ज़िन्दगी एहसासों से भरी , फिर भी लगती है खाली
जाने क्यूँ !


रश्मि प्रभा






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खलिश

बङा अजीब System है life का भी। कुछ भी मिल जाये,फिर भी एक कमी सी महसूस होती रहती है,एक खलिश सी बनी रहती है ।और ये खलिश भी क्या कमाल,जिसका ना कोई इलाज,ना कोई अन्त ।बस एक एहसास होता रहता है जिन्दा होने का ।और इसी एहसास में उम्र गुजर जाती है.......




ज़िंदगी तुझसे शिकायत भी है,गिला भी
बहुत कुछ दिया तूने,बस कुछ ना मिला


कुछ को मिल गया बेवक्त गुलाबों का शहर
मुझे चुभते हुए काटों का चेहरा ना मिला


एक उम्मीद थी सो जल गया तेरी शम्मे में
पर आँधियों को अब तक मेरा खत ना मिला


किसने कहा इन्सान में खुदा बसता है
बहुत ढूँढा,मगर मुझको पत्थर ना मिला


फकत ईटों के बने हैं इस शहर के मकां सारे
फिर क्यूँ आज तक मुझे मेरा घर ना मिला ?


सच बोलकर सबको,दुश्मन बना लिया
इस रूह को अब तक कोई खंजर ना मिला


अपनी जात में अब तक,मैं खुद से बाकिफ था मगर
मिला हर जगह आईना,बस पत्थर ना मिला ।

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मैँ नाचीज अपने बारे में क्या कहूँ ? अभी तक खुद से ही अन्जान हूँ,अनछुआ हूँ लेखकों की तरह लिखना मुझे आता नहीं,बस जब भी हृदय के दर्पण में भावनायें झाँकती है तो टूटे फूटे शब्दों को कलम के धागे में पिरोकर उनका श्रृंगार करने की कोशिश करता हूँ। यह ब्लॉग,ब्लॉग नही,मेरी किताब ए जीस्त है,और यहाँ लिखा हर एक शब्द मेरे दिल ए ज़ज्बात से निकली वो खूबसूरत आबाजें हैं जिन्होंने कुछ नायाब लम्हों में जन्म लेकर कई बार अपने वजूद को तलाशने की कोशिश की है.... सफर अभी जारी है और कशिश भी.....

26 comments:

  1. सार्थक प्रस्तुति

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  2. Bahut acchhi rachna Kumar Bhai.. Badhai..

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  3. सुन्दर और सार्थक अभिव्यक्ति....

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  4. सच बोलकर सबको,दुश्मन बना लिया
    इस रूह को अब तक कोई खंजर ना मिला


    अपनी जात में अब तक,मैं खुद से बाकिफ था मगर
    मिला हर जगह आईना,बस पत्थर ना मिला ।

    वाह ...बहुत खूब

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  5. ्वाह गज़ब की प्रस्तुति।

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  6. दिल तक पहुंचती हुई एक बेहद उम्दा गजल ! यही तलाश ही तो जिंदगी है....

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  7. बहुत ही अच्छी रचना...

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  8. सच बोलकर सबको,दुश्मन बना लिया
    इस रूह को अब तक कोई खंजर ना मिला

    gahan bhav liye bahut sunder prastuti ...
    badhai...

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  9. सच बोलकर सबको अपना दुश्मन बना लिया ...
    सत्य का एक पहलू ये भी है ही , हम लाख इनकार करें.
    अच्छी प्रस्तुति!

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  10. किसने कहा इन्सान में खुदा बसता है
    बहुत ढूँढा,मगर मुझको पत्थर ना मिला

    ....बहुत खूब...बहुत सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति..

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  11. आपको मेरी हार्दिक शुभकामनायें
    वाह ...बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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  12. सुन्दर प्रस्तुति...
    सादर...

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  13. सच बोलकर सबको,दुश्मन बना लिया

    बिलकुल ठीक कहा है। अच्छी कविता और अच्छा संदेश दिया है।

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  14. परायों में अपना ,अपनो में पराया ढूंढ़ने की कोशिश निरंतर स्वकेंद्रता को पोषित करती है ,जो साहित्य के लिए ,सृजन के लिए शुभ संकेत होता है .......शक्रिया जी ,

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  15. jindagi ki khalish bataati hui bahut hi saarthak rachanaa .sunder shabdon main likhi bemisaal rachanaa.badhaai aapko.

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  16. बधाई कुमार जी...
    स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं.

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  17. बेहतरीन रचना...ये खलिश ही है जो हमें चलाये रखती है...

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  18. सच बोलकर सबको,दुश्मन बना लिया
    इस रूह को अब तक कोई खंजर ना मिला


    अपनी जात में अब तक,मैं खुद से बाकिफ था मगर
    मिला हर जगह आईना,बस पत्थर ना मिला ।

    शानदार प्रस्तुति

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  19. खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

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