आज से शारदीय नवरात्र का शुभारंभ हो
रहा है। शरद ऋतु की शुरुआत हो रही है, बारिश का मौसम बिदा हो रहा है। कोई
इसे पूरी धार्मिकता के साथ नौ दिन उपवास रखकर मनाता है तो कोई इसे नारी शक्ति के
रूप मे ध्यान केन्द्रित कर।कोई बुरी घटनाओ के निकष पर औरत की अस्मिता को रख कर
देखता है तो कोई पुरुषों के मुकाबले में उसके समर्पण को बड़ा मानकर । कुल मिलाकर
देखा जाये तो नवरात्र नारी शक्ति की आराधना का प्रतीक है । चर्चित रचनाकार गिरीश
पंकज का मानना है कि "मै पूजा-वगैरह तो नहीं करता, लेकिन जीवंत देवियों को
नमन ज़रूर करता हूँ।" प्रस्तुत है उनकी एक कविता :
दिव्य है, महान है स्त्री....
शक्ति का संधान है स्त्री
ईश का वरदान है स्त्री
खुशबुओ से जो महकती है
एक वह उद्यान है स्त्री
देवता जिसकी शरण में है
धरा पे भगवान है स्त्री
मत नज़र डालो बुरी इस पे
हम सभी की शान है स्त्री
है तुम्हारी माँ, बहन, बेटी
उनके जैसी आन है स्त्री
फूल को मसलो नहीं पूजो
सृष्टि का अवदान है स्त्री
वासना जिनकी रही पूजा
उनके लिए सामान है स्त्री
गाय, गंगा और धरती माँ
दिव्य है, महान है स्त्री।
गिरीश पंकज
एक जनवरी 1957 को भोले बाबा की नगरी बनारस में जन्मे पंकज ने हिंदी साहित्य से परास्नातक की उपाधि प्राप्त
की। पत्रकारिता स्नातक
परीक्षा में वे
प्रावीण्य सूची मे प्रथम रहे। लोक संगीत-कला में डिप्लोमा किया। उनके नाम आठ व्यंग्य संग्रह, तीन व्यंग्य उपन्यास समेत कुल बत्तीस पुस्तकें हैं। पिछले पैंतीस सालों से पत्रकारिता और साहित्य
में सक्रिय हैं। उन्हें लखनऊ का अट्टहास सम्मान, दिल्ली का रमणिका फाउंडेशन सम्मान, भोपाल का रामेश्वर गुरू सम्मान, पंजाब का लीलारानी स्मृति सम्मान प्राप्त हो चुका है। ब्लॉग लेखन के लिये ''ई टिप्स'' और ''परिकल्पना''
द्वारा हाल ही में
सम्मानित।
इनका
ब्लॉग है : http://sadbhawanadarpan.blogspot.in/
मत्तगयन्द सवैया
ReplyDeleteनारि सँवार रही घर बार, विभिन्न प्रकार धरा अजमाई ।
कन्यक रूप बुआ भगिनी घरनी ममता बधु सास कहाई ।
सेवत नेह समर्पण से कुल, नित्य नयापन लेकर आई ।
जीवन में अधिकार मिले कम, कर्म सदा भरपूर निभाई ।।
navratri ki shubhkamnayein
ReplyDeleteपंकज जी, की रचनाएँ हमेशा ही लाजबाब होती है,,,
ReplyDeleteनवरात्रि की शुभकामनाएं,,,,
RECENT POST ...: यादों की ओढ़नी
पंकज जी की एक और बेहतरीन रचना
ReplyDeleteकोई शक...नारी को खुद अपनी शक्ति पर अब भरोसा हो रहा है...
ReplyDeleteवाह...ये तो चमत्कार-सा लग रहा है कि मेरी रचना को इतना महत्त्व दिया जाये. मैं नतमस्तक हूँ. आभार.
ReplyDeleteदिव्य है, महान है स्त्री....
ReplyDeleteशक्ति का संधान है स्त्री
ईश का वरदान है स्त्री
खुशबुओ से जो महकती है
एक वह उद्यान है स्त्री
देवता जिसकी शरण में है
धरा पे भगवान है स्त्री
बहुत बहुत सुंदर
कविता गागर मे सागर है।
ReplyDeleteGIREESH JI , AAPKEE KAVITA PADH KAR
ReplyDeleteMAIN AANANDIT HO GAYAA HUN . DHERON
BADHAAEEYAN AUR SHUBH KAMNAAYEN .