तुम्हारे नाम / मेरे नाम
समंदर आमने सामने होता
तो लहरों की बातें कुछ इस तरह होतीं
एक कहती एक सुनती
व्यथा एक सी होती ....
रश्मि प्रभा
संघर्ष के माध्यम से उपजा चिंतन
लाया एक नया अध्ययन
मैंने तुम्हें पढ़ा
तुमने एक नया आयाम दिया
लो कविता ने फिर
एक नयी कविता को जन्म दिया
कुछ तुम्हारी कुछ मेरी
दिल की कहानी है
जो लफ़्ज़ों में उतारी है
चलो आज कुछ तुमने कही
कुछ मैंने कही
एक नयी रिश्ते की धारा बही
देखो ना ..........ये मैंने पढ़ा तुम्हें
कुछ इस तरह :--------
वंदना गुप्ता
तुम सिर्फ कविता नहीं
न ही कैनवस हो
जहाँ जब चाहे कोई रंग भर दे ...
तुम कैनवस भी , तुम्हीं रेखाएं , तुम्हीं रंग
हवा में फडफडाते पन्नों को समेटती
खुद से खुद को बचाती एक ख़ामोशी हो तुम
हंसती तो हो सागर की लहरों सी
पर गहरे दबे सीपों से अनजान सी तुम ...
तुम्हें पता है ,
हँसी के घेरे में उलझ कर
लोग मोती भूल जाते हैं
और इस तरह अपने मोतियों को
संभाल लेती हो तुम !
तुम प्रेम भी हो , तुम भक्त भी हो ,
और एक अहर्निश पलता उलाहना भी
प्रेम के बदले प्रेम संभव नहीं
तलाश अदृश्य में प्राप्य की
इस प्रेम को लिखा तो जा सकता है
पर इसकी व्याख्या नहीं हो सकती
क्योंकि यह होकर भी नहीं होता !
इसे न 'हाँ' की शोखी मिलती है
न 'ना' का दर्द
फिर - .....
तुम पहेली तो बिल्कुल नहीं
हाँ समझनेवाले नहीं ...
तुम छुपते छुपते
हकीकत से कल्पना में जीते जीते
थक गई हो ,
वरना -
अचानक तुम्हारी कलम बेबाक हो
मुझसे नहीं कहती -
" लिखिए ना , कौन मना करता है !"
तुम्हें मेरी दृष्टि
मेरे आकलन पर विश्वास है
तुम्हें पता है,
मैं अनकहा सुनती हूँ
तो .... थके मन से तुमने उस लड़की को जानना चाहा
जो तुम्हारे भीतर ही उजबुजाती है
सुगबुगाती है
सिसकती है
पर सत्य असत्य , कर्तव्य अधिकार के बीच
खुलते खुलते रह जाती है ...
.......
एक सच मैंने पहले भी कहा था
फिर दुहराती हूँ
मैं एक रूह हूँ
और जो लड़कियां अपने अन्दर मर सी जाती हैं
उनसे मेरा रूहानी रिश्ता है ....
रश्मि प्रभा
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मैं कविता भी बनी
कैनवास भी बनी
रंग भी बनी
आसमा में भी उडी
हवाओं के रथ पर सवार हो
एक नया आकाश भी बनाया
पर धरती से मेरा रिश्ता
कोई समझ ना पाया
कितना उड़ लूं
पंख कितना परवाज़ भर लें
उतरना तो जहाज पर ही होता है
हाँ .........हूँ मैं अपने लिए
एक अबूझ पहेली सी
नहीं जानती ......क्या चाहती हूँ
किससे चाहती हूँ
और क्यों चाहती हूँ
मगर मोहब्बत का असीम सागर
सीने में लिए फिरती हूँ
उसी में एक बूँद
अमृत की भी छुपायी है
उसी अमृत की जो
मैं बाँटना चाहती हूँ
मगर मुझे वो खुदा मिलता ही नहीं
ना जाने कौन सी अल्हड़ता आड़े आ जाती है
जो मर्यादाओं की लक्ष्मण रेखा ना लाँघ पाती है
और अपनी सोच में
अपने ख्वाब की हकीकत में
जो छिपना चाहती है
नहीं बताना चाहती
अधिकार कर्तव्यों से परे भी
एक जीवन होता है
जहाँ सिर्फ रूहों का घर होता है
अनकहे जज़्बात होते हैं
कुछ फैले तो कुछ सिमटे
अहसासों के लम्हात होते हैं
कल्पना हो या हकीकत
दो जिंदगियां कैसे जिए कोई
किसी को तो मरना ही होता है
यूँ ही नहीं बंद जुबानों के पीछे छुपे तूफ़ान खामोश रहते हैं
कोई तो कारण होता है .........मुस्कुराने का
वंदना गुप्ता
मैं एक रूह हूँ
ReplyDeleteऔर जो लड़कियां अपने अन्दर मर सी जाती हैं
उनसे मेरा रूहानी रिश्ता है ....
