क्यूँ गलत परिभाषा बनाते हो
रश्मि प्रभा
कर्म से भागते हो तुम
और जो आधे शरीर से पूरे कर्म करते हैं
उन्हें अपाहिज कहते हो !!!
रश्मि प्रभा
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अपाहिज
वो मानव
जिसका कोई
अंग भंग हो
आम भाषा में
अपाहिज कहलाता है
पर मुझे नहीं लगता
कि भंगित अंग होने से
अपाहिजता का
कोई नाताहै ।
मैंने देखे हैं
ऐसे इंसान
जिनके नेत्र नहीं
वो सूंघ कर
काम चलाते हैं
जिनके हाथ नहीं
वो पैरों को हाथ बनाते हैं
और पैर विहीन
अपने कर से
चल कर जाते हैं ।
जिनके हाथ - पांव नहीं
वो धड़ को
इस्तेमाल में लाते हैं।
मैंने पैर की उंगली में
फंसे ब्रश से
चित्रकारी करते देखा है
एक हाथ से
सलाइयों पर
स्वेटर बुनते देखा है ।
फिर कैसे मान लें
कि ऐसे लोग
अपाहिज होते हैं ?
अपाहिज हैं वो लोग
जो मात्र सोच की
बैसाखी ले कर चलते हैं
और अपनी
अकर्मण्यता को
अपनी मजबूरी कहते हैं॥
संगीता स्वरुप
आपकी भूमिका और संगीता जी की कविता दोनों अनुपम हैं!
ReplyDeleteअपाहिज हैं वो लोग , जो मात्र सोच की ,
ReplyDeleteबैसाखी ले कर चलते हैं ,और अपनी ,
अकर्मण्यता को ,अपनी मजबूरी कहते हैं॥
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ऐसे सोच वालों को झंझकोर कर रख देगी.... !
तब शायद,शायद आखें खुलवा दे ये रचना.... !!
रश्मि दी आपने सच कहा...
ReplyDeleteसक्षम होकर कुछ ना करने वाला ही अपाहिज है..
सार्थक कविता है संगीता जी की और सटीक भूमिका..
सादर.
सार्थक सोच के साथ ..बेहद सटीक शब्दों में अभिव्यक्ति ...
ReplyDeleteअंतस को झकझोर देने वाली बहुत सटीक और प्रभावी रचनाएँ...
ReplyDeleteरश्मि जी ,
ReplyDeleteआभार आपका ..मेरी इस सोच को यहाँ लाने के लिए ..
सभी पाठकों का शुक्रिया
सोच से अपाहिज होना ही समाज के लिए हानिप्रद है . अच्छा सन्देश देती कविता
ReplyDeleteaap dono ka combination hai ise to lajavaab hona hee tha :)
ReplyDeleteधारा प्रवाह सटीक भावनाएं...अंतस तक झकझोर जाती हैं.हैट्स ऑफ टू संगीता जी.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर संगीता जी ! आपकी रचना ने तो अपाहिजता की परिभाषा ही बदल दी ! वास्तव में अपाहिज वे ही लोग हैं जो शारीरिक रूप से तो सम्पूर्ण हैं लेकिन मानसिक रूप से लाचार, बेज़ार और अकर्मण्य हैं ! बहुत ही प्रेरक रचना ! रश्मि जी का आभार इसे हम तक पहुँचाने के लिये !
ReplyDeleteअपाहिज हैं वो लोग
ReplyDeleteजो मात्र सोच की
बैसाखी ले कर चलते हैं
और अपनी
अकर्मण्यता को
अपनी मजबूरी कहते हैं॥
सही कहा सोच अपाहिज होती है इंसान नहीं…………बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
बेहतरीन प्रस्तुति।
ReplyDeleteसुमन सिन्हा जी का परिचय देखें यहां ...
अपाहिज हैं वो लोग
ReplyDeleteजो मात्र सोच की
बैसाखी ले कर चलते हैं
और अपनी
अकर्मण्यता को
अपनी मजबूरी कहते हैं॥
बहुत ही अच्छी और प्रेरक रचना!
अपाहिज हैं वो लोग
ReplyDeleteजो मात्र सोच की
बैसाखी ले कर चलते हैं
यकीनन ... अपहिजता अंग से ज्यादा सोच की होती है ...
बहुत ही अच्छी रचना!...
ReplyDeleteअपाहिज हैं वो लोग
ReplyDeleteजो मात्र सोच की
बैसाखी ले कर चलते हैं
और अपनी
अकर्मण्यता को
अपनी मजबूरी कहते हैं॥
वाकई सच कहा आपने
और अपनी
ReplyDeleteअकर्मण्यता को
अपनी मजबूरी कहते हैं॥
मन के चक्षु खोलती ...भूमिका और कविता ....
आभार आभार ....आप दोनों को ह्रदय से आभार ...!!
अपाहिज वो नहीं जिनके अंग-भंग हैं बल्कि अपाहिज वो है जिनकी मानसिकता कुंठित है|बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति...बधाई..
ReplyDeleteहौसलों से भरपूर इन लोगों को देखकर कई बार अपनी कमतरी का एहसास होता है !
ReplyDeleteप्रेरक और सार्थक रचना !
बहुत बहुत अच्छी कविता है संगीता जी
ReplyDeleteअपाहिज हैं वो लोग
जो मात्र सोच की
बैसाखी ले कर चलते हैं
और अपनी
अकर्मण्यता को
अपनी मजबूरी कहते हैं॥
क्या बात है !
bilkul sach or sahi kaha aapne
ReplyDeleteअपाहिज को सुंदरता से एवं सच्चाई से परिभाषित किया,आपने.
ReplyDeletebehtreen soch kash sabhi ki ho bhut prerna daai rachna.
ReplyDeleteव्यक्ति अपनी सोच से अपाहिज बनता है ..
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर सार्थक एवं सशक्त अभिव्यक्ति ....
बहुत सार्थक चिन्तन है -अपाहिज मानसिकता होती है ,मात्र शरीर नहीं !
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