ग़ज़ल
पास अपने रौशनी काफी नहीं तो क्या हुआ
दिल जले है ,जो दीया बाती नहीं तो क्या हुआ |
पार कर लेंगे उफनते दरिया को हम तैरकर
हौंसला तो है, अगर कश्ती नहीं तो क्या हुआ |
उस खुदा की रहमतें मिलती रहें काफी यही
साथ मेरे जो तेरी मर्जी नहीं तो क्या हुआ |
खत्म होगा एक दिन ये दौर दहशत का सुनो
आज तक जालिम हवा बदली नहीं तो क्या हुआ |
गीत हैं आहें मेरी , गाऊं सदा मैं झूम के
साज हैं सांसे मेरी , डफली नहीं तो क्या हुआ |
हार मानी क्यों , मिलेंगे और भी मौके कई
विर्क जो किस्मत अभी चमकी नहीं तो क्या हुआ |
दिलबाग विर्क
खत्म होगा एक दिन ये दौर दहशत का सुनो
ReplyDeleteआज तक जालिम हवा बदली नहीं तो क्या हुआ...
amen..
वाह!
ReplyDeleteबहुत सुंदर ! जोश के जज्बे से भरी गजल !
ReplyDeletekhoobsoorat gazal...
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी प्रस्तुति ... आभार ।
ReplyDeleteबहुत खूब!!!!!!!
ReplyDeleteखत्म होगा एक दिन ये दौर दहशत का सुनो
ReplyDeleteआज तक जालिम हवा बदली नहीं तो क्या हुआ |
kash ki yah sch ho jaye . sarthak v prerak post hae aapki......
aapke amantran ka shukriya.mae avashya hi shmil houngi..........
बहुत सकारात्मक रचना ..
ReplyDeleteसुंदर !!
वाह दिलबाग जी बहुत ही खूबसरत पंक्तियां ।
ReplyDeleteसकारात्मक सोच की सार्थक कविता!
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeleteबहुत ही खुबसूरत और प्यारी रचना..... भावो का सुन्दर समायोजन......
ReplyDeleteपार कर लेंगे उफनते दरिया को हम तैरकर
ReplyDeleteहौंसला तो है, अगर कश्ती नहीं तो क्या हुआ |
वाह-वाह .....
आपकी पोस्ट चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
ReplyDeleteकृपया पधारें
http://charchamanch.blogspot.com
चर्चा मंच-805:चर्चाकार-दिलबाग विर्क>