मैं सोचती रही
शब्‍दों की विरासत 
मिली थी तुम्‍हें 
या आत्‍ममंथन ने की थी रचना 
शब्‍दों की 
जब भी तुम भावनाओं के 
दीप प्रज्‍जवलित करती तो 
उनकी रोशनी से 
जगमगा उठती मंदिर की मूर्तियाँ
ईश वंदना में झुके हुए शीष 
घंटे की ध्‍वनि से 
खुद को तंरगित महसूस करते 
जैसे आशीष बरस रहा हो 
एक अधीर मन की छटपटाहट 
जिसे कहना कठिन था 
बस समझा जा सकता था 
पारखी नज़रों से
यही वरदान मिला था तुम्‍हें भी 
परखने का .. 
..............
मैने देखा है 
तुम्‍हारी आंखों में अपनापन 
बोली में सहजता 
संस्‍कारों की हथेली पर 
अखंड ज्‍योत जलती रहती है संयम की 
तेज हवाओं में भी 
उस लौ की स्थिरता  
तुम्‍हारे बुलंद इरादों का दर्श दिखलाती है
.... 
तम घबराता है 
सत्‍य अडिग रहता है 
भय हार जाता है जब तुम्‍हें डराकर 
ईश्‍वर को भी जब तुम कहती हो
मैं तैयार हूँ हर चुनौती के लिए
सोचो परिस्थितियाँ विचारमग्‍न होकर 
जस की तस 
उचित समय का इन्‍तजार करने लगें जब 
उन लम्‍हों का साक्षी 
कौन होगा सिवाय ईश्‍वर के 
जो देखकर सब 
अपनी मंद मुस्‍कान कायम रखता है 
विजय तो होनी ही थी 
विश्‍वास का बीज़ मंत्र विरासत में जो मिला था ...


सीमा सिंघल 

एक परिचय :
मैं सीमा सिंघल मेरे शब्‍दों में कहूं तो भावनाओं को व्‍यक्‍त करने का माध्‍यम कविता बखूबी करती है, अनुराग…समर्पण … कर्तव्‍य सिखाती हैं सच्‍ची भावनाएं जिसमें विचारों का ओज़ हो संयोजन हो शब्‍दों का वो जुड़ते हैं खुद से आत्‍ममंथन के रूप में बस इसीलिए तो मन को भाता है कविता लिखना …बचपन से ही पसन्‍द है लेखन का यह रूप … कभी आकाशवाणी रीवा से इनका प्रसारण तो कभी पत्र-‍पत्रिकाओ में प्रकाशन के बाद 2009 से ब्‍लॉग जगत में ‘सदा’ के नाम से जुड़ने के साथ सुखद परिणाम यह है कि मेरा प्रथम काव्‍य संग्रह ‘अर्पिता’ आप सब के बीच है ..आनेवाले कविताओं के संकलन अनुगूंज में भी आप पाएंगे मेरी रचनाओं को …. अपने बारे में सिर्फ इतना ही कहूंगी …जन्‍म स्‍थान- रीवा (मध्‍यप्रदेश) शिक्षा एम.ए. (राजनीतिशास्‍त्र) से वर्तमान में एक नि‍जी संस्‍थान में निजसचिव के पद कार्यरत हूं रूचियों में लेखन के अलावा पुराने सिक्‍के संग्रहित करना, पुराने फिल्‍मी गीत सुनने के साथ अमृता प्रीतम जी को पढ़ना अच्‍छा लगता है….. मेरा ई-मेल- sssinghals@gmail.comएवं ब्‍लॉग – http://sadalikhna.blogspot.com/


6 comments:

  1. अच्छी और संवेदनशील कविता .......इस कविता में भावनाओं का एक ऐसा प्रवाह है जिसमें संस्कृतियाँ करवट लेती दिखाई दे रही है . सीमा जी , एक सुन्दर और सारगर्भित कविता के लिए बहुत-बहुत बधाईयाँ !

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  2. आपकी कविताओं में भावनाओं की सूक्ष्म धाराएँ बहती हैं, एकदम सत्य सी... निर्विरोध, बेधड़क!
    पहली बार आपका नाम जाना, मैं तो 'सदा' जी के नाम से ही जानता था.. :)
    बहुत शुभकामनाएं आपको पुस्तक और कविता संग्रह के लिए.
    सादर,
    मधुरेश

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  3. ्सीमा जी का लेखन गहनता लिये होता है।

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  4. तुम्‍हारी आंखों में अपनापन
    बोली में सहजता
    संस्‍कारों की हथेली पर
    अखंड ज्‍योत जलती रहती है संयम की
    तेज हवाओं में भी
    उस लौ की स्थिरता
    तुम्‍हारे बुलंद इरादों का दर्श दिखलाती है


    bahut hi saarthak aur prerak rachna....

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