हाथों में लम्हों की भरमार है
फिर कौन से चौकलेटी लम्हें
पीछे से आवाज़ दे रहे ...
रश्मि प्रभा
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वे ठिठके पल...
देर तक मुट्ठी में बंद, उस
चिपचिपी चॉकलेट का स्वाद
गेट से लौटती नज़र
घड़ी की टिकटिक और
कदमों तले चरमराते
सूखे पत्तों की आवाज़
वो बेख्याली में आ जाना
परेशान करती,
सूरज की किरणों के बीच
और मेरे चेहरे से उछल कर
तुम्हारे काँधे पर जा बैठना
खरगोश के छौने सा
उस धूप के टुकड़े का
जरा सी तेज आवाज
और हडबडा कर, उड़ जाना
उस पतली डाल से
झूलती बुलबुल का
नामालूम सा
अटका....पीला पत्ता
निकाल देना बालों से
अनजाने ही,ले लेना
भारी बैग...हाथों से
ठिठका पड़ा है वहीँ, वैसा ही सब
अंजुरी में उठा,
ले आऊं उन लमहों को
पास रखूँ
बतियाऊं उनसे, दुलराऊ उन्हें
पर वे उँगलियों से फिसल
पसर जाते हैं, फिर से
उन्हीं लाइब्रेरी की सीढियों पर
नहीं आना उन्हें,
इस सांस लेने को
ठौर तलाशती
सुबह-ओ-शाम में
नहीं,बनना हिस्सा
कल के सच का
झूठे आज में
सिर्फ
आती है,खिड़की से, हवा की लहर
लाती है
अपने साथ
हमारी हंसी की खनक
नल से झरझर बहते पानी में
गूंज जाता है,
अपनी बहस का स्वर
गैस की नीली लपट से
झाँक जाती है,
आँखों की शरारती चमक
सब कुछ तो है,साथ
वो हंसी..वो बहस...वो शरारतें
फिर क्या रह गया वहाँ..
अनकहा,अनजाना,अनछुआ सा
किस इंतज़ार में....
रश्मि रविजा
vaah tareef ke liye kaun se shabd dhoondu.atiuttam.jidagi ke sabhi rang ek saath.
ReplyDeleteअंजुरी में उठा,
ReplyDeleteले आऊं उन लमहों को
पास रखूँ
बतियाऊं उनसे, दुलराऊ उन्हें
पर वे उँगलियों से फिसल
पसर जाते हैं, फिर से
उन्हीं लाइब्रेरी की सीढियों पर
वाह बहुत खूब ....जिंदगी में प्यार के हर रंग को ....हर मोड़ को शब्दों में ढाल दिया
जाने क्यूँ हर बीता हुआ हसीं लम्हा लौट आता है वर्तमान में..और दस्तक देता है यादों के दरीचों से..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर..
कुछ रह ही जाता है अनछुआ सा ………सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteखूबसूरत सा प्यारा लम्हा..
ReplyDeletesundar bhaw....
ReplyDeleteअंजुरी में उठा,
ReplyDeleteले आऊं उन लमहों को
पास रखूँ
बतियाऊं उनसे, दुलराऊ उन्हें
पर वे उँगलियों से फिसल
पसर जाते हैं, फिर से
अफसोस तो इसी बात का ,
शायद ही कोई होगा.... ?
जिन्हें ये नहीं सालता..... :(
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण प्रस्तुति । बधाई ।
ReplyDeleteमेरी नई रचना में पधारें-
"मेरी कविता:आस"
i liked it from the very first line...
ReplyDeletelagta hai jaise koi bhaut hi itminaan se jindgi ko dekh raha ho..
nice one...
पुरानी यादों को समेटना आसान है पर उन पलों को फिर से जीना मुश्किल ...सुंदर कविता !
ReplyDeleteवो बीता हुआ पल जिसमे जिन्दगी रुकी सी लगती है.... बेहद उम्दा भाव......
ReplyDeleteआपलोगों को कविता पसंद आई...आप सबका बहुत बहुत शुक्रिया
ReplyDeleteनहीं आना उन्हें,
ReplyDeleteइस सांस लेने को
ठौर तलाशती
सुबह-ओ-शाम में
नहीं,बनना हिस्सा
कल के सच का
झूठे आज में
bahut sundar !!
wo kahte hain n ki
"kabhi kisi ko mukammal jahan nahin milta"
नहीं आना उन्हें,
ReplyDeleteइस सांस लेने को
ठौर तलाशती
सुबह-ओ-शाम में
नहीं,बनना हिस्सा
कल के सच का
झूठे आज में
बहुत सुन्दर रश्मि जी ! ऐसे पल इतने मासूम, अनछुए और सुकुमार होते हैं कि वे अतीत के उस कोने में ही सुरक्षित रहें वही अच्छा है ! वरना आज की जद्दोजहद और खींचतान में बंटे हुए इंसान के वर्त्तमान से जुड कर उनका क्या हश्र होगा यह सोच कर ही डर लगता है ! बहुत ही प्यारी कविता ! बधाई !
बहुत ही खूबसूरत.. शब्द चित्र
ReplyDeleteनहीं,बनना हिस्सा
ReplyDeleteकल के सच का
झूठे आज में
waah....