मोह से मोक्ष की यात्रा
कभी प्राप्य कभी अप्राप्य ...
रश्मि प्रभा
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उसकी खोज
वह खोजती है
उन शब्दों का साहचर्य
जहाँ आत्मा के पार का संसार
जीवित होता है,
और बांधता है पूरा आकाश,
वह खोजती है
उन क्षणों का सौन्दर्य
जहाँ शब्दों के बीच का मौन
महाकाव्य रचता है
सरल संस्तुतियों के साथ,
वह खोजती है
उन आत्मीय संबोधनों के स्वर
जहाँ पीड़ा भी संवरती है
निर्वसन निराकार,
वह खोजती है
उस तोष के कुछ सूत्र
जहाँ अथाह एकांत में
किया था उसने
मोक्ष से सहवास
''लिख सकूँ तो - प्यार लिखना चाहती हूँ ठीक आदमजात - सी बेखौफ दिखना चाहती हूँ"
*वह खोजती है
ReplyDeleteउस तोष के कुछ सूत्र
जहाँ अथाह एकांत में
किया था उसने
मोक्ष से सहवास*
उम्दा सोच या ईच्छा या अभिलाषा की उत्तम अभिव्यक्ति .... !!
bahut sundar...
ReplyDeleteअल्फाजों की सादगी में कविता और भी खुबसूरत बन पड़ी है...बधाई आपको!
ReplyDeleteवह खोजती है
ReplyDeleteउस तोष के कुछ सूत्र
इस खोज का प्राप्य क्या है? खोज इस दिशा में भी तो हो...
बहुत खूबसूरती से भावों को अभिव्यक्त किया है
sundar bhaavokti!
ReplyDeleteatyant bhavpurn abhivyakti ! sadar
ReplyDeleteएक उत्कृष्ट कविता।
ReplyDeleteमोक्ष ही तो मानव-जीवन का लक्ष्य है।
bahut sundar prawahwali kavita
ReplyDeleteयही खोज तो सर्वोत्तम खोज है, ज़िन्दगी की खोज है, खुद की खोज है..
ReplyDeleteसुन्दर!!
सादर,
मधुरेश
बेहतरीन प्रस्तुति।
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