(एक) 
केवल फूल भला लगता है तेरा धोखा है प्यारे 
एक तराशा पत्थर भी तो सुन्दर होता है प्यारे 

ये इक बार उतर जाये तो लोगों का उपहास बने 
मर्यादा जैसे नारी के तन का कपड़ा है प्यारे 

सब कुछ ही धुँधला दिखता है तुझको इस सुन्दर जग में 
लगता है तेरी आँखों में कुछ - कुछ कचरा है प्यारे 

दुःख घेरे रहता है मन को सिर्फ़ इसी का रोना है 
वरना हर इक के जीवन में सब कुछ अच्छा है प्यारे 

रंग नया है ,ढंग नया है , सोच नयी और बात नयी 
तू  भी बदल अब तो ये सारा आलम बदला है प्यारे 

हर  बाज़ार  भरा  देखा  है  आते - जाते  लोगों से 
फिर भी हर इक का कहना है , खाली बटुआ है प्यारे 

चलने को तो चल जाता है माना कभी - कभी लेकिन 
खोटा सिक्का सबके नज़र में खोटा सिक्का है प्यारे 

क्यों न भला वो उसको संभाले अपनी घोर गरीबी में 
एक  पुराना कम्बल भी तो गर्म सा रखता है प्यारे 

तू भी कभी मुस्का ले पल भर अपने ही घर वालों में 
रूखा - सूखा चेहरा किसको प्यारा लगता है प्यारे 

(दो)

किसी के सामने खामोश बन के कोई क्यों नम हो 
ज़माने में  मेरे  रामा किसी से  कोई क्यों कम हो 

कफ़न में लाश है इक शख्स की लेकिन बिना सर के 
किसी की ज़िन्दगी का अंत ऐसा भी न निर्मम हो 

बदल जाती हैं हाथों की लकीरें आप ही इक दिन 
बशर्ते आदमी के दिल में कुछ करने का दमख़म हो 

न कर उम्मीद मधुऋतु की कभी पतझड़ के मौसम में 
ये मुमकिन है कहाँ प्यारे कि नित रंगीन मौसम हो 

हरिक ग़म सोख लेता है क़रार इंसान का अक़सर 
भले ही अपना वो ग़म हो भले ही जग का वो ग़म हो 

जताया हम पे हर एहसान जो भी था किया उसने 
भले ही हो कोई हमदम मगर उस सा न हमदम हो 

कभी टूटे नहीं ए ` प्राण ` सूखे  पत्ते की  माफिक 
दिलों का ऐसा बंधन हो , दिलों का ऐसा संगम हो

प्राण शर्मा
प्राण शर्मा ब्रिटेन मे बसे भारतीय मूल के हिंदी लेखक है। कॉवेन्टरी के प्राण शर्मा ब्रिटेन में हिन्दी ग़ज़ल के उस्ताद शायर हैं। प्राणजी बहुत शिद्दत के साथ ब्रिटेन के ग़ज़ल लिखने वालों की ग़ज़लों को पढ़कर उन्हें दुरुस्त करने में सहायता करते हैं। हिन्दी ग़ज़ल पर उनका एक लंबा लेख चार-पांच किश्तों में ‘पुरवाई’ में प्रकाशित हो चुका है। कुछ लोगों का कहना है कि ब्रिटेन में पहली हिन्दी कहानी शायद प्राण शर्मा ने ही लिखी थी। भारत के साहित्य से पत्रिकाओं के जरिए रिश्ता बनाए रखने वाले प्राण शर्मा अपने मित्र एवं सहयोगी श्री रामकिशन के साथ कॉवेन्टरी में कवि सम्मेलन एवं मुशायरा भी आयोजित करते हैं। उन्हें कविता, कहानी और उपन्यास की गहरी समझ है।

21 comments:

  1. सामाजिक पहलुओं से लेकर गहरी बातों तक कों गाल में लिखना प्राण साहब की खूबी है ... आम भाषा में इतने कमाल के शेर कम ही पढ़ने कों मिलते हैं ... बधाई है प्राण साहब को ...

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  2. कफ़न में लाश है इक शख्स की लेकिन बिना सर के
    किसी की ज़िन्दगी का अंत ऐसा भी न निर्मम हो

    बदल जाती हैं हाथों की लकीरें आप ही इक दिन
    बशर्ते आदमी के दिल में कुछ करने का दमख़म हो

    न कर उम्मीद मधुऋतु की कभी पतझड़ के मौसम में
    ये मुमकिन है कहाँ प्यारे कि नित रंगीन मौसम हो
    प्राण जी की हर गज़ल ज़िन्दगी को छूती है…………शानदार

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  3. बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति... आभार ।

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  4. दोनों गज़लें वाकई बड़ी अच्छी है, प्राण जी का जवाब नहीं.

