एक नदी सी लड़की
चपल चंचल ...
गौर करो ,
खुद में त्रिवेणी लिए चलती है
यानि - मुक्ति !

रश्मि प्रभा

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एक नदी थी

वह एक नदी थी
जब तुमसे मिली थी
बहती थी अपनी रौ में
कल-कल करती....कूदती फांदती ...
प्यार की फुहारों से भिगोती
इठलाती थी इतराती थी
चंचल शोख बिजली सी बल खाती थी
पर...
तब तुम्हे कहाँ भाती थी

राह में इसके कंकड़ पत्थर भी तो थे
कुछ सूखे हुए फूल कुछ गली हुई शाखाएं भी तो थी
कुछ अस्थि कलश जो डाले थे किसी ने किसी अपने को मोक्ष प्रदान करने के लिए
कुछ टोने टोटके वाले धागे जो बांधे थे किसीने अपने पाप किसी और के सर मढ़ने के लिए
गठरी बंधी थी कामनाओं की.... वासनाओं की
जो बाँधी थी कुछ अपनों ने... कुछ बेगानों ने
और भी ना जाने क्या क्या था उसके अंतस में
था जो भी .... उसके अंतस में
ऊपर तो थी बस कल कल करती मधुर ध्वनि
तुम्हारी नजरें तो टिकी थी
बस अंतस की गांठो को तलाशने में
उस तलाश में तुमने नहीं देखा
उसकी पवन चंचलता को
क्या क्या नाम दिए तुमने उसकी चपलता को
तुम ढूंढते ही रहे
कि... कोई सिरा मिल जाए कि
बाँध पाओ उसे ...रोक पाओ उसे
और कुछ हद तक बांधा भी तुमने उसे
पर..क्या तुम्हे पता नही था ?
धाराएँ जब आती हैं उफान पर सारे तटबंधों को तोड़ जाती है
और अगर दीवारों में बंध जाती हैं तो नदी कहाँ कहलाती है
नदी का पानी जब ठहर जाता है कीचड़ हो जाता है
क्या तुम्हे पता नहीं था ?
पर जरा ठहरो ....
अपनी दीवारों पर इतना मत मुस्कुराओ
उम्मीद की एक किरण अभी भी बाकी है
कीचड़ में भी फूल खिलाने का हुनर नदी जानती है !!
कभी हार कहाँ मानती है !
नदी हमेशा मुस्कुराती है !


वाणी शर्मा

7 comments:

  1. bahut hee utkrist rachna ..sadar badhayee aaur amantran ke sath

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  2. कभी हार कहाँ मानती है !
    नदी हमेशा मुस्कुराती है !
    नदी की मुस्कान बरकरार रहे

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  3. बहुत सुंदर ! नदी कभी हार नहीं मानती...उसकी मुस्कान में गहरे राज छुपे हैं

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  4. कभी हार कहाँ मानती है !
    नदी हमेशा मुस्कुराती है !
    बेहतरीन ।

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