एक अदद नाम
एक पहचान खोजने की कोशिश में
कई उलझे चेहरे मिलते हैं
उकताए हुए कहते हैं -
अमां छोड़ो यार ... क्या करोगे जानकर !


रश्मि प्रभा

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मेरा नाम

कभी कभी
अन्दर से निकल कर
जब मैं
बाहर आ जाता हूँ
तो स्वयं को पहचान ही नहीं पाता हूँ
खो जाती है मेरी पहचान
वो जो
कभी तुमने
कभी औरों ने दी
मैं तो बस इसके उसके
मुंह को ताकता हूँ
और गुजारिश करता हूँ
मुझे देदो कोई नाम
जो सिर्फ मेरा अपना हो
और मैं
कभी स्कूल बस के पीछे भागता हूँ
कभी मोहल्ले की उस
कोने वाली लडकी के पीछे
और चांटे खाकर
थका हारा
किसी और के पीछे भागता हूँ
कालांतर में
आटा दाल के पीछे
और उसके बाद
भावनाओं के समुन्दर में
बच्चो की दया के पीछे
पत्नी भी घिसटती है साथ साथ
मै नाम पूछता हूँ
वो विद्रूप हंसी हंसती है
मगर मेरा नाम नहीं बताती
जानते हुए भी
मन ही मन
कई बार बुदबुदाती है
और अन्दर ही अन्दर कई बार बोलती है
खपच्चियों में कसा
एक नर कंकाल
जिसके सैकड़ों नाम है
मगर असल में कोई नहीं
नर कंकाल भी नहीं .




-कुश्वंश

12 comments:

  1. वाह! क्या खूब कहा आपने,

    "रूह को नाम की ज़ेहमत न दो ये एहसान करो,

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  2. एक बेहद गहन और प्रभावशाली रचना सोचने को मजबूर करती है।

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  3. बहुत सुन्दर और सार्थक पोस्ट, आभार.

    कृपया मेरे ब्लॉग" meri kavitayen" की नवीनतम पोस्ट पर पधार कर अपनी अमूल्य राय प्रदान करें, आभारी होऊंगा.

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  4. बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ।

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  5. अमां छोड़ो यार ... क्या करोगे जानकर !kya baat hai.....aur uspar ye kavita,wah.

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  6. हमारा असली नाम क्या है इससे हम ही नहीं जानते तो दूसरा कैसे जानेगा...बहुत सुंदर कविता!

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  7. व्यक्तित्व के अनुसार नाम विरले देखने को मिलता है.... !!

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  8. बहुत गहन और सुंदर प्रस्तुति...

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  9. दुनिया में रहते रहते शायद स्वयं को भूल जाते हैं ......खुद ही खुद को नहीं पहचानते ...
    बहुत सुंदर रचना ...

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  10. वाह बहुत सुन्दर

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