बरसों से इसी तरह ज़मीन में धंसी हुई -
श्रापग्रस्त -
तुम्हारी बाट जोहती हुई -मैं !
और तुम ...!!!
मुझसे विमुख -
रुष्ट -
असंतुष्ट -
मेरी पहुँच से कोसों दूर !!!!!
मेरे राम ...
क्यों नहीं विध्वंस कर जला देते -
श्रापग्रस्त स्मृतियों को -
.....जो कुरूप हैं ....
और जिला देते .
वह जो सुन्दर है ...
जो परिस्तिथियों से-
अभिशप्त नहीं ......
सरस दरवारी
मगर ऐसा होता कहाँ है
ReplyDeleteमेरे राम ...
ReplyDeleteक्यों नहीं विध्वंस कर जला देते -
श्रापग्रस्त स्मृतियों को -
.....जो कुरूप हैं ....
और जिला देते .
वह जो सुन्दर है ...
जो परिस्तिथियों से-
अभिशप्त नहीं ......
बहुत गहन बात ... सुंदर प्रस्तुति
बहुत अच्छी प्रस्तुति |
ReplyDeleteआशा
सुन्दरम मनोहरं .
ReplyDeleteवीरुभाई .
शुक्रवार, 29 जून 2012
ज्यादा देर आन लाइन रहना माने टेक्नो ब्रेन बर्न आउट
http://veerubhai1947.blogspot.com/
वीरुभाई ४३.३०९ ,सिल्वर वुड ड्राइव ,कैंटन ,मिशिगन ,४८,१८८ ,यू एस ए .