कोई भी व्यक्ति सिर्फ वह नहीं होता जो रंगमंच पर उतरता है , अनुरोध पर गानेवाला ज़रूरी नहीं कि उस वक़्त गाने की स्थिति में हो ...... इसे समझनेवाले बिरले होते हैं...
जो मन के विपरीत गा दे और जो कहे - मैं नहीं गा सकता , उनमें भी फर्क होता है ...

रश्मि प्रभा

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गुलज़ार उर्फ़ सफेद समंदर


कौन है गुलज़ार
मैं नहीं जानता..
शायद कोई भी नहीं जानता ,
जिसने भी जाना है गुलज़ार को
शायद उसके चलचित्रों की मार्फत जाना है
उसकी शायरी सुनी है
अलग अलग आवाज़ों के दर्द में ..
उसके संवाद को सुना है
अदाकारों की अदायगी से
इतना सब कुछ देखते सुनते
और पर्दे के मंच ऊपर घुमते हुए भी
किसी ने नहीं जाना
कि कौन है .. .. गुलज़ार ?
शायद कोई भी नहीं जानता
कि बटवारे की लाल जमीन पर सिसकती
नज्मों का नसीब
पानी के ऊपर खीची गयी लकीर
सपनों की चाल चलती हवा
अपने ही दूध से
अपने ही किनारों को जला देने का नाम
हो सकता है .. .. गुलज़ार ..!
शायद कोई भी नहीं जनता
पिघल कर कागजों पर फैली आग
खेतों में बोए अधनंगे चिहरे वाले बीज
पतझड़ में खुंदक कर लौटी आवाज़
ऊँची पहाड़ी पर हंसती हरिआवल
ठंडी हवा में सुनाई देने वाली
सीटी का नाम हो सकता है
गुलज़ार .. ..
हो सकता है
कि कोई जनता भी हो
कि जब कभी अँधेरी रात में
लटकते हैं सुपने
चुन्नी के सितारों की तरह
जा बैठते हैं वो
समंदर की ठंडी छाती पर
और हो जाती है वो रात
किसी बच्चे के बचपन जैसी
और शोर मचाता है समंदर का पानी
किसी को मिलने के लिए
तो हो सकता है
कोई जानता भी हो
समंदर के घुस्मुसे में मिलने वाला
गुलज़ार ही हो सकता है.. ..
हो सकता है
कि कोई जानता भी हो
कि जिसकी आँखों में
उदासी तैरती है
आवाज़ में मुस्कान खेलती है
जिह्न कि ममटी उपर
इबारत बैठती है लिबास कि तरह
अपने उपर ओढ़ता है वो चांदनी
उस मिटटी के पेड़ को
लगे फल का नाम
सिर्फ और सिर्फ
गुलज़ार ही हो सकता है
हाँ
ये सब जानने वाला
और कोई नहीं मैं हूँ
सिर्फ और सिर्फ मैं.. ..
क्यों कि-
किसी को ये हक नहीं है
कि जो मैं जानूं
उसे कोई और भी जाने
क्यों कि मैं जनता हूँ
वो.. .. जो मेरा गुलज़ार है
हजारों नदिओं का विष पिया है जिसने
जिसके खून की गंध बन गयी है
सरस्वती . ..
शब्दों की रखवाली के लिए
पैदा हुआ है जो
आंसुओं की नमी वाला
कागज़ है वो
सपनों के पानी पर तैर कर
आसमान पर छिडकता है रंग
अपने आप से करता है
घने कोहरे जैसे संवाद
अपने जिस्म की आग से सेकता है
बीत गये सालों में
ठिठुरता हुआ इतिहास
आंसू संभालता है
ज़ख्मों को सीता है
हवा को भिगोता है
रातों को जागता है
ख्वाबों से लिपटता है
बातों को बुनता है
चुम्बन को जलाता है
दीयों को सुलता है
मेरा गुलज़ार है वो
सिर्फ मेरा गुलज़ार
ऐसा गुलज़ार मैं किसी का होने भी नहीं दूंगा
ऐसा गुलज़ार
मैं किसी को सोचने भी नहीं दूंगा
इतना मिल चुका हूँ मैं उनसे
कि शायद जरा सा भी नहीं मिला
दिल करता है
हर पल उनके साथ रहूँ
डर लगता है
फिर शायद वो मेरे पास नहीं रहेगा
या हो सकता है
वो सब से ज्यादा मेरे पास ही रहे
मेरे भी तो सपने हैं
उड़ सकता हूँ मैं भी
एक ही सपना है मेरा - गुलज़ार
एक ही उड़ान है मेरी - गुलज़ार
जिंदगी की डायरी का हर पन्ना
हो गया है शायद गुलज़ार के नाम
जिस उपर लिखता हूँ मैं सिर्फ
कुछ सुलगते सवाल ..
मौसम की वफादारी .. ..
मन का गुलाब .. ..
आँखों की जुबान .. ..
अम्बर के सितारे .. ..
चेहरे का इंतजार .. ..
और सिर्फ और सिर्फ
गुलज़ार .. .. गुलज़ार .. .. गुलज़ार .. ..
गुलज़ार तुम जिंदा रहो
आने वाले कल के लिए
जाती हुई लहर के लिए
सुलगते आसमान के लिए
जागते सपनो
और हंसती रौशनी के लिए
हवा के हाथों में अपना चेहरा दे दो
और
गुलज़ार तुम जिंदा रहो
क्यों कि तुमने जिंदा रहना है
और सिर्फ जिंदा रहना है .. .. !!!



सुखदरशन सेखों (दरशन दरवेश)

7 comments:

  1. सुंदर....बहुत ही सुंदर............

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  2. बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति।

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  3. बेहद उम्दा रचना

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  4. सचमुच गुलज़ार....
    सुन्दर रचना...
    सादर.

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  5. गुलज़ार हुई है गुलजारनामा पोस्ट !

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