संस्कारों की जीत पंछी जैसे आजाद उड़ने की ख्वाहिश पर बेड़ियाँ हैं पैरों में पितृसत्तात्मक समाज की चाह कर भी वो नहीं उड़ पाती पंख फड़फड़ाते और आँख भर आती मन कहता उसका,बगावत करने को तभी गूँजने लगती कानों में माँ की शिक्षा और संस्कार देने लगते दुहाई ठण्डी आह भर कर पुनः कोशिश करती लड़ती अपने विचारों से आखिर जीत जाते संस्कार और हार जाती वो आदर्श समझाते और समझ जाती वो सीता,द्रौपदी को सम्मुख खड़ा पाकर गला घोट देती स्वयं अपने अरमानों का पुनः एक बार फिर जूझ जाती दुगने उत्साह से क्योंकि शायद यही है उसकी नियति
डॉ. प्रीत अरोड़ा
जन्म – २७ जनवरी. शिक्षा- एम.ए. हिंदी पंजाब विश्वविद्यालय से हिंदी में दोनों वर्षों में प्रथम स्थान के साथ और मृदुला गर्ग के कथा-साहित्य में नारी-विमर्श पर शोध-कार्य . कार्यक्षेत्र-. अध्ययन एवं स्वतंत्र लेखन व अनुवाद।यंग और बेस्ट हिंदी लेखन के लिए राजीव गाँधी एक्सीलेंस अवार्ड (2012) और अंतरजाल पर हिंदी को प्रतिष्ठापित करने की दिशा में किये गए उल्लेखनीय कार्य हेतु परिकल्पना ब्लॉग प्रतिभा सम्मान (2011) से सम्मानित । संप्रति अध्यापन एवं स्वतंत्र लेखन के साथ वटवृक्ष के साक्षात्कार अंक के संपादन में सक्रीय ।
आप सभी का कोटि कोटि धन्यवाद.आपका प्यार और शुभकामनाएं मेरे जीवन की पूँजी है.आदरणीय प्राण जी नमन.आपकी छत्रछाया में रहकर आगे बढ़ना चाहती हूँ आपका स्नेह सदैव ऐसे ही बना रहे.प्राण जी आपको आपकी किताब के लिए हार्दिक बधाई.धन्यवाद
औरतों कि सामाजिक स्थिति दर्शाती सुन्दर कविता
ReplyDeleteसंस्कारो में जकड़ी बेबस स्त्री.. बहुत सुन्दर प्रस्तुति..
ReplyDeleteसटीक चित्रण ...
ReplyDeleteSAHAJ SHABDON MEIN SAHAJ BHAVANUBHUTI
ReplyDeleteBEBAS STREE PAR SASHAKT KAVITA KE LIYE PRASIDDH RACHNAKAAR DR.PREET
ARORA KO BADHAAEE AUR SHUBH KAMNAAYEN
आप सभी का कोटि कोटि धन्यवाद.आपका प्यार और शुभकामनाएं मेरे जीवन की पूँजी है.आदरणीय प्राण जी नमन.आपकी छत्रछाया में रहकर आगे बढ़ना चाहती हूँ आपका स्नेह सदैव ऐसे ही बना रहे.प्राण जी आपको आपकी किताब के लिए हार्दिक बधाई.धन्यवाद
ReplyDeleteस्त्री मुक्ति के नारों के बीचऐसी कवितायेँ पढ़ाना सुखद है. संस्कार बचे रहे, यह ज़रूरी है वाह, क्या बात है. बधाई
ReplyDeletebehtareen..
ReplyDeleteनारी मन के अंतर्द्वंद का सुन्दर चित्रण किया है बहुत अच्छा लका है बधाई
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ReplyDeleteपितृसत्तात्मक समाज की बेड़ियाँ काटना कितना कठिन है, यह इस कविता के माध्यम से बताने की सफल कोशिश की गयी है । अच्छी कविता के लिए बधाई ।
- शून्य आकांक्षी
नारी मन को प्रतिबिंबित करती रचना । स्त्रियों पर थोपी गई वर्जनाओं के प्रति असमति जताती हुई सी लगती है। बहुत अच्छी रचना के लिए बधाई।
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