एक अपना घर
रश्मि प्रभा
संध्या
बचपन साथी खट्टे टिकोले
छोटी सी ज़िद छोटी सी ख़ुशी
थोड़ा सा रूठना
पापा माँ का मनाना ....
दूर होकर बहुत याद आते हैं
बहुत बहुत बहुत
रश्मि प्रभा
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अपना घर, अपना शहर याद आता है
मम्मी की रोटी का समोसा,
पापा का दो रुपया।
अनमने से सुबह उठना,
नाक-भौं चढ़ाना।
मम्मी का चिल्लाना, पापा का बचाना,
बहुत याद आता है, सब कुछ बहुत याद आता है।
तैयार होकर साइकिल उठाना,
मेरा नखरे दिखाना, मम्मी का मनाना,
पेटीज और फ्रूटी की रिश्वत पर एक रोटी खाना।
स्कूल से लौटकर वापस आना,
दरवाजे पर मम्मी को देखकर खुश हो जाना,
बहुत याद आता है,दौड़कर मम्मी का चाय लाना,
रात में बार-बार उठकर पापा का मेरा कमरे तक आना,
पढ़ते हुए मुङो पाकर, सिर पर हाथ फेरकर वापस लौट जाना।
वो लाड़ और वो गुस्सा सब याद आता है।
दूर जाने के बाद अपना शहर, अपना घर बहुत याद आता है।
संध्या
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति.....
ReplyDelete......aur vo yaden kitni meethi lagti hain......
ReplyDeleteसुन्दर रचना।
ReplyDeleteअब ये सारे नाजो नखरे आप को भी तो उठाने हैं किसी और के लिये...
ReplyDeleteमम्मी की रोटी का समोसा....
ReplyDeleteपहली पंक्ति ने ही स्मृतियों के परदे उठा खींच दिए और बहुत कुछ दृष्टिगोचर होने लगा...
सुन्दर रचना.... संध्या जी को सादर बधाई...
आभार दी.
बहुत सुंदर भावमयी प्रस्तुति...
ReplyDeleteहाँ!!!
ReplyDeleteबहुत याद आता है..
बहुत बहुत बहुत......
BACHPAN KE DIN BHI WOH KYA DIN THE,WOH MUMMY KA GUSSA,
ReplyDeletePAPA KA WOH PYAR,
YAD AUR BAS EK YAD-EK ACHHI BACHPAN KO KUREDTI RACHNA
पापा माँ का मनाना ....
ReplyDeleteदूर होकर बहुत याद आते हैं
बहुत बहुत बहुत
और "यादें" एक कमी बन कर जिन्दगी भर साथ चलती रहेगी.... !!