मैँ पौधे का वह फूल हूँ
जिसे आजतक किसी ने भी
सहजने की कोशिश नहीँ की है
मैँ किताब की वह पंक्ति हूँ
जिसे आजतक किसी ने भी
पढ़ने की कोशिश नहीँ की है
मैँ एक ऐसा कोरा कागज हूँ
जिसमेँ आजतक किसी ने भी
हस्ताक्षर तक नहीँ किया है
मैँ चूल्हे की वह आँच हूँ
जिसे आजतक किसी ने भी
अंतस मेँ उतारने की कोशिश नहीँ की है
मैँ आकाश का वह पिँड हूँ
जिसे आजतक किसी ने भी
प्रयोगशाला मेँ नहीँ ला सका है
मैँ कचरे मेँ फेँका गया वह चित्र हूँ
जिसे आजतक किसी ने भी
ड्राँइग रूम मेँ नहीँ टाँगा है
मैँ जंगल से बहती वह नदी हूँ
जिसे आजतक किसी ने भी
सही मंजिल नहीँ दिखाई है
मैँ बच्चोँ का वह खिलौना हूँ
जिसे आजतक किसी ने भी
ठीक से समझा ही नहीँ है
मै वह कविता हूँ
जिसे आजतक किसी ने भी
आंदोलन नहीँ बना सका है
मैँ वह हूँ
जिसे आजतक
किसी ने भी क्या
खुद मैँ भी
ठीक से पहचान नहीँ पायी हूँ ।
* मोतीलाल/राउरकेला
* 9931346271
जिसे आजतक किसी ने भी
सहजने की कोशिश नहीँ की है
मैँ किताब की वह पंक्ति हूँ
जिसे आजतक किसी ने भी
पढ़ने की कोशिश नहीँ की है
मैँ एक ऐसा कोरा कागज हूँ
जिसमेँ आजतक किसी ने भी
हस्ताक्षर तक नहीँ किया है
मैँ चूल्हे की वह आँच हूँ
जिसे आजतक किसी ने भी
अंतस मेँ उतारने की कोशिश नहीँ की है
मैँ आकाश का वह पिँड हूँ
जिसे आजतक किसी ने भी
प्रयोगशाला मेँ नहीँ ला सका है
मैँ कचरे मेँ फेँका गया वह चित्र हूँ
जिसे आजतक किसी ने भी
ड्राँइग रूम मेँ नहीँ टाँगा है
मैँ जंगल से बहती वह नदी हूँ
जिसे आजतक किसी ने भी
सही मंजिल नहीँ दिखाई है
मैँ बच्चोँ का वह खिलौना हूँ
जिसे आजतक किसी ने भी
ठीक से समझा ही नहीँ है
मै वह कविता हूँ
जिसे आजतक किसी ने भी
आंदोलन नहीँ बना सका है
मैँ वह हूँ
जिसे आजतक
किसी ने भी क्या
खुद मैँ भी
ठीक से पहचान नहीँ पायी हूँ ।
* मोतीलाल/राउरकेला
* 9931346271
यही तो विडम्बना है "मै" को जिसने जाना वो रहा ना बेगाना।
ReplyDeleteगहन भाव लिए ..उत्कृष्ट प्रस्तुति ।
ReplyDeleteगहन भाव लिए .अनुपम प्रस्तुति । आभार....
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteसम्मानीय मोतीलाल जी, अगर आप बुरा ना माने तो आपकी इन पंक्तियों को मैं संक्षेप में- 'उत्कृष्ट और गहन' नहीं कह कर सिर्फ एक अच्छा प्रयास कहूँगा...जैसा कि मुझे लगा. थोड़ा और मांज सकते हैं आप. पर आपका 'मैं' इतना निराश क्यों है? उम्क्त पंक्तियों में आपकी कविता का 'मैं' मुझे भटका हुआ लगा.
ReplyDeleteसम्मानिया रश्मि दी और रवींद्र सर का पढवाने हेतु आभार व नमन !
सादर !
ह्रदय में उदासीनता के भाव प्रकट कर रही है रचना जीवन में अपने को समझना सर्वप्रथम प्रयास होना चाहिए अपने अन्दर छिपे गुणों को पहचानना चाहिए वर्ना हीन भावना जिंदगी दूभर कर देगी यही भाव इस कविता की आत्मा है
ReplyDeleteगहन भाव लिए ...बेहतरीन प्रस्तुति
ReplyDeleteअपने अंदर छिपे को हर कोई भी तो नहीं पहचान सकता |
ReplyDeleteसुन्दर कविता
ReplyDeleteअच्छी रचना...
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