शरीफों के तरह ही घर में आना सीख जाएगा 
लगेगी चोट जब वो घर चलाना सीख जाएगा 

कोई आता नहीं है सीख कर हर बात ऊपर से 
अभी बच्चा है वो पढ़ना-पढ़ाना सीख जाएगा 

न इसको ढील दो इतनी कहीं जिद्दी न हो जाये 
ये मन है प्यारे तुमको नित सताना सीख जाएगा 

ज़माने को हमेशा जानने में वक़्त लगता है 
हमारा बच्चा भी रस्मे ज़माना सीख जाएगा 

न बोला कीजिये ऊँचे स्वरों में आप बच्चे पर 
अभी से ए सजन वो सहम जाना सीख जाएगा 

बहाना मत बनाया कीजिये बच्चे से कोई आप 
बहाना वो भी वरना नित बनाना सीख जाएगा 

उसे भी खेलने दो `प्राण` सब हँसते हुओं के संग 
तुम्हारा बच्चा भी हँसना-हँसाना सीख जाएगा 

() प्राण शर्मा 

जून १९३७ को वजीराबाद (पाकिस्तान) में जन्में प्राण शर्मा जी १९६५ से लंदन-प्रवास कर रहे हैं। वे यू.के. के लोकप्रिय शायर और लेखक है। यू.के. से निकलने वाली हिन्दी की एकमात्र पत्रिका 'पुरवाई' में गज़ल के विषय में आपने महत्वपूर्ण लेख लिखे हैं। आपने लंदन में पनपे नए शायरों को कलम माजने की कला सिखाई है। आपकी रचनाए युवा अवस्था से ही पंजाब के दैनिक पत्र, 'वीर अर्जुन' एवं 'हिन्दी मिलाप' में प्रकाशित होती रही । वे देश-विदेश के कवि सम्मेलनों, मुशायरों तथा आकाशवाणी कार्यक्रमों में भी भाग ले चुके हैं। वे अपने लेखन के लिये अनेक पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं तथा उनकी लेखनी आज भी निरंतर चल रही है।उनकी दो पुस्‍तकें ‘ग़ज़ल कहता हूँ’ व ‘सुराही’ (मुक्तक-संग्रह) प्रकाशित हो चुकी हैं। इसके अलावा ‘अभिव्यक्ति’ में प्रकाशित ‘उर्दू ग़ज़ल बनाम हिन्‍दी ग़ज़ल’ और ‘साहित्य शिल्पी’ पर ‘ग़ज़ल: शिल्प और संरचना’ के 10 महत्‍वपूर्ण लेख हैं।

20 comments:

  1. बहुत अच्छी और स्तरीय रचना। पढ़ाने के लिए आभार।

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  2. बहुत बढिया गजल..

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  3. न इसको ढील दो इतनी कहीं जिद्दी न हो जाये
    ये मन है प्यारे तुमको नित सताना सीख जाएगा

    आपकी तो हर गज़ल शानदार होती है।

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  4. आ० प्राण् जी,
    सुन्दर् गजल् के लिये साधुवाद् । विशेष्-

    शरीफों के तरह ही घर में आना सीख जाएगा
    लगेगी चोट जब वो घर चलाना सीख जाएगा

    कमल

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  5. यूं तो हर शे'र अपने आप में एक खुला फलक है लेकिन फिर भी मुझे ये अश्‍'आर बहुत अच्‍छे लगे।

    कोई आता नहीं है सीख कर हर बात ऊपर से
    अभी बच्चा है वो पढ़ना-पढ़ाना सीख जाएगा

    ज़माने को हमेशा जानने में वक़्त लगता है
    हमारा बच्चा भी रस्मे ज़माना सीख जाएगा

    उसे भी खेलने दो `प्राण` सब हँसते हुओं के संग
    तुम्हारा बच्चा भी हँसना-हँसाना सीख जाएगा

