
बरसों से इसी तरह ज़मीन में धंसी हुई - श्रापग्रस्त - तुम्हारी बाट जोहती हुई -मैं ! और तुम ...!!! मुझसे विमुख - रुष्ट - असं...
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सागर तो हूँ .. मगर सतह मरूस्थल सी है और तासीर उस रेगीस्तान जैसी.. जो प्यासा है प्यार के लिए.. मै तुम से दूर रह कर खुद को भुलाये रहता...
मेरे आगे मैं दौड़ पड़ी हूँ विंडो सीट के लिए ट्रेन चल पड़ी है - छुक छुक छुक छुक हवाएँ पलकों को फरफराने लगी हैं होठों पर गीत मचलने...
जब मंद पवन के झोंके से तरु की डाली हिलती है पंछी के कलरव से कानों में मिश्री घुलती है तब लगता है कि तुम यहीं - कहीं ह...
चहरे की भाषा पढ़ना तो वक्त शायद सबको ही सिखा देता है लेकिन उसे पढ़ने के लिए कम से कम चहरे का सामने होना तो ज़रूरी है ! लेक...
(हरिगीतिका छंद) वसुधा मिली थी भोर से जब, ओढ़ चुनरी लाल सी। पनघट चली राधा लजीली, हंसिनी की चाल सी।। इत वो ठिठोली कर रही थी, ...
जंगल में सभी जानवर एक दूसरे के दुश्मन होकर भी हिल -मिल कर रहते थे . शेर , चीता , हाथी जैसे बड़े और बलवान भी तो लोमड़ी ,भेड़िये जैसे धू...
जलाता शान्ति का प्रतीक है मासूमियत की चाह है तबाही के धुएं में एक मान्त्रिक बीज है जिसकी उर्वरक क्षमता प्रकृति में मंत्रोच्चा...
तब मकसदें थीं फिर एक खुली हवा अब सबकुछ आधुनिक होकर भी बन्द कमरे सा हो गया ... रश्मि प्रभा =========...
जब भी स्त्री जीवन की काली अँधेरी राहों से बाहर आना चाहती है नई राह खोजती है रोशनी की नन्ही किरण के लिये बस --हंगामा हो जाता है देवी को मह...
(एक) केवल फूल भला लगता है तेरा धोखा है प्यारे एक तराशा पत्थर भी तो सुन्दर होता है प्यारे ये इक बार उतर जाये तो लोगों का उ...