माँ को कोई मरने नहीं देना चाहता
उसकी साँसों से वेद ऋचाएं निकलती हैं
उसकी उम्र से परे उसकी दुआओं में
पौधे बरगद बनते जाते हैं ...
एक टहनी सी माँ
परम्पराओं के धागे बांधती जाती है ...


रश्मि प्रभा

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माँ ज़िन्दा रहेगी

मेरे पिता के सामने
माँ...
हमेशा एक बच्ची बनी रही
पिता की एक-एक
उचित-अनुचित
आज्ञा का पालन करती हुई
और पिता?
उसके ऊपर शासन करते रहे
ठीक एक तानाशाह की तरह
कड़कती ठंड में भी माँ-
न चाहने पर भी
सूरज के मुँह धोने से पहले
यूनिफार्म पहन कर तैयार हो जाती थी
ठीक उस सैनिक की तरह
जिसे देश का तानाशाह
कभी भी हुक्म दे सकता था
दुश्मनों के गढ़ में जाने के लिए
माँ-
एक सैनिक से ज़्यादा मुस्तैद थी
हुक्म बजा लाने में
पिता की आँख उठती
उससे पहले माँ समझ जाती
उन्हें क्या चाहिए
माँ-
बहुत डरती थी सजा से
अब
उसकी पीठ खाली नहीं थी
बोझ उठाते-उठाते थक गई थी-माँ
पर,
पिता की चाबुक उठते ही
सरपट भागती थी
पुराने...टूटे हुए खड़खड़े की घोड़ी की तरह
रास्ता बहुत लंबा और ऊबड़-खाबड़ था
माँ के पैरों की नाल घिस चुकी थी
कितनी बार
उसकी नाल बदलवाने की
कह चुके थे-पिता
पर,
नाल बदलने का वक़्त कभी नहीं आया
माँ-
जब खाली होती थी
तब-
पिता "घर" पर नहीं होते थे
और जब पिता "घर" पर होते
तब माँ खाली नहीं होती थी
"खाली" होने के इंतज़ार में
माँ के पैरों की नाल
घिसती जा रही थी
माँ को कराहने की भी इज़ाज़त नहीं थी
पिता को सबसे अधिक चिढ़
माँ की कराहट से थी
इसीलिए-
नाल घिसने के बावजूद
माँ-
हमेशा मुस्कराती रहती थी
वह पिता को खुश रखना चाहती थी
वह जब...
निर्जल...निर्जीव रहकर
करवाचौथ और तीज का व्रत रखती
तब,
उसकी उम्र का एक नन्हा क़तरा
पिता के भीतर समा जाता
माँ यही चाहती थी
"चाहत" की यह सीख
उसे अपनी दादी...नानी...माँ से मिली थी
विरासत में मिले इस गुण(?) के कारण ही
माँ
आज भी ज़िन्दा है
और हमेशा ज़िन्दा रहेगी
तानाशाहों का हुक्म बजाती
औरतों के भीतर...।
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मनी का हाशिया

18 comments:

  1. एक बहुत ही भावुक और खासकर भारतीय परिपेक्ष सटीक बैठने वाली मन को उद्वेलित करती शानदार प्रस्तुति !

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  2. बहुत ही सुंदर रचना
    काफ़ी कुछ बदला है परंतु पूर्ण रूप से बदलने में अभी भी समय है ,,जब तक पुरुष का ’अहं’ उसे इंसान बनने की आज़ादी नहीं देता तब तक इंतेज़ार करना होगा

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  3. bahut marmik par sach ko aaina dikhati hui rachna ...dil me seedhi utar gai na jaane kitne gharon me aaj bhi yesi maayen jeevit hain.

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  4. सटीक, भावपूर्ण एवं मार्मिक!
    सुन्दर प्रस्तुति!

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  5. उफ़ कितना मार्मिक और सटीक वर्णन किया है।

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  6. मार्मिक हृदयस्पर्शी रचना...

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  7. बहुत बहुत भावमयी रचना...
    समझ नहीं आ रहा क्या कहूँ..

    कहते सुना है अक्सर माओं को-कि मुझे तो मरने तक की भी फुर्सत नहीं...शायद सच कहतीं हैं वो..
    कभी मैंने खुद भी कहा ही होगा...

    सार्थक रचना..
    शुक्रिया रश्मि दी.

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  8. पढते - पढते आखें धुन्धुला गई ,आँसू जो भर गए ,दिल को छलनी कर दे ,ऐसी " माँ " के हालात के नंगी तस्वीर.... :( जो इन हालातों से गुजरती होगीं उन्हें कैसा लगता होगा.... ?

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  9. ऐसी माँ आज हर स्त्री के अंदर समाई हुई है...भाव विभोर करती मार्मिक रचना..

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  10. कटु सत्‍य बयां कर रही है यह अभिव्‍यक्ति ..आभार ।

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  11. Mother is a daughter of Mother [pravah],she is a Councillor ,she is a complete world,she is a court,judgment and above producer of judge.A breeze,we can not breath without her.

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  12. बहुत ही भावपूर्ण और गंभीर प्रस्तुति. बधाई रचनाकार को.

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  13. यथार्थ को अभिव्यक्त करती और अंतर्मन को स्पर्श करती मार्मिक कविता।

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  14. आप सभी की उत्साहवर्धक टिप्पणियों के लिए बहुत आभारी हूँ...।

    प्रेम गुप्ता `मानी'

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  15. बहुत भावपूर्ण और मार्मिक...

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