चुनो अपनी राहें
फकत मुकद्दर पर जिन्दा रहना , निकम्मापन और बुझदिली है !अमन की दुनियां मै मेहनत करके , अपना हिस्सा वसूल करलो तुम !उजड़ जायेगा चमन ये बाक़ी , गर और कांटें न हटाओगे तुम !गुलिस्तान की गरचे खेर चाहो , तो चंद कांटें कबूल करलो तुम ----- मीनाक्षी पन्त
http://duniyarangili.blogspot.com/
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गर है आँखें बुलंदियों पे
हर शाख अपनी है
आज थर्राते हैं पाँव
पर कल हमारा है
रश्मि प्रभा
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फिर परिंदा चला उड़ान पे है
फिर परिंदा चला उड़ान पे है
तीर हर शख्स की कमान पे है
फ़स्ल की अब खुदा ही खैर करे
पासबाँ आजकल मचान पे है
तब बदलना नहीं ग़लत उसको
जब लगे रहनुमां थकान पे है
हैं निगाहें बुलन्दियों पे मेरी,
क्या हुआ पाँव गर ढलान पे है
धार शमशीर पर करो अपनी
ज़ुल्म का दौर फिर उठान पे है
शहर के घर में यूं तो सब कुछ है’
पर सुकूँ, गाँव के मकान पे है
बात “नीरज” तेरी सुनेंगे सभी
जब तलक चाशनी ज़बान पे है
नीरज गोस्वामी
मुम्बई, महाराष्ट्र,
http://ngoswami.blogspot.com/
अपनी जिन्दगी से संतुष्ट,संवेदनशील किंतु हर स्थिति में हास्य देखने की प्रवृत्ति.जीवन के अधिकांश वर्ष जयपुर में गुजारने के बाद
अपनी जिन्दगी से संतुष्ट,संवेदनशील किंतु हर स्थिति में हास्य देखने की प्रवृत्ति.जीवन के अधिकांश वर्ष जयपुर में गुजारने के बाद
फिलहाल भूषण स्टील मुंबई में कार्यरत,कल का पता नहीं।लेखन स्वान्त सुखाय के लिए
गर है आँखें बुलंदियों पे
ReplyDeleteहर शाख अपनी है.......ekdam theek bolin aap.
हैं निगाहें बुलन्दियों पे मेरी,
ReplyDeleteक्या हुआ पाँव गर ढलान पे है
yahi sach hai......
नीरज जी की बेहद खूबसूरत गज़ल ....आभार
ReplyDeletebahut hi accha sandesh deti rachna....
ReplyDeleteगर है आँखें बुलंदियों पे
ReplyDeleteहर शाख अपनी है
आज थर्राते हैं पाँव
पर कल हमारा है
..............
फिर परिंदा चला उड़ान पे है
तीर हर शख्स की कमान पे है
फ़स्ल की अब खुदा ही खैर करे
पासबाँ आजकल मचान पे है
बेहद खूबसूरत ...!
पढ़ी हुई ग़ज़ल है आपकी नीरज जी
ReplyDeleteपर वटवृक्ष पर पुनः बधाई .
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteनीरज जी की यह ग़ज़ल मैंने उनके ब्लॉग पे पढ़ी थी ... मुझे यह ग़ज़ल बहुत अच्छी लगी ... आज भी पढकर मुंह से वाह निकल गया ... इसके हर शेर काबीले तारीफ़ है ...
ReplyDeleteशहर के घर में यूं तो सब कुछ है’
ReplyDeleteपर सुकूँ, गाँव के मकान पे है
kammal ke sher kahe hain aapne
badhai kabule
नीरज जी को पढना सुखद अनुभूति देता है…………शानदार गज़ल्।
ReplyDeleteहैं निगाहें बुलन्दियों पे मेरी,
ReplyDeleteक्या हुआ पाँव गर ढलान पे है
bahut sundar ...
bahut khub niraj ji....aapko padhna accha laga
ReplyDeleteprakhar lekhani ka spsta aur
ReplyDeletemukhar andaj .shukriya ji
शहर के घर में यूं तो सब कुछ है’
ReplyDeleteपर सुकूँ, गाँव के मकान पे है kya bat hai....sari suvidhaon ke beech bhi gaon yad aa hi jata hai..