आज भी दुखता होगा अंतस
आज भी बंधाती होगी खुद को वो ढांढस
शायद अपने किये अकृत्य पर
शर्मिंदा होकर जब कहीं कुछ पढ़ती होगी
या कहीं कुछ लिखती होगी
या कुछ देखती होगी
अपराधबोध से ग्रसित हो जाती होगी और-
उससे बाहर आने के लिए एक संकल्प दोहराती होगी
कि अब नहीं होने देगी फिर से भ्रूण हत्या
नहीं करेगी तुम्हारा बहिष्कार
शायद उस वक्त माँ कमजोर पड़ गयी होगी और -
पत्नी जीत गयी होगी
एक शर्त के साथ पहला और -
आखिरी दांव तुम लगाओगे
भ्रूण हत्या माँ के रूप में नहीं चाहती होगी
मगर पत्नी के कर्त्तव्य के आगे
जुबान पर ताला लगाया होगा
चाहे एक बार ही आगमन से बेशक रोका होगा
क्योंकि पाप तो पाप होता है
चाहे एक बार करो या सौ बार और -
उसका फल भी पाया होगा
वक्त की मार ऐसी पड़ी होगी
ना जाने कितनी जगह पैसा डुबाया होगा
मगर तब भी समझ ना आया होगा
कि किस करनी का फल मिला है
शायद यही डर रहा होगा
बेटी की शादी में खर्चा कितना होगा
कैसे होगा और कहाँ से होगा
मगर वक्त की मार से कौन बचा है
कर्म का लेखा जोखा तो यहीं बुना है
इतना तो गँवा ही दिया होग
जितना उसके पालन पोषण या ब्याह में खर्च करना होता
तब जाकर समझ आया होगा
उसका इन्साफ बेआवाज़ होता है
मगर इन्साफ जरूर होता है
जो बात वो ना समझा सकी होगी
वो वक्त ने समझा दी होगी
उस पिता तक भी पहुँचा दी होगी
सब अपने भाग्य का खाते हैं
फिर क्यों उसमे दखल दें और -
भ्रूण हत्या का पाप सिर पर लें
बेशक आज विचारों में बदलाव आया है और -
भ्रूण हत्या ना होने देंगे ये प्रण दोहराया है
मगर फिर भी ये कसक रोज तडपाती तो होगी और-
उसकी अंतरात्मा कचोट कचोट कर कहती होगी
हाँ ........मैंने भी इक पाप किया है
जिसका प्रायश्चित उम्र भर ना हो सकता है !
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वन्दना गुप्ता
http://vandana-zindagi.blogspot.in/
आज भी बंधाती होगी खुद को वो ढांढस
शायद अपने किये अकृत्य पर
शर्मिंदा होकर जब कहीं कुछ पढ़ती होगी
या कहीं कुछ लिखती होगी
या कुछ देखती होगी
अपराधबोध से ग्रसित हो जाती होगी और-
उससे बाहर आने के लिए एक संकल्प दोहराती होगी
कि अब नहीं होने देगी फिर से भ्रूण हत्या
नहीं करेगी तुम्हारा बहिष्कार
शायद उस वक्त माँ कमजोर पड़ गयी होगी और -
पत्नी जीत गयी होगी
एक शर्त के साथ पहला और -
आखिरी दांव तुम लगाओगे
भ्रूण हत्या माँ के रूप में नहीं चाहती होगी
मगर पत्नी के कर्त्तव्य के आगे
जुबान पर ताला लगाया होगा
चाहे एक बार ही आगमन से बेशक रोका होगा
क्योंकि पाप तो पाप होता है
चाहे एक बार करो या सौ बार और -
उसका फल भी पाया होगा
वक्त की मार ऐसी पड़ी होगी
ना जाने कितनी जगह पैसा डुबाया होगा
मगर तब भी समझ ना आया होगा
कि किस करनी का फल मिला है
शायद यही डर रहा होगा
बेटी की शादी में खर्चा कितना होगा
कैसे होगा और कहाँ से होगा
मगर वक्त की मार से कौन बचा है
कर्म का लेखा जोखा तो यहीं बुना है
इतना तो गँवा ही दिया होग
जितना उसके पालन पोषण या ब्याह में खर्च करना होता
तब जाकर समझ आया होगा
उसका इन्साफ बेआवाज़ होता है
मगर इन्साफ जरूर होता है
जो बात वो ना समझा सकी होगी
वो वक्त ने समझा दी होगी
उस पिता तक भी पहुँचा दी होगी
सब अपने भाग्य का खाते हैं
कोई ना किसी का लेखा जोखा रखता है
सब कुछ करने वाला तो
ऊपर वाला होता हैफिर क्यों उसमे दखल दें और -
भ्रूण हत्या का पाप सिर पर लें
बेशक आज विचारों में बदलाव आया है और -
भ्रूण हत्या ना होने देंगे ये प्रण दोहराया है
मगर फिर भी ये कसक रोज तडपाती तो होगी और-
उसकी अंतरात्मा कचोट कचोट कर कहती होगी
हाँ ........मैंने भी इक पाप किया है
जिसका प्रायश्चित उम्र भर ना हो सकता है !
.jpg)
वन्दना गुप्ता
http://vandana-zindagi.blogspot.in/
इतना तो गँवा ही दिया होग
ReplyDeleteजितना उसके पालन पोषण या ब्याह में खर्च करना होता
ohh dukhad ,bahut hi sarthak kavita
http://blondmedia.blogspot.in/
sarthak rachana.
ReplyDeleteसब कुछ करने वाला तो ऊपर वाला होता है
ReplyDeleteफिर क्यों उसमे दखल दें और -
हाँ ........मैंने भी इक पाप किया है
जिसका प्रायश्चित उम्र भर ना हो सकता है !एक सुन्दर रचना