स्मृतियों नें
अनुभवों के ताने बाने से
जीवन को बुना
बुनते बुनते
कुछ धागे टूटे,
कुछ छूटे,
कुछ जीवन में समाहित होकर
हमें एहसास दिलातें हैं की,
जीवन का माधुर्य
सुख और दुःख
इन दो अहम घटकों
पर आधारित है
किसी एक घटक के आभाव में ,
जीवन सुखद नहीं लगता,
मानो जीवन से जी ऊब सा गया हो
और तब वह जीवन,
नीरव वन सा डरावना लगता है.
() सत्यनारायण सिंह
पूरा नाम : सत्यनारायण शिवराम सिंह/ जन्म :२७ अक्टूबर, १९५८ को मुंबई में/ शिक्षा :मुंबई विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि/ कार्यक्षेत्र : तकनीकी शिक्षा निदेशालय, महाराष्ट्र राज्य, मुंबई में अधिक्षक पद पर कार्यरत हिंदी, मराठी, अंग्रेजी व उर्दू भाषायें अवगत था साहित्य की ओर रूझान। विविध वेब पत्रिकाओं में स्वरचित रचनाओं का निरंतर प्रकाशन। गज़ल, शृंगार एवम् हास्य रस की कविताएं पढ़ना, सुनना तथा उन्हें संकलित करने के साथ साथ अध्यात्म व ईश्वरीय चिंतन में विशेष रूचि है ।
सुख और दुःख ही तो हर नाटक का कथानक है...इनके बिना ज़िन्दगी बेमानी है...
ReplyDeleteअनुभव धागों के टूटने
ReplyDeleteउलझने और सुलझने का !
bahut badiya prastuti ...
ReplyDeleteaabhar
किसी एक घटक के आभाव(अभाव ) में ,........अभाव .....
ReplyDeleteजीवन सुखद नहीं लगता,
मानो जीवन से जी ऊब सा गया हो
और तब वह जीवन,
नीरव वन सा डरावना लगता है.
अभी सुख है अभी दुःख है ,अभी क्या था ,अभी क्या है ,
जहां दुनिया बदलती है उसी का नाम दुनिया है .
यहाँ बदला वफा का बे -वफाई के सिवाय क्या है .
मोहब्बत करके भी देखा मगर उसमें भी धोखा है .
जीवन के उतार चढ़ाव से सिंचित रचना .सुन्दर मनोहर .
ram ram bhai
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मंगलवार, 2 अक्तूबर 2012
ये लगता है अनासक्त भाव की चाटुकारिता है .
nice post
ReplyDeleteसत्य है सुख ..दुःख ही तो जीवन है
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