तुम्हारा मेरा साथ
एक आत्मिक यात्रा,
तुम्हारा संतृप्त स्नेह
दिव्य उड़ान
और अब तुम्हारा अभाव भी
एक आध्यात्मिक साधना है
जो मेरे अन्तर में प्रच्छ्न्न,
मंदिर में दीप-सी
और मंदिर के बाहर
सूर्य की किरणों-सी
मेरे पथ को सदैव
दीप्तिमान किए रहती है ।
हमारे इस अभौतिक पथ पर
कोई पगडंडी पथरीली,
कोई कँटीली,
चढ़ाव और ढलान --
एक दूसरे का सहारा लिए
हम कभी फिसले नहीं थे ।
काँटों की चुभन भी तब
अच्छी लगती थी
और पत्थर भी
हमें पत्थर नहीं लगते थे ।
किसी रहस्य से विस्मित करती
हम दोनों को बाँधे रही वह यात्रा,
और हम बंधे रहे संपृक्त
युगान्तक तक,
सामाजिक संविधान से संविदित,
प्रचण्ड आँधी के आने तक,
बिजली के गिर जाने तक,
जलते पेड़ों के अंगारे
और अब कोई आँधी नहीं,
बिजली नहीं,
उन अंगारों की ठंडी
रा ख भी नहीं...
बस है विधि की विडंबना,
जो भौतिक अभाव में भी
आत्मिक स्तर पर
मुझको बाँधे रखती है तुमसे ।
हमारी वह निष्कलंक यात्रा
मेरे ख़्यालों में संनिष्ट,
जो विदित थी केवल हम दोनो को,
अब देवता भी झुक-झुक कर उसका
करते हैं अनुमोदन,
तुम्हें प्रणाम करते हैं,
और मैं मन-मंदिर में मुस्कराता
अपने ख़्यालों के झरोखों में
तुम्हारे माथे पर टीका
और माँग में
विजय निकोर जी का जन्म दिसम्बर १९४१ में लाहोर में हुआ ...१९४७ में देश के दुखद बटवारे के बाद दिल्ली में निवास । अब १९६५ से यू.एस.ए. में हैं । १९६० और १९७० के दशकों में हिन्दी और अन्ग्रेज़ी में कई रचनाएँ प्रकाशित हुईं...(कल्पना, लहर, आजकल, वातायन, जागृति, रानी, Hindustan Times, Thought, आदि में) । अब कई वर्षों के अवकाश के बाद लेखन में पुन: सक्रिय हैं और गत कुछ वर्षों में तीन सो से अधिक कविताएँ लिखी हैं। कवि सम्मेलनों में नियमित रूप से भाग लेते हैं ।
एक उम्र तक जीवन साथी के साथ रहने का सुखद अहसास ....मन में असीम खुशी का संचार करता है ....बेहद खूबसूरत अहसास
ReplyDeleteBeautiful
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आत्मिक जुड़ाव जीवन साथी से...बेहद खूबसूरत अहसास!!
ReplyDeletesundar rachna
ReplyDeleteउम्दा प्रस्तुति
ReplyDeleteऔर मैं मन-मंदिर में मुस्कराता
ReplyDeleteअपने ख़्यालों के झरोखों में
तुम्हारे माथे पर टीका
और माँग में
सिन्दूर भर देता हूँ ....bahut acche bhaw....atmiyta ko darshati hui....
nice presentation...
ReplyDeleteismratiyon kii yatra jaari hai
ReplyDeleteसहजीवन की जीवनयात्रा का सुमधुर चित्रण..बहुत सुन्दर..
ReplyDeleteविजय भाई, कविता दोचार पंक्तियाँ पढकर समझ मे आगया था कि ये आपकी कविता है। अपनी शैली मे आप माहिर हैं। बहुत खू़ब।
ReplyDeleteUMDA KAVITA KE LIYE VIJAY JI BADHAAEE AUR SHUBH KAMNA .
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