ड़ी बोली हिंदी के सौ साल से ज़्यादा के इतिहास में कई महत्वपूर्ण नाटक लिखे गए और उनका सफलतापूर्वक मंचन किया गया। भारतेंदु हरिश्चंद्र ने अंधेर नगरी, भारत दुर्दशा जैसे कालजयी नाटक लिखे वहीं आगे के वर्षों में जयशंकर प्रसाद का ‘ध्रुवस्वामिनी’ नाटक रंगकर्मियों के बीच चर्चा का विषय बना। उसके बाद महाभारत की कथा के बहाने से द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद के विनाश, अनास्था और टूटते मूल्यों की महागाथा के रूप में अचानक धर्मवीर भारती का अंधा युग दस्तक दे गया। फिर आया आषाढ़ का एक दिन – मोहन राकेश का यह नाटक, जिसके कथ्य ने अनायास ही रंगकर्मियों को झकझोर कर रख दिया।

सातवें दशक में रंगमंच में लोकतत्वों को लेकर लिखे गए नाटकों में सबसे सफल और चर्चित नाटक रहा सर्वेश्वर दयाल सक्सेना का ‘बकरी’। इसी दौरान शंकर शेष का नाटक एक और द्रोणाचार्य ने जहां आधुनिक शिक्षा पद्धति पर एकलव्य और द्रोणाचार्य की कथा के माध्यम से गहरा प्रहार किया वहीं भीष्म साहनी का कबीरा खड़ा बाज़ार में कबीर की ज़िन्दगी, कबीर की कविता और उससे भी ज़्यादा एक कलाकार, महात्मा और तत्कालीन व्यवस्था के बीच टकराव का चित्र प्रस्तुत करने में सफल हुआ।



मन्नू भंडारी का महाभोज भले ही पहले एक उपन्यास के रूप में आया, एक नाटक के रूप में बेहद चर्चित और मंचित हुआ। इसी बीच हिंदी रंगमंच में दलित पात्र को केंद्र में रखकर स्वदेश दीपक द्वारा लिखा गया सशक्त नाटक कोर्ट मार्शल दर्शक को बंधे रखने में सफल हुआ।




और इस यात्रा का एक महत्वपूर्ण पड़ाव के रूप में असग़र वज़ाहत के नाटक जिस लाहौर नई देख्या को महत्व मिला है, क्योंकि 1947 के भारत विभाजन की पृष्ठभूमि पर लिखा गया यह हिन्दी का पहला नाटक है। कहानियों और उपन्यासों में भले ही यह कथ्य बार-बार आता रहा हो, लेकिन नाटक में अपनी आँखों के सामने देखने वाले दर्शकों को बेहद जकड़ लेता है इसका कथानक। आज हम दो भागों में प्रस्तुत इस नाटक को दिखने जा रहे हैं। देखिये और महसूस कीजिये इस नाटक के कथानक को ..... ।

नाटक: जिस लाहौर नई देख्या (भाग-१) नाटक: जिस लाहौर नई देख्या (भाग-२)

2 comments:

  1. बहुत सुंदर पेशकश..आभार !

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  2. बहुत शानदार ! मुझे बहुत दिनों से इस नाटक की तलाश थी जी .
    रश्मि जी बधाई .

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