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  5. बेहतरीन गज़लें, आभार !

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  6. कभी टूटे नहीं ए ` प्राण ` सूखे पत्ते की माफिक
    दिलों का ऐसा बंधन हो , दिलों का ऐसा संगम हो
    सुन्दर ....गजलें और परिचय दोनों

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  7. अद्भुत गजलें पढ़कर आनंद आ गया....
    सादर बधाई/आभार.

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  8. priya bhai Pran Sharma jee aapki dono gajlon ne bahut kuchh gehra keh diya hai jo kisi bhee vyakti ko sochne ke liye majboor kar deta hai.shubhkamna ke sath.

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  9. दोनों गज़लों में ताजगी है प्राण जी. आप की कलम से गज़ल में भी प्रण आ जाते हैं. मुझे मधुरितु वाला शेर बहुत अच्छा लगा. लिखते रहिये प्रण जी, और हम पढ़ते रहे.

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  10. अद्भुत गजलें है दोनों,आभार !

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  11. दोनों गजलें बड़ी खूबसूरत .....सकारात्मक सोच का सन्देश भी बहत उम्दा लगा बधाई

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  12. क्यों न भला वो उसको संभाले अपनी घोर गरीबी में
    एक पुराना कम्बल भी तो गर्म सा रखता है प्यारे
    ***
    न कर उम्मीद मधुऋतु की कभी पतझड़ के मौसम में
    ये मुमकिन है कहाँ प्यारे कि नित रंगीन मौसम हो

    ऐसे बेजोड़ शेरों से सजी दोनों ग़ज़लें सीधी दिल में उतर गयीं हैं...कितना कुछ सीखने को मिलता है प्राण साहब की ग़ज़लों से...सादगी से अपनी बात हम तक पहुंचती इन ग़ज़लों के शायर को मेरा शत शत नमन.

    नीरज

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  13. प्राण जी की ग़ज़लों का कायल हूँ. वे समर्थ शायर हैं और हम सब के लिए प्रेरक भी. ये दो गज़लें भी हमेशा की तरह प्यारी है, और सोचने पर बाध्य करने वाली.

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  14. प्राण जी की गज़लों में गज़ल-प्राण होता है

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  15. वाह... वाह ...
    प्राण जी
    ,
    कमाल है... आप हर बार इअतनी खूबसूरत गज़लें लाते हैं को दिल झूम-झूम जाता है

    चलने को तो चल जाता है माना कभी - कभी लेकिन
    खोटा सिक्का सबके नज़र में खोटा सिक्का है प्यारे
    *
    चलने को तो चल जाता है माना कभी - कभी लेकिन
    खोटा सिक्का सबके नज़र में खोटा सिक्का है प्यारे

    Acharya Sanjiv verma 'Salil'

    http://divyanarmada.blogspot.com
    http://hindihindi.in

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  16. वाह............

    बेहतरीन गज़लें.............

    अनु

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  17. आदरणीय प्राण जी,
    सादर प्रणाम

    बड़ी सहजता और सुन्दरता के साथ आपने ये सुन्दर ग़ज़लें कही हैं

    :बदल जाती हैं हाथों की लकीरें आप ही इक दिन
    बशर्ते आदमी के दिल में कुछ करने का दमख़म हो

    सब कुछ ही धुँधला दिखता है तुझको इस सुन्दर जग में
    लगता है तेरी आँखों में कुछ - कुछ कचरा है प्यारे

    सुन्दर ग़ज़लें पढ़वाने के लिए आभार और आपको बधाई.

    सादर

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  18. जीवन के यथार्थ के आस-पास कैमरा लेकर घूमती हुई खूबसूरत नवयौवना सी ताज़गी लिये हैं दोनों ग़ज़लें।

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  19. भाई साहब , बढ़िया और सुन्दर ग़ज़लें पढ़वाने के लिए आभार...
    क्यों न भला वो उसको संभाले अपनी घोर गरीबी में
    एक पुराना कम्बल भी तो गर्म सा रखता है प्यारे
    ***
    न कर उम्मीद मधुऋतु की कभी पतझड़ के मौसम में
    ये मुमकिन है कहाँ प्यारे कि नित रंगीन मौसम हो
    बहुत ख़ूब , बधाई !

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  20. प्राण शर्मा जी की लेखनी में जिन्दगी के तमाम पहलू सिमट आते हैं. सभी शेर बहुत अर्थपूर्ण. मुकम्मल गज़ल के लिए प्राण शर्मा जी को बधाई.

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  21. कभी टूटे नहीं ए ` प्राण ` सूखे पत्ते की माफिक
    दिलों का ऐसा बंधन हो , दिलों का ऐसा संगम हो

    क्या खूब प्राण साहेब .. बहुत ही अच्छी गज़ल.. और ये शेर तो दिल में उतारते चला गया..

    बधाई

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