माना सन्नाटा गहरा और लम्बा रहा
पर चुप की जुबान पर
शहद से शब्द थे, हैं ...
गलती तुम्हारी है सौ प्रतिशत
तुम दरवाज़े तक आये नहीं
तो शब्द .......
इंतज़ार बन गए !
तुमने सोचा ही नहीं
जिम्मेदारियों की परेशानियां
सबके घर आती हैं
मेरे घर भी आयीं
लम्बी छुट्टियां ले
डेरा बसा लिया
और तुमने सोचा हम गुम हो गए !!!
धत्त-
एहसास कहाँ गुम होते हैं
वे तो जिम्मेदारियों के संग
वक़्त की तलाश करते हैं
.........
तो हमने तलाशा है वक़्त
कहना जो है बहुत कुछ ...
देना है विश्वास -
जब तक है जान हम आयेंगे
लम्हा लम्हा आपकी खिदमत में रख जायेंगे
......
गहरे अर्थों वाली उद्वेलित करती रचना.रश्मि जी बधाई.
ReplyDeleteहर लम्हे सहेजे आपने जो मोती
ReplyDeleteउन्हें हम तो हक से ले जाएँगे
सादर
बहुत सुन्दर गहन भाव पूर्ण प्रस्तुति बहुत बढ़िया बधाई आपको
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ReplyDeleteसन्नाटे कि अपनी अलग ही जुबां होती है... बस समझने की ज़रूरत है... रश्मि जी , बहुत भा पूर्ण काविता!
ReplyDeleteमाना सन्नाटा गहरा और लम्बा रहा
ReplyDeleteपर चुप की जुबान पर
शहद से शब्द थे, हैं ....
रहेगें भी ....
मेरी निगाहों को भी इंतजार था ..... !!
गहन उदासी को मात देती एक सकारात्मक सोच ...बहुत ही उम्दा
ReplyDeletebahut gehre bhav ki sunder rachna
ReplyDeleteआज बहुत दिन बाद किसी ब्लॉग-पोस्ट को पढ़ रहा हूँ , और वापसी इस सुन्दर कविता के साथ बहुत सुखद रही |
ReplyDeleteधन्यवाद
सादर
एहसास कहाँ गुम होते हैं
ReplyDeletesahee kahaa,....sundar rachna
एहसास कहाँ गुम होते हैं
ReplyDeleteवे तो जिम्मेदारियों के संग
वक़्त की तलाश करते हैं
.........
बहुत सुंदर
जिम्मेदारियों की परेशानियों के बीच भी याद रखे गए एहसास वक़्त तलाश लेते हैं .
ReplyDeleteबहुत बढ़िया !
बढ़िया -
ReplyDeleteआभार आदरेया ।।
बहुत खूब
ReplyDeleteगहन अभिव्यक्ति सुन्दर , खूबसूरत प्रस्तुति
ReplyDeleteचिंगारी जब तक रहेगी राख के भीतर ..अंधेरों से लड़ने की ख़्वाहिश बनी रहेगी। यह जिजीविषा है हमारी जो हमें हर हाल में उम्मीदों का दिया जला के रखती है।
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी रचना के लिये साधुवाद!
gahan abhivyakti:)
ReplyDeleteगहरे अर्थ बताती रचना..
ReplyDeleteलम्बी छुट्टियां ले
ReplyDeleteडेरा बसा लिया
और तुमने सोचा हम गुम हो गए !!!
धत्त-
एहसास कहाँ गुम होते हैं
वे तो जिम्मेदारियों के संग
वक़्त की तलाश करते हैं
देना है विश्वास -
ReplyDeleteजब तक है जान हम आयेंगे
लम्हा लम्हा आपकी खिदमत में रख जायेंगे
हर शब्द एक विश्वास को जीता हुआ ....
सादर
सन्नाटा कभी कभी बोलता भी है...
ReplyDeleteएहसास कभी गुम नहीं होते... बहुत भावपूर्ण... बधाई.
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