कई बातें होठों तक आती हैं
फिर रास्ते बदल गले में अटक जाती है
अनकही होकर झकझोरती रहती हैं
......



रश्मि प्रभा

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अनकही

रह जाती है बहुत कुछ
अनकही
सुप्त, या फिर बेबस, बेचैन ,
शब्द बन जन्म लेते है
जज्बात
मंथन गतिमान होता
उड़कर बाहर आने को आतुर
व्याकुल
होठों तक पहुँच काँप उठते
फिर भी अनकही रह जाती ,
ख़ामोशी
एक चादर तान देती
और छिप कर रह जाते
बहुत कुछ,
एक प्रयत्न पुन:
गतिमान
शब्दों का निर्मित स्वरुप
भावों की उड़ान
सागर की लहरों सा
संघर्ष
फिर भी रह जाती
अनकही ।
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डॉ . संध्या तिवारी

12 comments:

  1. बहुत सुन्दर भाव...

    सच है अनकहा घुटन पैदा करता है...

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  2. सुन्दर शब्दों का संगम!...सुन्दर अभिव्यक्ति!

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  3. शब्दों का निर्मित स्वरुप
    भावों की उड़ान
    सागर की लहरों सा
    संघर्ष
    फिर भी रह जाती
    है जब अनकही ... दम-घुटता .... गला-रुन्धता लगता है.... !!
    अति-सुन्दर अभिव्यक्ति.... !!

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  4. pahli baar padha aapko accha laga...

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  5. कई बातें होठों तक आती हैं
    फिर रास्ते बदल गले में अटक जाती है
    अनकही होकर झकझोरती रहती हैं.....aur ye silsila chalta rahta hai kayee dinon tak.....

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  6. kai baar koshish karte hue bhi ankahi man ke bheeter hi simat jaati hai.bhaavon ko bahut sundar tareeke se prastut kiya hai.

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  7. ्जो अनकहा रह जाता है वो ही तो लिखने को प्रेरित करता है।

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  8. खुबसूरत अल्फाजों में पिरोये जज़्बात...

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  9. मैं वंदना जी के विचारों से सहमत हूँ ....

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  10. prastuti ke sath rachna padhna achha laga...

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