खुद से बातें न करो
मधुरेश
उठापटक ना करो
तो मन के कई कमरे बन्द रह जाएँ
प्रश्न मुंह बाए कोने में पड़ा रह जाए
...... खुद को खुद से ही राह मिलती है ...
रश्मि प्रभा
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मैं खुद से बातें करता हूँ!
कभी न्यारी-सी प्यारी बातें,
कभी विचारों से भरी बातें,
उर के भीतर एक द्वंद्व मैं
अनायास ही लड़ता हूँ!
मैं खुद से बातें करता हूँ!
खुद को ही दो टुकड़ों में कर
खुद ही कहता, खुद सुनता हूँ.
कोलाहल में सामंजस्य का
नव नित रूप मैं गढ़ता हूँ.
मैं खुद से बातें करता हूँ!
स्व-चिंतन ही आत्मबोध है,
अंतर-मनन सर्वोत्तम शोध है,
मन के गागर को मैं नित नित
गंगा-जमुना से भरता हूँ.
मैं खुद से बातें करता हूँ!
मधुरेश
स्व-चिंतन ही आत्मबोध है,
ReplyDeleteअंतर-मनन सर्वोत्तम शोध है,
मन के गागर को मैं नित नित
गंगा-जमुना से भरता हूँ.
मैं खुद से("ज्ञानों" वाली यानी"ज्ञानियों" वाला) बातें करता हूँ!
बहुत बढिया।
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया।
ReplyDeleteरश्मि जी, वटवृक्ष में सम्मिलित करने के लिए आभार. बहुत अच्छा भी लगता है, और प्रोत्साहन भी मिलता है :)
ReplyDeletekya baat hei ..
ReplyDeleteबहुत अच्छी बातें करते हो..बहुत बढ़िया!
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति.....
ReplyDeleteअच्छी बात है !
ReplyDeleteस्व-चिंतन ही आत्मबोध है,
ReplyDeleteअंतर-मनन सर्वोत्तम शोध है,
मन के गागर को मैं नित नित
गंगा-जमुना से भरता हूँ.
मैं खुद से बातें करता हूँ!
बहुत सुंदर रचना, जीवन को राह दिखाती हुई !