कई बातें होठों तक आती हैं
फिर रास्ते बदल गले में अटक जाती है
अनकही होकर झकझोरती रहती हैं
......
रश्मि प्रभा
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अनकही
रह जाती है बहुत कुछ
अनकही
सुप्त, या फिर बेबस, बेचैन ,
शब्द बन जन्म लेते है
जज्बात
मंथन गतिमान होता
उड़कर बाहर आने को आतुर
व्याकुल
होठों तक पहुँच काँप उठते
फिर भी अनकही रह जाती ,
ख़ामोशी
एक चादर तान देती
और छिप कर रह जाते
बहुत कुछ,
एक प्रयत्न पुन:
गतिमान
शब्दों का निर्मित स्वरुप
भावों की उड़ान
सागर की लहरों सा
संघर्ष
फिर भी रह जाती
अनकही ।
डॉ . संध्या तिवारी
बहुत सुन्दर भाव...
ReplyDeleteसच है अनकहा घुटन पैदा करता है...
सुन्दर शब्दों का संगम!...सुन्दर अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteशब्दों का निर्मित स्वरुप
ReplyDeleteभावों की उड़ान
सागर की लहरों सा
संघर्ष
फिर भी रह जाती
है जब अनकही ... दम-घुटता .... गला-रुन्धता लगता है.... !!
अति-सुन्दर अभिव्यक्ति.... !!
pahli baar padha aapko accha laga...
ReplyDeleteकई बातें होठों तक आती हैं
ReplyDeleteफिर रास्ते बदल गले में अटक जाती है
अनकही होकर झकझोरती रहती हैं.....aur ye silsila chalta rahta hai kayee dinon tak.....
kai baar koshish karte hue bhi ankahi man ke bheeter hi simat jaati hai.bhaavon ko bahut sundar tareeke se prastut kiya hai.
ReplyDeletenice...
ReplyDelete्जो अनकहा रह जाता है वो ही तो लिखने को प्रेरित करता है।
ReplyDeleteखुबसूरत अल्फाजों में पिरोये जज़्बात...
ReplyDeleteमैं वंदना जी के विचारों से सहमत हूँ ....
ReplyDeleteprastuti ke sath rachna padhna achha laga...
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति.....
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