आरम्भ से - रश्मि रविज़ा
Friday, January 22, 2010 ब्लॉग जगत एक सम्पूर्ण पत्रिका है या चटपटी ख़बरों वाला अखबार या महज एक सोशल नेटवर्किंग साईट ? rashmirav...
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आरम्भ से - रश्मि रविज़ा
Friday, January 22, 2010 ब्लॉग जगत एक सम्पूर्ण पत्रिका है या चटपटी ख़बरों वाला अखबार या महज एक सोशल नेटवर्किंग साईट ? rashmirav...
आरम्भ से - शोभना चौरे
http://shobhanaonline. blogspot.in/2008/07/blog-post_ 28.html शोभना चौरे वेदना तो हूँ पर संवेदना नहीं, सह तो हूँ पर अनुभूति नह...
आरम्भ से - नीरज गोस्वामी
नीरज गोस्वामी मुम्बई, महाराष्ट्र, India अपनी जिन्दगी से संतुष्ट,संवेदनशील किंतु हर स्थिति में हास्य देखने की प्रवृत्ति.जीवन के अ...
आरम्भ से - लावण्या शाह
THURSDAY, MAY 03, 2007 कौन यह किशोरी? http://antarman-antarman. blogspot.in/2007/05/blog-post. html चुलबुली सी, लवँग ल...
अनूप भार्गव ज़िन्दगी इक खुली किताब यारो, पुण्य हैं कम पाप बेहिसाब यारो 6/21/2005 Asking for a Date http://anoopbhargava....
आरम्भ से ... रंजना भाटिया
Monday, February 26, 2007 अधूरा जीवन http://ranjanabhatia.blogspot.in/2007/02/blog-post_25.html ज़िंदगी को पूरी तरह से ...
आरम्भ से ... उड़न तश्तरी
बुधवार, अप्रैल 26, 2006 एक भोजपुरी टाईप की गज़ल लिखने का प्रयास मेरा ननिहाल और ददिहाल दोनो ही गोरखपुर, उ.प्र., ह...
“बिदेसिया त निरहुआ है“
(भिखारी ठाकुर की १२५ जयंती पर एक कविता (20th December 2012) कुछ सालों से खोजता फिरता हूँ भिखारी आपको लोक कला के नाम पर तमाश...
मौन के शब्दकोश में हैं करोड़ों अनपढ़े पन्ने…
आओ उन पन्नों की कुछ सांकलें खोलें रुनझुन धीमी सी हंसी से कोई कविता लिखें दीवारों पे अंकित लफ़्ज़ों से नाता जोड़ें रश्मि ...
झुग्गी झोपड़ियों से जो धुंआ निकलता है उसमें कई उम्मीदों की भूख मिटती है बहुत शांत खामोशी आकाश को छूती है धुएं के साथ साथ .... ...
जबकि, जानता हूँ...
हम जानते हैं फिर भी चाहते हैं ना चाहें तो असंभव संभव होगा कैसे ! रश्मि प्रभा ============================================...
वह सृष्टि है ..
वह सबकुछ है पर कुछ भी नहीं है रश्मि प्रभा ================================================================= ...
सार........ वह मुझमें ही पा लेना चाहती थी आदि से अन्त तक एक अनादि सृष्टि मैंने बो दिया है उसकी उर्वर भूमि में सारा अपनापन ताकि म...
निकुम्भ का इन्तजार
इस कहानी में एक बच्चे का भय,दर्द सबकुछ है क्या ज़रूरी है कि हर बच्चा एक जैसा हो 'तारे ज़मीं पर' अभिवावक,शिक्षक के लिए ए...
जलनखोर कहीं का.....।
चौखट के उस पार खड़ी ख़ुशी ने फुसफुसा के कहा -------- मैं तो कबसे खड़ी हूँ इंतजार में कि-कब द्वार खुले और मैं अन्दर दा...
कौन कहता है ये इक्कीसवी सदी है..
मैं भाव नहीं हूँ ... चाह की आशा लिए फैला हुआ हाथ हूँ भीख के लिए नहीं संतुलित विनम्र हक के लिए मैं एहसान नहीं एहसान तो तुम...