जलाता शान्ति का प्रतीक है
मासूमियत की चाह है
तबाही के धुएं में
एक मान्त्रिक बीज है
जिसकी उर्वरक क्षमता
प्रकृति में मंत्रोच्चार करती है - ॐ शांतिः शांतिः शांतिः ...
रश्मि प्रभा
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जलाटा की डायरी *
जलाटा डायरी
(बोस्निया युद्ध पर लिखी एक मासूम बच्ची की डायरी पढ़कर )
"युद्ध का मानवता से कोई लेना-देना नहीं! मानवता के साथ कोई संबध नहीं ..."
कह्ती है छोटी-सी बच्ची जलाटा .
वह युद्ध का मलतब तक नहीं समझती
सिर्फ इतना जानती है कि-
युद्ध एक बुरी चीज है.
झूठ बोलने की तरह .
युद्ध मतलब परस्त लोगों की साजिश है
जो आदमी को आदमी से
धर्म, नस्ल और देश के नाम पर लङवा रहें हैं
इसमे सबसे अधिक नुकसान
बच्चों को होता है
जलाटा जैसी कितने ही मासूम बच्चे हो जाते हैं बेघर और बेपनाह
जलाटा लिखती है-
"हमारे शाहर, हमारे घर, हमारे विचारों में और हमरे जीवन में युद्ध घुस चुका है .
युद्ध के ऊपर पानी की तरह पैसे बहाने वालों
तुम बच्चों के खून में भय का बीज 'बो ' रहें हो .
बच्चों की खुशी और उसके सपनों का सौदा करने वालो
युद्ध तुम्हारी खुराक बन चुका है ...
युद्ध कराये बगैर तुम जिंदा नहीं रह सकते!
जो देश दुनिया में सबसे अधिक भयभीत हैं वही भय का कारोबार कर रहें है.
ऐसे कायर और डरपोक लोंगो को समाज से बाहर उठाकर फेंक देना चाहिए...
जलाटा, तुम सही कह्ती हो कि-
"राजनीति बडों के हाथ में है.
लेकिन मुझे लगता है बच्चे उनसे बेहतर निर्णय ले पाते..."
काश कि सचमुच ऐसा हो पता जलाटा !
और तुम्हारा सपना कि एक दिन तुम्हे तुम्हारा बचपन वापिस मिलेगा.
जलाटा,
देख लेना
एक दिन तुम्हारा और दुनिया के
सभी बच्चों का सपना पूरा होगा
एक दिन सब ठीक हो जायेगा जलाटा!
क्योंकि
बच्चे
छल-कपट, धोखा और स्वार्थ से
परे होते हैं
और सुना है सच्चे दिल से निकली दुवाऍ
कभी खाली नहीं जाती.
*(जलाटा की डायरी १०-१२ साल पहले पढ़ी थी. यह मासूम बच्ची बोस्निया युद्ध के दौरान लम्बे समय तक भूखी-प्यासी तलघर में बंद रही थी)
असीमा भट्ट
बहुत सुन्दर मन को छू गई..
ReplyDelete्मासूम दिल से निकली आह है।
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन मन को छूती सुंदर रचना,,,,,
ReplyDeleteRECENT POST ,,,,पर याद छोड़ जायेगें,,,,,
सुना है सच्चे दिल से निकली दुवाऍ
ReplyDeleteकभी खाली नहीं जाती.
भावमय करती प्रस्तुति ... आभार
हर शहर क्या, अब तो हर दिमाग में युद्ध घुस गया है।
ReplyDeleteवो सुबह कभी तो आयेगी!!!!
ReplyDeleteपरमात्मा ऎसी मासूम इच्छाओं को क्यों नहीं पूरा करता?
जिस दिन प्रत्येक 'बढ़ा' अपने बीतर के 'बच्चे' की सुनने लगेगा तब जलाटा जैसे भुक्तभोगियों की कामनाएँ असरकारी होंगी.
मन स्पर्शी अभिव्यक्ति ..काश अहंकार ओर मद में डूबे खलनायक युद्ध ओर आतंक के इस दुखद मर्म को समझ पाते ....हार्दिक आभार
ReplyDeleteजलाटा की डायरी का अनुवाद मैंने सबसे पहले जोधपुर से निकलने वाली लघुपत्रिका शेष में पढ़ा था। बाद में उनकी अनुमति से उसे चकमक में प्रकाशित किया था। सचमुच वह युद्ध के बीच एक बच्ची का ऐसा अनुभव है जिसे पढ़कर रोंगटे खडे हो जाते हैं।
ReplyDeleteजलाटा की लिए की गयी दुआएं सभी मासूम बच्चों के लिए भी कुबूल हो !
ReplyDeleteकरुण कथा. अद्भुत.
ReplyDeleteसच में करुण कथा!
ReplyDeleteएक दिन तुम्हारा और दुनिया के
ReplyDeleteसभी बच्चों का सपना पूरा होगा
आस तो यही है ...
काश कि दुआएं कुबूल हों
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति ....
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