    बच्‍चों के बहाने कितनी बड़ी बातें कह दी आपने...इस दौर में बच्‍चों के साथ सबसे जियादा साजिश हो रही है...सबसे बड़ा खतरा उनकी मासूमियत पर है और जहां मासूमियत मर जाती है, वहां भला क्‍या रह जाता है। एक उद्देश्‍यपूर्ण ग़ज़ल के लिए आदरणीय प्राण शर्मा जी को बधाई। हमारे एक दोस्‍त शायर पवनेंद्र पवन का शे'र मुझे याद आ रहा है जो इसी हवाले से है:

    इनको बौना रखने की कोई साजिश हमको लगती है
    इनके भार से भी ज्‍यादा जो भार है इनके बस्‍ते में

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  6. आपकी इस उत्कृष्ट प्रस्तुति की चर्चा कल मंगलवार ९/१०/१२ को चर्चाकारा राजेश कुमारी द्वारा चर्चामंच पर की जायेगी

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  7. अहा, मनभेदी पंक्तियाँ।

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  8. बहुत बढ़िया ग़ज़ल

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  9. शरीफों के तरह ही घर में आना सीख जाएगा
    लगेगी चोट जब वो घर चलाना सीख जाएगा

    कोई आता नहीं है सीख कर हर बात ऊपर से
    अभी बच्चा है वो पढ़ना-पढ़ाना सीख जाएगा

    न इसको ढील दो इतनी कहीं जिद्दी न हो जाये
    ये मन है प्यारे तुमको नित सताना सीख जाएगा

    ज़माने को हमेशा जानने में वक़्त लगता है
    हमारा बच्चा भी रस्मे ज़माना सीख जाएगा

    न बोला कीजिये ऊँचे स्वरों में आप बच्चे पर
    अभी से ए सजन वो सहम जाना सीख जाएगा

    बहाना मत बनाया कीजिये बच्चे से कोई आप
    बहाना वो भी वरना नित बनाना सीख जाएगा

    उसे भी खेलने दो `प्राण` सब हँसते हुओं के संग
    तुम्हारा बच्चा भी हँसना-हँसाना सीख जाएगा

    बेहतरीन अश - आर क्या मतला क्या मक्ता .पूरा मानव मनोविज्ञान और परवरिश का सलीका उड़ेल दिया है गजल में आपने .धैर्य और दृष्टा भाव जीवन में बहुत ज़रूरी है .उम्र सब सिखा देती है बा -शर्ते आदमी आदमी हो कांग्रेसी न हो .
    ram ram bhai
    मुखपृष्ठ

    मंगलवार, 9 अक्तूबर 2012
    प्रौद्योगिकी का सेहत के मामलों में बढ़ता दखल (समापन किस्त )

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  10. उसे भी खेलने दो ृप्राणृ सब हँसते हुओं के संग
    तुम्हारा बच्चा भी हँसना-हँसाना सीख जाएगा

    प्रेरणा देती हुई एक अच्छी रचना।

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  11. बहुत संगत और सारगर्भित !

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  12. aapki gajal bahut gehra prabhav chhodti hai,sundar.

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  13. Pran ji
    Shabdon mein jis tarah se aapne pran foonk diye hai, har shabd ek bimb ukerta hai ankhon ke saamne..Jeevan leela hai yah, jiskee rachna aap hi kar sakate hain

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  14. प्राण जी की रचनाएँ सदा किसी न किसी सामाजिक विषय को लेकर सृजित होती हैं. ग़जल का एक एक बंद समय सापेक्ष है. साधुवाद प्राण जी.

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  15. वाह-वाह-वाह, बस यही निकला मुंह से. हर शेर आत्मा को छूने वाला. क्या बात है. बधाई प्राण जी

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  16. प्राण जी, बहुत ही लाजवाब गज़ल. मैंने पढ़कर पत्नी को सुनाया और वाहवाही पायी. आपकी हर गज़ल लाजवाब होती है. बधाई.

    रूपसिंह चन्देल

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  17. इतनी सार्थक गजल के लिए बधाई

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