, जहां हर विषय को हम आनन् फानन में पा सकते हैं, कहीं भी, किसी भी वक़्त , किसी भी रूप में पहुंचा सकते हैं . एक
मोबाइल की तरह वह हमेशा हमारी पकड़ में होता है , बस एक क्लिक और दुनिया आमने सामने. कोई देर नहीं , जब चाहें -युग, वर्ष, महीने, सप्ताह , दिन , घंटे , मिनट .... सबकुछ
आँखों के सामने. हिंदी साहित्य ने भी इस नई तकनीक के संग अपना एक अलग मुकाम
बनाया.
हिंदी साहित्य का स्थापित स्वरुप लुप्तप्रायः था, अपनी पहचान खो चुका था
, पर वेब मीडिया के
माध्यम से इसने अपना पुनर्निर्माण किया . हिंदी की कई प्रमुख साहित्यिक पत्रिकाएं मसलन हंस, कथादेश, आदि आज दुनिया के
किसी भी कोने में बिना इंतज़ार कम्प्यूटर स्क्रीन पर उपलब्ध है. हिंदी ब्लॉग , ऑनलाइन हिंदी
पत्रिकाएं- इस माध्यम से बहुत हद तक हिंदी का खोया गौरव लौटा है, इस समस्या निवारण
के लिए प्रवासी भारतीयों के संग निकटता कायम हुई . वेब मीडिया ने हिंदी को सुगम बनाने का हर संभव प्रयास
किया है, अन्यथा आज के
कृत्रिम माहौल में हिंदी अदृश्य कोने में चली गई थी.
नई पीढ़ी सर्वथा भूल चुकी थी प्राचीन रचनाकारों को.
काव्य-संग्रह , उपन्यास उपेक्षित
हो चले थे .... मीडिया ने खोये दिन तो लौटाए ही, नई उमंग से कई प्रकाशक , प्रकाशन अपनी पहचान बनाने इस क्षेत्र में उतरे हैं .
आलोचनाओं के मध्य उम्मीदें जाग उठी हैं . वेब की दुनिया में कविता कोष ने प्राचीन नामी कवियों की सूचीबद्ध श्रृंखला में
खड़े होने का सुअवसर दिया , पर दुखद यह है कि इसमें आधुनिकता का कीड़ा इसे दीमक
की तरह चाट रहा है . हिंदी साहित्य की राजनैतिक बिसात हो गई है .... जिसे देखा जाए
वह ' अहम् ब्रह्मास्मि
' की मुद्रा में अपशब्दों की
सीमाएं तोड़ रहा है.
लिखने से अधिक दूसरे की ज़मीन तहस-नहस करने की होड़ है. वेब
मीडिया ने इसे भी बेनकाब कर दिया है, सोचना हमें है कि इस सहजता को हम उंचाई पर ले जाएँ या इसे
एक विनाशक माध्यम घोषित कर दें !
() रश्मि प्रभा
सोचना हमें है कि इस सहजता को हम उंचाई पर ले जाएँ या इसे एक विनाशक माध्यम घोषित कर दें !
ReplyDeleteसार्थकता लिए सशक्त लेखन ... आभार
सोचना हमें है कि इस सहजता को हम उंचाई पर ले जाएँ या इसे एक विनाशक माध्यम घोषित कर दें !
ReplyDeleteसच हम सबको ही इस दिशा में गंभीरता से सोचने- समझने की सख्त जरुरत हैं ..
बहुत ही बढ़िया सार्थक चिंतनशील प्रस्तुति के लिए आभार ..
सार्थक आलेख्।
ReplyDeleteसार्थक चिंतन।
ReplyDeleteयह नकारात्मक होड़ ले डूबेगी, यहाँ सबके लिये जगह है, साहित्य का विस्तार असीमित है...
ReplyDeleteएक सीमा रेखा तो होनी चाहिए ...
ReplyDeleteसार्थक चिंतन !
विज्ञान का दुरुपयोग करने वाले व्यक्ति मानवता को नुकसान ही पहुंचाते हैं। लेकिन इनका कोई इलाज नहीं है। ऐसे लोग हर युग में हुए हैं और आगे भी होते रहेंगे।
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