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मै किससे प्यार करू हे ईश्वर
नफरत किसको दूँ ?
सब प्यार मे घोले विष बैठे
मै विष मे नेह घोलूं !!

पलकों पे जिसको भी रक्खो ,
वो चेहरे पे कालिख पोते !
वो हवस के बाग़ बगीचे थें ,
हम उसमे आखिर क्या बोते ?

हम उस दुनिया को कोस रहें
जो हमसे -तुमसे बनती है!
हम स्वांग रचे खुश रहने का ,
भीतर कडुवाहट पलती है !

संकोच नहीं अब रत्ती भर ,
खुद को नीचे ले जाने में !
जज़्बात बिके ,विश्वास बिके ,
हम खडे है खुद बिक जाने में !

परिवार के माने बिगड़ गए,
इज्जत की परिभाषा बदली !
सुख के सब साधन बदल गए
अब गर्ब की भी भाषा बदली !

मै गर्ब करूँ तो भी किस पर ?
किससे ये दिल खोलूं ?
हे ईश्वर नेह भरो इतना
बस विष मे नेह घोलूं !! 










तनु थदानी 
http://tthadani.blogspot.in/

9 comments:

  1. बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति .. आभार
    कल 01/08/2012 को आपकी इस पोस्‍ट को नयी पुरानी हलचल पर लिंक किया जा रहा हैं.

    आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!


    '' तुझको चलना होगा ''

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  2. सही कहा आपने
    स्नेह और प्रेम
    यह इर्ष्या, द्वेष जैसे विष के लिए भी विष है .

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  3. बहुत ही गम्भीर रचना है, प्रभावित करती हुयी..

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  4. सब प्यार मे घोले विष बैठे
    मै विष मे नेह घोलूं !!...

    बहुत अच्छी सोच

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  5. मै गर्ब करूँ तो भी किस पर ?
    किससे ये दिल खोलूं ?
    हे ईश्वर नेह भरो इतना
    बस विष मे नेह घोलूं !!

    बस यही प्रार्थना शेष थी .
    सार्थक रचना !

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  6. हे ईश्वर नेह भरो इतना
    बस विष मे नेह घोलूं !!

    बहुत सुंदर भाव !

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  7. सुन्दर भावपूर्ण

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  8. परिवार के माने बिगड़ गए,
    इज्जत की परिभाषा बदली !
    वर्तमान जीवन का चित्रण
    सुन्दर भाव

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  9. आप सबों का दिल से धन्यवाद ........

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