मोहब्बत का प्रतीक करवाचौथ ......जिस जमीं पर मोहब्बत साँस लेती है उसकी सलामती की दुआ ख़ुद ब ख़ुद दिल कर उठता है ....पर जहां ज़मीं रुखी और खुरदरी हो ....हवाएं विपरीत दिशा में बह रही हो ....वहाँ ...ये रिश्ते सिर्फ़ रस्म का जमा पहन लेते हैं .......
करवाचौथ ..........
वह फ़िर जलाती है
दिल के फांसलों के दरम्यां
उसकी लम्बी उम्र का दीया ...
कुछ खूबसूरती के मीठे शब्द
निकालती है झोली से
टांक लेती है माथे पे ,
कलाइयों पे , बदन पे .....
घर के हर हिस्से को
करीने से सजाती है
फ़िर....गौर से देखती है
शायद कोई और जगह मिल जाए
जहाँ बीज सके कुछ मोहब्बत के फूल
पर सोफे की गर्द में
सारे हर्फ़ बिखर जाते हैं
झनझना कर फेंके गए लफ्जों में
दीया डगमगाने लगता है
हवा दर्द और अपमान से
काँपने लगती है
आसमां फ़िर
दो टुकडों में बंट जाता है ....
वह जला देती है सारे ख्वाब
रोटी के साथ जलते तवे पर
छौक देती है सारे ज़ज्बात
कढाही के गर्म तेल में
मोहब्बत जब दरवाजे पे
दस्तक देती है
वह चढा देती है सांकल ....
दिनभर की कशमकश के बाद
रात जब कमरे में कदम रखती है
वह बिस्तर पर औंधी पड़ी
मन की तहों को
कुरेदने लगती है ....
बहुत गहरे में छिपी
इक पुरानी तस्वीर
उभर कर सामने आती है
वह उसे बड़े जतन से
झाड़ती है ,पोंछती है
धीरे -धीरे नक्श उभरते हैं
रोमानियत के कई हसीं पल
बदन में साँस लेने लगते हैं ....
वह धीमें से ....
रख देती है अपने तप्त होंठ
उसके लबों पे और कहती है
आज करवा चौथ है जान
खिड़की से झांकता चौथ का चाँद
हौले -हौले मुस्कुराने लगता है .....!!
दर्दभरी नज़्म
ReplyDeleteवह धीमें से ....
ReplyDeleteरख देती है अपने तप्त होंठ
उसके लबों पे और कहती है
आज करवा चौथ है जान
खिड़की से झांकता चौथ का चाँद
हौले -हौले मुस्कुराने लगता है ...बहुत उत्कृष्ट रचना,,,,
सभी ब्लॉगर परिवार को करवाचौथ की बहुत बहुत शुभकामनाएं,,,,,
RECENT POST : समय की पुकार है,
बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........
ReplyDeleteबहुत मर्मस्पर्शी रचना ...
ReplyDeleteप्रस्तुति हेतु आभार
gahan abhiwyakti....
ReplyDelete"मुस्कुरा उठी मोहब्बत आँसुओं में भी...,
ReplyDeleteमाज़ी के एक लम्हे ने... फिर प्यार से पुकारा जो उसे..."
~बहुत बहुत खूबसूरत नज़्म ... दिल को छू गयी, आँखों की कोरों को नम कर गयी...
~सादर !
इतना प्यार देखकर चाँद भी खिल उठता होगा।
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