
नियमों के उल्लंघन में
एक परिचय छुपा रहता है
छोटे छोटे अपराध से ही आरम्भ होता है
रश्मि प्रभा
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ऐसा क्यो होता है
ऐसा क्यो होता है ?
जंहा' फूल तोड़ना मना है '
'लिखा है '
वही पर सबसे ज्यादा फूल तोड़ते है |
जहा' नो पार्किंग 'होती है ,
वंही "विशेष "गाडिया खड़ी होती है |
जहा' धुम्रपान 'वर्जित है ,
वही "सूटेड बूटेड "
धुएं के छल्ले उडाते देखे जाते है |
जहा कचरा फेकाना मना है ,
वही पर
पोलिथिनो में बांधकर कचरा फेकते है
"कैन में पेट्रोल ले जाना मना है ,
वही पेट्रोल पम्प पर धड़ल्ले से
कैन भरी देखि जा सकती है |
हम कौनसी भाषा समझते है ,या की
समझनाही नही चाहते
मन्दिर की शान्ति को सराहते है ,
परन्तु
जूतों कीगंदगी
वहा फैला ही आते है
आप ही बताये
ऐसा क्यों होता है |
वेदना तो हूँ पर संवेदना नहीं, सह तो हूँ पर अनुभूति नहीं, मौजूद तो हूँ पर एहसास नहीं, ज़िन्दगी तो हूँ पर जिंदादिल नहीं, मनुष्य तो हूँ पर मनुष्यता नहीं , विचार तो हूँ पर अभिव्यक्ति नहीं|
hamare andar aadat ho gayee hai pratirodh ki.. beshak wo aadat galati hai to bhi..:)
ReplyDeleteक्यों की सब कानून तोड़ने में माहिर हैं ...
ReplyDeleteसोचने पर मजबूर करती रचना
चाबुक का डर है नहीं, अनुशाशन भी मंद
ReplyDeleteबने नियम को तोड़ कर. हम पाते आनंद.
शायद इसलिए की नियमों को तोडना हमारा अधिकार बन गया है और 'Defiance' हमारी अदा ...तभी तो सिगरेट के पैकेट पर 'Cigarette smoking is injurious to health' लिखा होने के बावजूद....लोग बड़ी शान से छल्ले उड़ाते हैं.....मानो कह रहे हों हमें मौत का क्या डर...!!!!!
ReplyDeleteसंवेदनशील कविता..
ReplyDeleteआप ही बताये
ReplyDeleteऐसा क्यों होता है |?
इंसानी फितरत ....
छोटे-छोटे मूल्यों का
उल्लंघन करने में आन्नद उठाता है .... !!
इसी का तो जवाब नही है किसी के पास्।
ReplyDeleteबारीक सर्वेक्षण!!
ReplyDeleteमानवीय उछ्रंखलता!!
आपको अच्छे परिणाम चाहियें तो ऐसे बोर्ड लगायें -
ReplyDeleteयहाँ गाड़ी पार्क करना ज़रूरी है
कृपया यहाँ धूम्रपान करें और दूसरों को भी करायें
यह बहुत साफ़ जगह है, कृपया यहाँ गन्दगी अवश्य करें
इत्यादि इत्यादि
यही तो बिडम्बना है ...
ReplyDeleteऐसा ही होता है...क्यों होता है...शायद प्रवृति के कारण!
ReplyDeleteshayad apni shekhi dekhane ke liye ki hamari aage koi kayada kannon nahi chalta...
ReplyDeletebahut badiya prerak prastuti...
ये हमारे असली भारतीय संस्कार हैं...युगों से रगों में घुस गये हैं...कि स्वार्थ सर्वोपरि हो गया है...विदेशी ऐसे ही हम पर राज नहीं कर रहे थे...इन प्रश्नों का जवाब हर किसी के पास है...पर वो खुद से सवाल करने से कतराता है...
ReplyDeleteअरे! बात बडी पुरानी है, "आदम और हव्वा को मना था,सेब खाना।" मगर खाया गया!और हम हैं!
ReplyDeleteक्योंकि वर्जनाओं को तोड़ना
ReplyDeleteहमारी आदत है।
कैसे लगेगा दुनिया को
कि हम "हम" हैं
अगर नहीं दिया
अपना परिचय इस तरह।
होगी किसी शरीफ़ के लिये ज़लालत
हमारे लिये तो यही शराफ़त है।
क्योंकि वर्जनाओं को तोड़ना
ReplyDeleteहमारी आदत है।
कैसे लगेगा दुनिया को
कि हम "हम" हैं
अगर नहीं दिया
अपना परिचय इस तरह।
होगी किसी शरीफ़ के लिये ज़लालत
हमारे लिये तो यही शराफ़त है।
कुछ लोगों को इसी में आनन्द आता है ... सार्थकता लिए सटीक प्रस्तुति... आभार ।
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