unhein himmat honsle se
jeevant kartee hoon
phir se hansaa kar
sukoon paatee hoon
रश्मि जी …………बहुत सुन्दर रूप मे आपने हमारी गुफ़्तगू को प्रदर्शित किया है ………………
ReplyDeleteकुछ अनकही कहानियाँ कुछ कहे जज़्बात
ये है रश्मिप्रभा की करामात
सूरज अपने उजियारे से नवाज़े
चाँद अपनी चाँदनी से नहलाये
सितारों की लडियाँ सदा झिलमिलाये
जीवन प्रकृति की सुन्दरता सा खिलखिलाये
जन्मदिन पर मिले मोहब्बत की सौगात
जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनायें रश्मि जी :)))))
गहन भाव संयोजन लिए ....बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर..भावपूर्ण और मनोहारी अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteसादर.
बेहद सुंदर अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteअभिव्यक्ति एवं भावों का संसार ऐसा ही तो होता है... कहाँ कहां से तार जुड़ कर आबद्ध कर देते हैं... यह जुड़ने वालों को भी कहां पता चलता है.... ये है कविताओं की दुनिया जहाँ एक की व्यथा दूसरे के नयनों से बहती है... एक का भाव दूसरे की आत्मा को आंदोलित करता है...
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा अभिव्यति के इस भाव नगर के दो उम्दा कलमकारों को एक साथ पढ़कर:)
मैं एक रूह हूँ
ReplyDeleteऔर जो लड़कियां अपने अन्दर मर सी जाती हैं
उनसे मेरा रूहानी रिश्ता है ....
कल्पना हो या हकीकत
दो जिंदगियां कैसे जिए कोई
किसी को तो मरना ही होता है
यूँ ही नहीं बंद जुबानों के पीछे छुपे तूफ़ान खामोश रहते हैं
कोई तो कारण होता है .........मुस्कुराने का
अद्भुत अभिव्यक्ति...
अद्भुत जुगलबंदी...
ReplyDeleteसुन्दर रचनाएं...
सादर बधाई.
वाह ...दोनों रचनाएँ अद्भुत ....
ReplyDeleteसभी रचनाएँ उत्कृष्ट...आभार
ReplyDeleteतुम्हें पता है, मैं अनकहा सुनती हूँ
ReplyDeleteमैं एक रूह हूँ...
और जो लड़कियां अपने अन्दर मर सी जाती हैं
उनसे मेरा रूहानी रिश्ता है!
यूँ ही नहीं बंद जुबानों के पीछे छुपे तूफ़ान खामोश रहते हैं...
अनुपम पंक्तियाँ!
जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनायें रश्मि जी :
ReplyDeleteसुन्दर रचनाएं...
सादर बधाई.
साधु-साधु
ReplyDeleteयूँ ही नहीं बंद जुबानों के पीछे छुपे तूफ़ान खामोश रहते हैं
ReplyDeleteको मुकम्मल करती है पंक्तियाँ कि
और जो लड़कियां अपने अन्दर मर सी जाती हैं
उनसे मेरा रूहानी रिश्ता है ...
दो स्नेही रूहें जब मिलती है तो ऐसी ही छटा होती है ...
बेहद खूबसूरत रचनाएँ !
wah.....adbhud.
ReplyDeletewaah bahut khub ..
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