ ... मेरे ही तो हैं सब | क्यु इनकी दुनियां इनसे इतनी खफा है | सब हैं इनके फिर भी इनसे जुदा हैं | यही दस्तूर हैं शायद घर बनाने वालों का | बनाने वाला हमेशा बरामदों में खड़ा है | इनकी हिम्मत ही इनके जीने का हैं मकसद | वर्ना दिल तो इनका कबका छलनी हुआ है | क्यु दर्द देतें हैं अपने अपनों को इस कदर | क्या कोई कभी इनसे हुई कुछ खता है ? फिर भी है जन्मदाता इन्हें क्यु सताना | इनकी छोटी भूल पर भी इन्हें गले तुम लगाना | इनकी उम्र में अपने बचपन को देखो | खुद को माँ - बाप इनकों बच्चा ही तुम समझो | बहुत अकेले हैं ये इन्हें कुछ तो...


मीनाक्षी पन्त
http://duniyarangili.blogspot.com/



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दर्द का कतरा आँखों में सूख चला है
दर्द इतना गहरा
कि जुबां भी खामोश है




रश्मि प्रभा
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आदमजात !


अकेलेपन की त्रासदी ,
उस बुढ़िया की आँखों से
झाँक रही थी !
मेरे घर आयी थी वो -
काम मांगने !
बेटा , झाड़ू,पोछा कर दूँगी
बर्तन भी धो दूंगी
मेरा कोई नहीं है !
कृशकाय, कमजोर देह को ढांपे
एक झिलंगी साड़ी में उसे देखकर
पूछा मैंने -
घर में कौन - कौन है !
दो बेटियां , एक बेटा ,बहू
और दो नाती -पोते
'फिर भी काम ढूँढ रही हो '!
पूछा मैंने .
आँख भर आई उसकी
रोते हुए कहा -
बहू खाने को नही देती
मारती है !
'बेटा कुछ नही कहता !'
फिर पूछा मैंने !
"चुप" कुछ नही कहा उसने .
सोचता रह गया मैं
क्या हम आदमजात हैं !
[Photo0019.jpg]
रूप
जीवन के पथ पर चलते हुए,जो महसूसा,अपनी किंचित बुद्धि से जिनका भान कर पाया,अपने अचेतन को चेतना मे परिवर्तित करने का प्रयास कर पाया,
उसीकी प्रस्तुति हेतु प्रस्तुत हूँ आपके समक्ष !

12 comments:

  1. किसने कहा आदमजात हैं हम?बेहद मार्मिक और सटीक चित्रण्।

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  2. सोचता रह गया मैं
    क्या हम आदमजात हैं !

    सच कहती हुई ...विचारणीय प्रस्‍तुति ।

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  3. वृद्धत्व की त्रासदी को धरातल पर उकेर दिया!!

    मार्मिक!!

    इस प्रस्तुति के लिये आभार!!

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  4. लोग भूल जाते हैं कि यही अंजाम एक दिन उनका भी होना है ...
    मार्मिक !

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  5. मार्मिक , त्रास्दी के लिये हम खुद ही जिम्मेदार हैं। दोल को छू गयी रचना। मीनाक्षी जी को शुभकामनायें।

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  6. बहुत मार्मिक रचना..अंतस को झकझोड़ देती है..

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  7. बेटे बहू ने जो किया सो किया। समाज ने क्या किया?

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  8. दर्द का कतरा आँखों में सूख चला है
    दर्द इतना गहरा
    कि जुबां भी खामोश है...

    दर्द को ज़ुबां दी है इन शब्दों ने!
    तीनों रचनाये कमाल हैं!

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  9. dard ka ye katra janlewa hota hai......

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  10. waha bahut khub ...marmsprshi parstuti

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  11. एक ऐसी परंपरा की तस्वीर जो मार्मिक होने के साथ-साथ बहुत भयावह है.समय रहते यदि सुधार नहीं कर पाए तो यह परमाणु विस्फोट से भी अधिक त्रासद होगा.एक संदेशपरक रचना के लिए रूप जी को ढ़ेरों बधाई.

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