दायरे... एक लम्बी यात्रा करनी है....हमारे वक्त में जो मासूमियत हुआ करती थीउसके बीज ढूंढने हैं...रात को जब सब नींद के आगोश में होंगेतब हर आँगन में एक बीज लगाउंगीख्वाहिश है ,...ओस की नमी से पनपी,भोर की पहली किरण से निखरी मासूमियतहर आँगन में खिलखिलाएऔर लम्हों में एक सुकून भर जाए...रश्मि प्रभा ==========================================दायरे==========================================बचपन में कभी कभीटूटे पंख घर ले आती थीअब्बू को दिखाती थी..अब्बू यूँ ही कह देते-......"इसे तकिये के नीचे रख दोऔर सो जाओसुबह तक भूल जाओवो दस रुपये में बदल जाएगाबाज़ार जानाजो चाहे खरीद लाना..."मैं ऐसा ही करती ...रात में अब्बू चुपके सेपंख हटा कर दस रुपये रख देते..सुबह उठते ही बेसब्री सेदुकाने खुलने का इंतज़ार करतीकोई एक मासूम सा सपनाखरीद लाती ..........वो सोच कर आज मैंएक उदास हंसी हंस देती हूँ....अब चाहे कितने ही टूटे हुए पंखकितने ही रुपयों में क्यूँ न बदल जाएंवो मुस्कराहटवो ख़ुशीनहीं खरीद सकते.....हमारी बेहद ख्वाहिशेंज़रुरत से ज़्यादा बड़े सपनेइनके दायरे में नहीं समाते ........या फिर यूँ कहेंकिसी दायरे में नहीं समाते....()क्षितिजा शिक्षा : MPhil (Clinical Psychology),शौक :संगीत का शौक है ...कत्थक सीखा है ...शास्त्रीय संगीत (गायन) भी सीखा है ...पेंटिंग्स भी बनती हूँ ...पढने का भी शौक है ...और थोडा बहुत लिख भी लेती हूँ ...email id : xitija.singh@gmail.com दायरे... एक लम्बी यात्रा करनी है.... हमारे वक्त में जो मासूमियत हुआ करती थी उसके बीज ढूंढने हैं... रात को जब सब नींद के आगोश में होंगे तब हर आँगन में... Read more » 11:00 AM