(1)
इस जहाँ में प्यार महके ज़िंदगी बाक़ी रहे
ये दुआ माँगो दिलों में रोशनी बाक़ी रहे
आदमी पूरा हुआ तो देवता हो जायेगा
ये ज़रूरी है कि उसमें कुछ कमी बाक़ी रहे
दोस्तों से दिल का रिश्ता काश हो कुछ इस तरह
दुश्मनी के साये में भी दोस्ती बाक़ी रहे
दिल के आंगन में उगेगा ख़्वाब का सब्ज़ा ज़रूर
शर्त है आँखों में अपनी कुछ नमी बाक़ी रहे
इश्क़ जब कीजे किसी से दिल में ये जज़्बा भी हो
लाख हों रुसवाइयाँ पर आशिक़ी बाक़ी रहे
दिल में मेरे पल रही है यह तमन्ना आज भी
इक समंदर पी चुकूँ और तिश्नगी बाक़ी रहे
(2)
ख़्वाब सुहाने दिल को घायल कर जाते हैं कभी कभी
अश्कों से आँखों के प्याले भर जाते हैं कभी कभी
पल पल इनके साथ रहो तुम इन्हें अकेला मत छोड़ो
अपने साए से भी बच्चे डर जाते हैं कभी कभी
आँख मूँदकर यहाँ किसी पर कभी भरोसा मत करना
यार-दोस्त भी सर पे तोहमत धर जाते हैं कभी कभी
मेरे शहर में मिल जाते हैं ऐसे भी कुछ दीवाने
रात और दिन सड़कों पर भटकें घर जाते हैं कभी कभी
जिनके फ़न को दुनिया अकसर अनदेखा कर देती है
वे ही इस दुनिया को रोशन कर जाते हैं कभी कभी
अगर किसी पर दिल आ जाए इसमें दिल का दोष नहीं
अच्छा चेहरा देखके हम भी मर जाते हैं कभी कभी
खेतों को चिड़ियां चुग जातीं बीते कल की बात हुई
अब तो मौसम भी फ़सलों को चर जाते हैं कभी कभी
(3)
कहाँ गई एहसास की ख़ुशबू, फ़ना हुए जज़्बात कहाँ
हम भी वही हैं तुम भी वही हो लेकिन अब वो बात कहाँ
मौसम ने अँगड़ाई ली तो मुस्काए कुछ फूल मगर
मन में धूम मचा दे अब वो रंगों की बरसात कहाँ
मुमकिन हो तो खिड़की से ही रोशन कर लो घर-आँगन
इतने चाँद सितारे लेकर फिर आएगी रात कहाँ
ख़्वाबों की तस्वीरों में अब आओ भर लें रंग नया
चाँद, समंदर, कश्ती, हम-तुम,ये जलवे इक साथ कहाँ
इक चेहरे का अक्स सभी में ढूँढ रहा हूँ बरसों से
लाखों चेहरे देखे लेकिन उस चेहरे-सी बात कहाँ
चमक दमक में डूब गए हैं प्यार-वफ़ा के असली रंग
अपने दौर के लोगों में वो पहले जैसी बात कहाँ
(4)
सबसे दिल का हाल न कहना,लोग तो कुछ भी कहते हैं
जो कुछ गुज़रे ख़ुद पर सहना,लोग तो कुछ भी कहते हैं
हो सकता है इससे दिल का बोझ ज़रा कम हो जाए
क़तरा-क़तरा आँख से बहना,लोग तो कुछ भी कहतें हैं
इस जीवन की राह कठिन है पाँव मे छाले पड़ते हैं
मगर हमेशा सफ़र में रहना,लोग तो कुछ भी कहतें हैं
नए रंग में ढली है दुनिया प्यार पे लेकिन पहरे हैं
ख़्वाब सुहाने बुनते रहना,लोग तो कुछ भी कहतें हैं
सोच-समझकर प्यार से हमने तेरी शोख़ अदाओं को
नाम दिया फूलों का गहना,लोग तो कुछ भी कहतें हैं
आँखों में है अक्स तुम्हारा हमने सबसे कह डाला
तुम भी अपने दिल की कहना, लोग तो कुछ भी कहते हैं
() देवमणि पाण्डेय
परिचय :
4 जून 1958 को सुलतानपुर (उ.प्र.) में जन्मे देवमणि पांडेय हिन्दी और संस्कृत में प्रथम श्रेणी एम.ए. हैं। अखिल भारतीय स्तर पर लोकप्रिय कवि और मंच संचालक के रूप में सक्रिय हैं। उनके दो काव्यसंग्रह ‘खुशबू की लकीरें’ और ‘अपना तो मिले कोई’प्रकाशित हो चुके हैं। मुम्बई में एक केंद्रीय सरकारी कार्यालय में कार्यरत पांडेय जी ने फ़िल्म पिंजर, हासिल और कहाँ हो तुम के अलावा कुछ सीरियलों में भी गीत लिखे हैं। फ़िल्म पिंजर के गीत चरखा चलाती माँ को वर्ष 2003 के लिए ''बेस्ट लिरिक आफ दि इयर'' पुरस्कार से सम्मानित किया गया। हाल ही में ग़ज़ल संग्रह ‘अपना तो मिले कोई’ के लिए आपको ताशकंद में सृजनश्री और ग्वालियर में भाषा भारती सम्मान से अलंकृत किया गया।
बहुत सुंदर गज़ल ....
ReplyDeleteसुन्दर ग़ज़लें.....
ReplyDeleteआभार.
अनु
सभी गजल बहुत ही सुंदर हैं |
ReplyDeleteनई पोस्ट:-
ओ कलम !!
क्या कहने!
ReplyDeleteअब Google Chrome से बनाओ PDF files
बहुत ही सुन्दर रचनायें, पढ़वाने का आभार ।
ReplyDeletebahut sundar pande jii
ReplyDeleteबहुत सुन्दर गज़ल..बधाई
ReplyDeleteदिल में मेरे पल रही है यह तमन्ना आज भी
ReplyDeleteइक समंदर पी चुकूँ और तिश्नगी बाक़ी रहे
ओह एक से बढ़कर एक ग़ज़ल और एक से बढ़कर एक शेर ... किसे दाद दूँ और किसे न दू ...
दोस्तों से दिल का रिश्ता काश हो कुछ इस तरह
ReplyDeleteदुश्मनी के साये में भी दोस्ती बाक़ी रहे
दिल के आंगन में उगेगा ख़्वाब का सब्ज़ा ज़रूर
शर्त है आँखों में अपनी कुछ नमी बाक़ी रहे
एक से बढ कर एक गजलें हैं । देवमणि जी से परिचय करवाने का आभार ।
सुंदर ग़ज़ल के लिए देवमणि जी को बहुत बधाई
ReplyDeleteसादर
बेहद खूबसूरत रचनाएं..
ReplyDeleteबेहतरीन गजलें
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