एक शीर्षक : कविता दो : बेहतर कौन ?

पहली कविता

ओह !
ना जाने कितने
अर्थ समेट लेता है खुद मे
कभी दुख क्षोभ को
तो कभी आश्चर्य को
व्यक्त करता
एक ही शब्द
मगर अर्थों मे भिन्नता ही
शायद अस्तित्व का परिचायक होती है

और तुम्हारे ओह मे
ना दुख था ना आश्चर्य
ना जाने कहाँ से
व्यंग्य का पुट
मेरे सारे अस्तित्व को हिला गया
अब सोचती हूँ
कौन सा अर्थ निकालूँ
तुम्हारे एक शब्द का
तलवार के घाव से गहरा
शब्दबाण होता है ……सुना था कभी
और आज देख भी लिया

ओह ! ओह ! ओह !
एक ही शब्द हथौडे से
पड रहा है दिमाग के कोटर मे
सोचती हूँ
इसका जवाब दूँ तुम्हें
और तुम ढूँढते रहो
उसके अर्थ उम्र भर
निकाल सकते हो
तो निकाल लेना
अपने अर्थ
गढ देना नया शब्दकोष

मेरा जवाब सुनना नही चाहोगे?
ये है मेरा जवाब …………ओह

ये है प्रतिउत्तर का आखिरी क्षितिज़ ……

दूसरी कविता

ओह !
शब्द एक
भाव अनेक
अनेक भंगिमाएं
और अर्थ अनेक

जैसे तुम
तुम एक हो
कितने ही गढ़ती हो भाव
कितने ही विम्ब समाये हैं तुम में
कितनी ही धराए समाहित हैं तुम में

तुम ! ओह ! तुम !
कितनी विस्मयकारी बोध है तुम्हारा
काश जो अर्थ मैं चाहता हूं
वही हो सकता !

बताइये बेहतर कौन?

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वन्दना गुप्ता 
http://vandana-zindagi.blogspot.com/

7 comments:

  1. इन रचनाओ को यहाँ स्थान देने के लिये हार्दिक आभारी हूँ।

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  2. गहन भाव लिए बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति


    कल 18/07/2012 को आपकी इस पोस्‍ट को नयी पुरानी हलचल पर लिंक किया जा रहा हैं.
    आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!


    '' ख्वाब क्यों ???...कविताओं में जवाब तलाशता एक सवाल''

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  3. bahut sundar racanaayeM haiM vandanaa jee ko shubhkamanayen

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