देख अब साख ने अपने पत्ते
छोड़ दिए है तेरी याद में 
तुम कब आओगे,
ये पतझड़ पूछे है बहार से ..............
कोई आस नहीं लगती है 
तुम्हारे लौट आने की,
क्या भूल गए तुम
मुझको उन अन्जानों में .........
कुछ भेजो अपनी निशानी
इन उड़ते परिन्दों के साथ,
फोन न करो या
कोई संदेश न भेजो,
कोई कागज़ का टुकड़ा ही
भेज दो डाकिये के हाथ ......
जमाना बदल गया है समय के साथ,
तुम क्यूँ बदल गए हो 
ज़माने के साथ ........
लोग पूछते है
तुम्हारी हाल खबर,
मन ही मन चुभते है
ये मेरे मन को,
पर हँस न पडे ये ज़माना
कहीं मेरी बेबसी पर 
हंस के कह देती हूं
आने वाले ही है वो 
मेरे आशियानें में ........
फिर न जायंगे वो लौट कर
मेरे मयख़ाने से ......
कब तक यूँही झूठी तसल्ली
देती रहूँगी खुद को .....
जानती हूँ अब न अओंगे
तुम लौट कर ......
दिल यूँही तड़पता
रहेगा तेरी याद में .....
मौसम ऐसे ही आते जाते रहेंगे .....
ये सावन ये बादल
तुमको ऐसे ही बुलाते रहेंगे .....
तुम कब आओगे,
पतझड़ ऐसे ही बहारों से पूछा करेंगे !


() विधू यादव


संक्षिप्त परिचय : 
जन्म : 03-11-1990/जन्मस्थान : लखनऊ / शिक्षा : एमएस॰ सी॰ (मास कॉम्युनिकेशन)/ सम्प्रति :साइंस कॉम्नीकेटर एवं स्वतंत्र लेखन/ लेखन : मई 2011 से रचनाएँ प्रकाशित/15 से अधिक लेख एवं कविताएँ विभिन्न अख़बारों एवं इन्टरनेट पर / भाषा ज्ञान : हिंदी, अंग्रेजी / पता : नई आबादी , शाहखेडा रोड,अर्जुनगंज,लखनऊ-226002(उत्तरप्रदेश)/
ईमेल : vidhuyadav9999@gmail.com

5 comments:

  1. आपका इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (17-11-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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  2. बहुत सुंदर ...लिखते रहें ..

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  3. विरह वेदना की कोमलतम अभिव्यक्ति..
    भावपूर्ण रचना...

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  4. आस....जीने के लिए ज़रूरी है.

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  5. बड़ी ही प्रभावी रचना..

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